संतोष देसाई का ब्लॉग: स्क्रीन की आभासी दुनिया
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: July 29, 2019 19:34 IST2019-07-29T19:34:25+5:302019-07-29T19:34:25+5:30
चीन के अपने हाल के दौरे में मुङो इस बात का विलक्षण अहसास हुआ, जहां यत्र-तत्र-सर्वत्र स्क्रीन देखने को मिलते हैं. हालांकि भारत भी इसका अपवाद नहीं है, दुनिया भर में स्क्रीन आज देखने को मिल जाते हैं, लेकिन चीन में यह कुछ अधिक ही संख्या में हैं.

संतोष देसाई का ब्लॉग: स्क्रीन की आभासी दुनिया
कुछ साल पहले एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें नन्हा बालक एक मासिक पत्रिका के पन्ने को अपने उंगली से दबा रहा था कि शायद इससे कुछ नया हो. वह समझ नहीं पा रहा था कि न्यूजप्रिंट कोई टचस्क्रीन नहीं होता. लेकिन हकीकत यह है कि आज हम अपने चारों तरफ तरह-तरह की टचस्क्रीन से घिरे हुए हैं.
चीन के अपने हाल के दौरे में मुङो इस बात का विलक्षण अहसास हुआ, जहां यत्र-तत्र-सर्वत्र स्क्रीन देखने को मिलते हैं. हालांकि भारत भी इसका अपवाद नहीं है, दुनिया भर में स्क्रीन आज देखने को मिल जाते हैं, लेकिन चीन में यह कुछ अधिक ही संख्या में हैं. इमारतों पर, हवाईअड्डों पर, दुकानों के सामने, दुकानों के भीतर, सड़क-चौराहों पर, बसों में- हर जगह स्क्रीन देखने को मिलते हैं और ये अच्छे-खासे बड़े भी हैं, जिनमें चित्र और शब्द धड़ाधड़ आगे सरकते जाते हैं. आज की दुनिया कितनी गतिशील है, यह इन स्क्रीन्स को देखकर सहज ही समझ में आ जाता है.
हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जिसमें स्क्रीन्स के माध्यम से तरक्की नजर आती है. टीवी और कम्प्यूटर की स्क्रीन के अलावा हमारे पास स्मार्टफोन, गेम्स, बिलबोर्ड्स, एटीएम, कई प्रकार के रेफ्रिजरेटर्स आदि तरह-तरह की स्क्रीन्स की श्रृंखला है. शायद आने वाले समय में सबकुछ स्क्रीन पर ही होगा! स्क्रीन मशीन को जीवंत बनाती है.
इसमें जो भी इनपुट हम डालते हैं यह उसी के हिसाब से काम करती है. टचस्क्रीन में हम सीधे इच्छित स्थान पर पहुंच सकते हैं. स्क्रीन हमारे जीवन में वालपेपर की तरह हो गए हैं, जो हमारे लिए वैकल्पिक वास्तविकताओं का निर्माण करते हैं. स्क्रीन हमारे लिए सांस्कृतिक दृष्टि से अनेक बदलाव ला रहे हैं. केविन केली नामक लेखक ने लोगों के दो वर्गीकरण किए हैं. एक वे जो किताबों में डूबे रहते हैं और दूसरे वे जो स्क्रीन में डूबे रहते हैं.
वास्तव में स्क्रीन इंटरैक्शन (परस्पर क्रिया) और डिस्प्ले (प्रस्तुतिकरण) की सिर्फ तकनीक भर नहीं हैं, वे धारणा बनाने के तरीके के रूप में कार्य करते हैं; ऐसी धारणाएं जो हमारे सोचने, महसूस करने और अनुभव करने के तरीके को आकार देती हैं.