संतोष देसाई का ब्लॉग: दिल्ली में केजरीवाल का फिर चलेगा जादू?
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 17, 2020 07:01 AM2020-01-17T07:01:37+5:302020-01-17T07:01:37+5:30
महाराष्ट्र और झारखंड के हालिया सत्ता परिवर्तनों ने दिखा दिया है कि भाजपा अजेय नहीं है, उसे पराजित किया जा सकता है. भाजपा जहां लोगों के दैनंदिन जीवन से संबंध नहीं रखने वाले मुद्दों पर ज्यादा जोर दे रही है, वहीं केजरीवाल मतदाताओं से जुड़े मुद्दों पर बात करके उन्हें आकर्षित कर रहे हैं.
कुछ माह पहले तक, लोकसभा चुनाव में भाजपा की शानदार जीत के मद्देनजर अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी के बीच निराशा दिखाई दे रही थी. आम आदमी पार्टी के नेताओं के हाव-भाव से मायूसी झलक रही थी. केजरीवाल की छवि पहले एक आंदोलनकारी की थी जो सत्ता में एक असहाय नेता के रूप में दिखाई देते थे और लगातार केंद्रीय सत्ता को कोसते नजर आते थे. इससे लोगों में यह भी धारणा बनने लगी थी कि वे अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए बहाने बना रहे हैं.
लेकिन थोड़े ही समय में चीजें काफी बदल गई हैं. विगत दिनों हुए एक सव्रेक्षण में सामने आया है कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में अपनी सत्ता बरकरार रख सकती है और केजरीवाल मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं. उन्होंने अपनी कई नीतियों में बदलाव किया है.
अब वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पंगा लेते नजर नहीं आते, न ही किसी राष्ट्रीय विवाद में पड़ने के इच्छुक दिखाई देते हैं. हो सकता है कुछ लोगों को यह बात न रुचे, लेकिन उन्होंने जेएनयू के हालिया मामले से खुद को अलग रखा और सीएए, एनआरसी विवाद पर भी ज्यादा कुछ बोलते नहीं दिखे. इसके बजाय वे दिल्ली में पिछले पांच वर्षो में किए गए अपने विकास कार्यो को लोगों के सामने रख रहे हैं.
महाराष्ट्र और झारखंड के हालिया सत्ता परिवर्तनों ने दिखा दिया है कि भाजपा अजेय नहीं है, उसे पराजित किया जा सकता है. भाजपा जहां लोगों के दैनंदिन जीवन से संबंध नहीं रखने वाले मुद्दों पर ज्यादा जोर दे रही है, वहीं केजरीवाल मतदाताओं से जुड़े मुद्दों पर बात करके उन्हें आकर्षित कर रहे हैं.
हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि केजरीवाल के सामने कोई चुनौती ही नहीं है. भाजपा के पास काफी सशक्त चुनावी मशीनरी है. उसने हाल ही में भले दो राज्यों में सत्ता गंवा दी हो, लेकिन महाराष्ट्र में उसके गठबंधन के भागीदार दल ने ही सरकार बनाई है और झारखंड में भी हारने के बावजूद उसका वोट प्रतिशत बढ़ा ही है. इसलिए दिल्ली के चुनाव में उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता.