ऋतुपर्ण दवे का ब्लॉग: अफवाहें रोकने के साथ खाली पेट का दर्द भी समझें

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: April 17, 2020 06:41 IST2020-04-17T06:41:37+5:302020-04-17T06:41:37+5:30

यह सही है कि कई राज्यों में रोजगार और मजदूरी के लिए गए प्रवासियों का वक्त बहुत नाजुक है. तकलीफों के पहाड़ हैं. लेकिन यह भी सच है कि मुसीबत के इस दौर का आधा सफर कट गया है. लॉकडाउन-2 वास्तव में कोरोना की कड़ी को तोड़ने का अचूक रामबाण है और इसे भेदने में हुई जरा सी चूक सारे किए पर पानी फेर देगी.

Rituparn Dave blog: Along with stopping the rumors, understand the pain of empty stomach | ऋतुपर्ण दवे का ब्लॉग: अफवाहें रोकने के साथ खाली पेट का दर्द भी समझें

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (Image Source: Pixabay)

अफवाहों के सौदागर देश के दुश्मन बनते जा रहे हैं. एक ओर जहां भारत सुनियोजित तरीके से वैश्विक महामारी कोरोना से जंग लड़ रहा है, वहीं कुछ सिरफिरे लोगों की कारस्तानी अलग ही तरीके के हालात बनाने में जुटी हुई है. बांद्रा, सूरत सहित अन्य जगहों से आई तस्वीरें इसी का संकेत हैं. जब वक्त सबसे ज्यादा समझदारी दिखाने का है तब फर्जी सहानुभूति के बाजीगर अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहे हैं.

यह सही है कि कई राज्यों में रोजगार और मजदूरी के लिए गए प्रवासियों का वक्त बहुत नाजुक है. तकलीफों के पहाड़ हैं. लेकिन यह भी सच है कि मुसीबत के इस दौर का आधा सफर कट गया है. लॉकडाउन-2 वास्तव में कोरोना की कड़ी को तोड़ने का अचूक रामबाण है और इसे भेदने में हुई जरा सी चूक सारे किए पर पानी फेर देगी.

दरअसल यह वक्त राजनीति का नहीं कोरोना से जंग का है और सभी को मिलकर साथ रहना होगा. समय बहुत ही संयम से काम करने का है. प्रवासियों के पलायन का जो सच सामने आया है वह देश के साथ किसी संगीन अपराध से कम नहीं. सारी दुनिया महामारी से जंग के दौर में है. विकसित और विकासशील देशों की दशा और मौत के आंकड़े डरावने हैं. महाशक्ति अमेरिका तक पनाह मांग चुका है. चीन, इटली, स्पेन, फ्रांस और न जाने कितने तथाकथित सभ्य व सेहतमंद कहलाने वाले मुल्कों की दुर्दशा सामने है. ऐसे में भारत के लिए चुनौती बहुत बड़ी है.

सच है कि जब सामने मौत का खौफ हो तो दूर बैठा हर कोई अपनों के साथ रहना चाहता है पर यह भी सोचना होगा कि शायद पहली बार वक्त इसकी इजाजत क्यों नहीं दे रहा है? लेकिन जहां भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं उसका दूसरा पहलू भी वहां की सरकारों और स्थानीय प्रशासन को समझना होगा. सबसे जरूरी अप्रवासी मजदूरों या कामगारों की खुराक का ध्यान रखना है. यह तबका रूखी-सूखी खाकर पेट भरने और परिवार को पालने के लिए ही दूसरे प्रदेश से आया है और वही एक वक्त आधा पेट खाए बिलबिला कर रह जाए तो मार दोहरी होगी! इन्हें जरूरत के हिसाब से दो वक्त का खाना नसीब हो न कि सरकारी मीनू से क्योंकि सूरत से आई तस्वीरों ने यही सच दिखाया.

जहां भी बड़ी तादाद में अप्रवासी फंसे हों वहां उनको मनोवैज्ञानिक तरीके से समझाया-बुझाया जाए और दाल-रोटी का मुकम्मल इंतजाम हो. जिम्मेदार अफसरों की निगरानी हो ताकि भूख की ऐसी तस्वीरें दोबारा न दिखें क्योंकि देश में पर्याप्त अनाज होने की बात कही जा रही है और यह हकीकत भी है. यह वक्त तमाम प्रदेशों में अप्रवासियों के लिए बड़े पहाड़ सा जरूर है लेकिन सभी राज्य सरकारों को हनुमान बन पहाड़ हाथ पर उठाना ही होगा ताकि परीक्षा की मुश्किल घड़ी कट जाए.

Web Title: Rituparn Dave blog: Along with stopping the rumors, understand the pain of empty stomach

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