सारंग थत्ते का ब्लॉगः 1962 के जंग में दिलेरी की दास्तान
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 18, 2018 04:56 PM2018-11-18T16:56:01+5:302018-11-18T16:56:01+5:30
1962 के चीनी आक्रमण में आम धारणा यह रही है कि भारतीय सेना इस जंग के लिए पूरी तरह तैयार नहीं थी.
सारंग थत्ते
आज देश के सामने अपने 109 सूरमाओं को याद कर श्रद्धांजलि देने का पावन अवसर है. भारतीय सेना की 13वीं कुमाऊं रेजीमेंट की चार्ली कंपनी के ये जांबाज आज 56 साल बाद भी अपनी शहादत के लिए याद किए जा रहे हैं. 13 कुमाऊं रेजीमेंट को 114 इंफेंट्री ब्रिगेड के अधीन मग्गर पहाड़ी की रक्षा का जिम्मा 1962 के भारत-चीन संघर्ष में दिया गया था.
18 नवंबर 1962 की बर्फानी सुबह पास से गुजरने वाले एक पहाड़ी नाले से चीनी सेना ने अपनी हरकत शुरू की थी. हमारे सैनिकों को इस इलाके का चप्पा-चप्पा मालूम था और आशंका थी कि इस नाले की टूटी -फूटी जमीन के रास्ते चीनी आक्रमण हो सकता है. हमारी मशीनगनों ने एक मजबूत आक्र मण का उसी मजबूती से जवाब देना शुरू किया. लेकिन हमारी पोजीशन पहाड़ी की छाया में थी जिस वजह से हमारी आर्टिलरी की तोपें दुश्मन पर कारगर नहीं हो पाई थीं.
दुश्मन ने और ज्यादा कुमुक के साथ अपना आक्र मण जारी रखा. 13 कुमाऊं रेजीमेंट के सेनानी भी कम नहीं थे, अपनी-अपनी खंदक में डटे रहे और गोलीबारी जारी रही. मेजर शैतान सिंह की कमान में यह चार्ली कंपनी भारतीय सेना के इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिख गई. सैनिक अपने अन्य साथियों को पास की खंदक में गोलियों और बमों के परखच्चों से घायल और मारे जाते हुए देख रहे थे मगर वे वीर योद्धा अपने ध्येय से जरा भी नहीं हटे. चार्ली कंपनी में 3 जूनियर कमीशंड अधिकारी और 123 सैनिक थे. लड़ाई के अंत में केवल 14 सैनिक घायल अवस्था में बचे थे.
1962 के चीनी आक्रमण में आम धारणा यह रही है कि भारतीय सेना इस जंग के लिए पूरी तरह तैयार नहीं थी. गरम कपड़े, हवाई हमलों की काबिलियत और पहाड़ी इलाकों में मारक क्षमता वाली आर्टिलरी की तोपों तथा अग्रिम चौकियों तक गोलाबारूद, रसद और अतिरिक्त सैनिक पहुंचाने में हम कमजोर रहे थे. लेकिन यह भी उतना ही सच है कि किसी भी हाल में हमारे सेनानी कमजोर नहीं थे- आखिरी दम तक लड़ते रहे. रेझांग ला की लड़ाई साहस और बलिदान का एक जीता-जागता उदाहरण है. कहा जाता है कि उस दिन 5000 से 6000 चीनी सैनिक हमारी इस चार्ली कंपनी की पोस्ट पर मानव लहर बनाते हुए टूट पड़े थे. इस लड़ाई में चीनी सैनिकों के हताहत होने की संख्या 1500 से ऊपर कही जाती है, जिनके शव ले जाने के लिए चीनी सेना को 25 ट्रकों का बंदोबस्त करना पड़ा था.