राजेश कुमार यादव का ब्लॉग: सिविल सेवा परीक्षा में क्यों पिछड़ रही है हिंदी?
By राजेश कुमार यादव | Published: August 26, 2020 02:04 PM2020-08-26T14:04:33+5:302020-08-28T15:41:59+5:30
हिंदी मीडियम के उम्मीदवार को स्तरीय अध्ययन सामग्री की कमी से जूझना पड़ता है. ज्यादातर बेहतर टेक्स्ट बुक और अच्छे कोचिंग नोट्स मूल रूप से अंग्रेजी में ही होते हैं. दूसरी ओर हिंदी की सामग्री ज्यादातर दोयम दर्जे की होती है. उल्लेखनीय है कि यूपीएससी ने अपने पैटर्न में बदलाव करते हुए प्रारंभिक परीक्षा में सी-सैट की व्यवस्था लागू की है.
राजेश कुमार यादव
किसी भी देश का भविष्य उसकी राष्ट्रभाषा निश्चित करती है और यदि उस भाषा को बोलने वाले लोग ही देश की सर्वोच्च सेवा में नहीं होंगे तो जाहिर है कि भविष्य के संकेत अच्छे नहीं हैं. देश की सर्वाधिक प्रतिष्ठित भारतीय प्रशासनिक सेवा (सिविल सर्विसेज) जिसे भारतीय प्रशासन का स्टील फ्रेम भी कहा जाता है, के हाल ही में आए परीक्षा परिणामों ने हिंदी माध्यम से सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी में जुटे हजारों छात्नों को बेहद निराश किया है. हालत ये है कि हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वाले परीक्षार्थी टॉप-50 में भी जगह नहीं बना पा रहे हैं. इस बार पूरी मेरिट लिस्ट में हिंदी माध्यम से सबसे ज्यादा अंक पाने वाले ने 337वीं रैंक पाई है, जो अब तक का सबसे खराब परिणाम है.
पहले अंग्रेजी और हिंदी माध्यम से कामयाब होने वालों का औसत 55:40 हुआ करता था, जो कि अब पूरी तरह बिगड़ चुका है. पिछले करीब आठ साल से यूपीएससी में हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी पिछड़ रहे हैं. यूपीएससी परीक्षा के पैटर्न में बदलाव के बाद से ही हिंदी माध्यम से सफल उम्मीदवारों के औसत में गिरावट दिखनी शुरू हो गई. इस खराब स्थिति के कई कारण हैं. हिंदी आज भी भारत में अंग्रेजी से काफी ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है. लेकिन यह एलीट क्लास की भाषा नहीं है.
दोयम दर्जे की हिंदी की ज्यादातर सामग्री
यह ग्रामीण क्षेत्नों और छोटे शहरों के साधारण जनों और वंचितों की भाषा है. हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी अंग्रेजी माध्यम के अभ्यर्थी की तुलना में आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक तीनों ही दृष्टियों में पिछड़े हैं. यहां मामला हिंदी-अंग्रेजी भाषा का उतना नहीं है, जितना कि गरीब-अमीर, गांव-शहर, सरकारी और कॉन्वेंट स्कूल के भेद का है.
हिंदी मीडियम के उम्मीदवार को स्तरीय अध्ययन सामग्री की कमी से जूझना पड़ता है. ज्यादातर बेहतर टेक्स्ट बुक और अच्छे कोचिंग नोट्स मूल रूप से अंग्रेजी में ही होते हैं. दूसरी ओर हिंदी की सामग्री ज्यादातर दोयम दर्जे की होती है. उल्लेखनीय है कि यूपीएससी ने अपने पैटर्न में बदलाव करते हुए प्रारंभिक परीक्षा में सी-सैट की व्यवस्था लागू की है.
अंग्रेजी में सेट किए जाते हैं यूपीएससी के सवाल
इसके तहत अब वैकल्पिक विषय के प्रश्नपत्न को हटाकर सी-सैट का पेपर रखा गया है, जिसमें पूछे जाने वाले 80 प्रश्नों में से लगभग आधे कॉम्प्रिहेंशन के होते हैं. हिंदी भाषियों के लिए यही अड़ंगा बन रहा है, क्योंकि इन प्रश्नों का हिंदी अनुवाद सरकारी हिंदी जैसा कर दिया जाता है! दरअसल, यूपीएससी के सवाल मूल रूप से अंग्रेजी में सेट किए जाते हैं, फिर हिंदी में इनका अनुवाद किया जाता है.
परेशानी की बात ये है कि ऐसे अनुवाद ज्यादातर गूगल ट्रांसलेटर जैसे टूल से मशीनी तरीके से किए जाते हैं. ऐसे सवाल भले ही हिंदी में हों, लेकिन इनका मतलब निकालना किसी मेधावी छात्न के लिए भी टेढ़ी खीर होता है. वास्तव में हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी कभी भी यूपीएससी की परीक्षा में लाभ की स्थिति में नहीं रहे हैं.