संतोष देसाई का ब्लॉग: एजेंडा पूरा करने की दृष्टि से 2020 भाजपा के लिए निर्णायक!
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 5, 2020 01:08 PM2020-01-05T13:08:44+5:302020-01-05T13:08:44+5:30
एनपीआर/एनआरसी कार्यान्वित करने, समान नागरिक संहिता की दिशा में आगे बढ़ने और राम मंदिर का निर्माण करने की दिशा में यह वर्ष मील का पत्थर साबित हो सकता है.
आम तौर पर साल के आखिरी दिन जैसे बीतते हैं, 2019 वैसा हर्गिज नहीं था. यह काफी उथल-पुथल भरा रहा और विगत वर्ष में पैदा हुए सवाल इस वर्ष निर्णायक भूमिका अख्तियार कर सकते हैं. सीएए/एनआरसी/एनपीआर से पैदा हुए सवालों को कैसे देखें? सरकार अपना एजेंडा पूरा करने के लिए दृढ़ता से कायम रहेगी या इस विषय पर पीछे हटेगी? क्या वह पूर्ण हिंदू राज्य की दिशा में निर्णायक कदम उठाएगी? या फिर इसके विरोध में जो स्वर उठे हैं वे निर्णायक साबित होंगे? क्या न्यायपालिका निर्णायक रूप से हस्तक्षेप करेगी? अर्थव्यवस्था का क्या होगा? क्या सरकार इसे प्राथमिकता देगी जिसकी कि आज सख्त जरूरत है?
वर्ष 2019 पहला ऐसा वर्ष रहा है जिसमें भाजपा सरकार विशेष रूप से सक्रिय रही. अपने पहले कार्यकाल में जो काम वह करना चाहती थी, उन्हें करने का उसके पास शायद यह सबसे अच्छा मौका था. उसने अपने सांस्कृतिक एजेंडे को जोरशोर से लागू करने की शुरुआत की. तीन तलाक को आपराधिक स्वरूप देना, कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना और सीएए को मंजूरी देना इसके स्पष्ट प्रमाण हैं. अगर कोई इस रास्ते की स्वाभाविक परिणति के बारे में सोचे तो इसकी कल्पना की जा सकती है कि 2020 में क्या होने वाला है. एनपीआर/एनआरसी कार्यान्वित करने, समान नागरिक संहिता की दिशा में आगे बढ़ने और राम मंदिर का निर्माण करने की दिशा में यह वर्ष मील का पत्थर साबित हो सकता है.
इस मार्ग का अनुसरण करते हुए, आर्थिक स्थिति की जो उपेक्षा की गई है, उसे समझ पाना कठिन है. स्थिति को सुधारने के लिए कुछ सतही प्रयास जरूर किए जाते रहे हैं, लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ा है. अर्थव्यवस्था के प्रति यह उदासीनता विशेष रूप से व्यापारियों के लिए संकटपूर्ण रही है. सरकार द्वारा अपने सांस्कृतिक एजेंडे पर अधिक ध्यान देना अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक साबित हुआ है. वर्तमान में सरकार के ऐसे कार्यो का बड़े पैमाने पर विरोध किया जा रहा है, जबकि पहले सरकार के किसी भी कार्य को गंभीर चुनौती नहीं दी गई थी. शायद भारी जनादेश और विपक्ष की प्रभावी उपस्थिति के अभाव ने सरकार के भीतर यह आत्मविश्वास पैदा किया कि वह जो चाहे कर सकती है.
आगे का रास्ता बहुत उम्मीदों भरा नहीं दिखाई देता है. वर्तमान में हो रहे विरोध प्रदर्शन समय के साथ शांत हो जाएंगे लेकिन जब पूरे देश में एनआरसी लागू करने की बारी आएगी तो स्थिति अधिक विस्फोटक हो सकती है. इसके अलावा जिन राज्यों में विपक्ष के अलावा भाजपा के सहयोगी दलों की भी सरकारें हैं, उन्होंने भी इस बारे में रुचि नहीं दिखाई है. इसलिए 2020 का सफर सरकार के लिए आसान नहीं दिखता है.