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ब्लॉग: गुजरात विधानसभा में क्षेत्रीय भाषाओं को लेकर पारित किया प्रस्ताव, इस कदम से अन्य राज्य भी ले प्रेरणा

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: March 2, 2023 11:13 IST

गुजरात सरकार का फैसला पहली कक्षा से आठवीं कक्षा के छात्रों के लिए गुजराती पढ़ना अनिवार्य होगा जो स्कूल इस प्रावधान का उल्लंघन करेंगे।

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ठळक मुद्देगुजरात सरकार ने क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए की अनोखी पहलराज्य विधानसभा में प्रस्ताव किया गया पारित स्कूलों में गुजराती भाषा पढ़ना अनिवार्य होगा

गुजरात की विधानसभा ने सर्वसम्मति से जैसा प्रस्ताव पारित किया है, वैसा देश की हर विधानसभा को करना चाहिए। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि गुजरात की सभी प्राथमिक कक्षाओं में गुजराती भाषा अनिवार्य होगी। पहली कक्षा से आठवीं कक्षा के छात्रों के लिए गुजराती पढ़ना अनिवार्य होगा जो स्कूल इस प्रावधान का उल्लंघन करेंगे।

उन पर 50 हजार से 2 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जाएगा। जो स्कूल इस नियम का उल्लंघन एक साल तक करेंगे, राज्य सरकार उनकी मान्यता रद्द कर देगी। गुजरात में बाहर से आकर रहने वाले छात्रों पर उक्त नियम नहीं लागू होगा। 

मेरी राय यह है कि गैर-गुजराती छात्रों पर भी यह नियम लागू होना चाहिए क्योंकि भारत के किसी भी प्रांत से आने वाले विद्यार्थियों के लिए गुजराती सीखना बहुत आसान है। उसकी लिपि तो एक-दो दिन में ही सीखी जा सकती है और जहां तक भाषा का सवाल है, वह भी कुछ हफ्तों में ही सीखना कठिन नहीं है।

यह बात सभी भारतीय भाषाओं के बारे में लागू होती है, क्योंकि सभी भारतीय भाषाएं संस्कृत की पुत्री हैं। यह ठीक है कि जिन अफसरों और व्यापारियों को अल्प समय में ही अपना प्रांत बदलना पड़ता है, क्या उनके बच्चों की मुसीबत नहीं हो जाएगी? वे कितनी भाषाएं सीखेंगे?

इस तर्क का जवाब यह है कि बचपन में कई भाषाएं सीख लेना काफी आसान होता है। यदि हमारे देश के बच्चों के लिए स्थानीय भाषा सीखना अनिवार्य कर दिया जाए तो भारत के करोड़ों बच्चे बहुभाषाविद बन जाएंगे। आधुनिक भारत में करोड़ों लोग एक-दूसरे के प्रांतों में रहते और आते-जाते हैं।

यह प्रक्रिया राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाएगी और हमारे युवकों की बौद्धिक प्रतिभा को नई धार देगी। जब मातृभाषाओं के प्रति प्रेम बढ़ेगा तो प्रत्येक राष्ट्र की राष्ट्रभाषा या संपर्क भाषा को भी उसका उचित स्थान मिलेगा। हमारे बच्चे बीए, एमए की पढ़ाई और पीएच.डी. के शोध-कार्य में एकमात्र अंग्रेजी ही नहीं, बल्कि विविध विदेशी भाषाओं का फायदा उठाएं।

यह भी जरूरी है लेकिन बचपन से ही मातृभाषा और राष्ट्रभाषा की उपेक्षा किसी भी राष्ट्र को महाशक्ति या महासंपन्न नहीं बना सकती। 

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