माजिद पारेख का ब्लॉग :‘कुरान’ ईमान व अमन का प्रतीक
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: October 11, 2019 07:04 IST2019-10-11T07:04:38+5:302019-10-11T07:04:38+5:30
पवित्न कुरान 10/99 ‘अगर तुम्हारा रब चाहता तो इस धरती पर सारे इंसान एक ही मजहब के होते! तो क्या ऐ मोहम्मद आप किसी पर जबरदस्ती करेंगे इसे मानने के लिए?’

माजिद पारेख का ब्लॉग :‘कुरान’ ईमान व अमन का प्रतीक
पवित्न कुरान 10/99 ‘अगर तुम्हारा रब चाहता तो इस धरती पर सारे इंसान एक ही मजहब के होते! तो क्या ऐ मोहम्मद आप किसी पर जबरदस्ती करेंगे इसे मानने के लिए?’ इस आयत में संसार के एक अकेले मालिक ने इंसान को मजहबी आजादी दी. इस आजादी से अमन, भाईचारा, शांति का प्रसारण होता है.
इस वास्तविकता का अंदाजा अरबी शब्द ईमान से लगाया जा सकता है जो अमन (शांति) के समानार्थी है जो मानवता के लिए मालिक का एक उपहार है. किसी भी देश में मजहबी आजादी में हस्तक्षेप करने का नतीजा मार काट फसाद के ही रूप में सामने आया. कुरान ने अत्याचार, अन्याय, किसी भी इंसान की जान लेने पर कड़ी सजा का ऐलान किया है. इसलिए कि इंसानी तरक्की की सबसे अहम जरूरत अमन शांति ही है.
यह एक विडंबना है कि कुछ लोग इस्लाम को हिंसा का मजहब समझते हैं. वर्तमान युग के संदर्भ में देखने से पता चलता है कि इसकी बुनियादी वजह वे तथाकथित मुसलमान हैं जिन्होंने जिहाद को पूर्णत: एक गलत अर्थ देकर इसे हिंसा और अत्याचार से जोड़ दिया.
पूरे कुरान के अध्ययन में जंग की अनुमति केवल अन्याय अत्याचार के खिलाफ बचाव के लिए ही दी गई है. पैगंबर मोहम्मद (स) ने मक्का में 13 साल तक अत्याचार खुद भी सहन किया और अपने अनुयायियों को भी सहने के लिए प्रेरित करते रहे और जब पैगंबर मोहम्मद (स) ने महसूस किया कि मक्का की अमन व शांति भंग होने लगी है तो उन्होंने मक्का से 450 किलोमीटर दूर शहर मदीना पलायन किया. इस पलायन से दुनिया को ऐसा नमूना मिला कि अगर अमन शांति भंग होती है तो अपने अधिकारों को कुर्बान करते हुए पलायन कर जाओ लेकिन अमन शांति को भंग न होने दिया जाए.
पवित्न कुरान 6/108 के सार में कहा गया कि ‘किसी भी धर्म की निंदा अगर करोगे तो वे तुम्हारे धर्म की निंदा करेंगे, और इस तरह धार्मिक झगड़ों को कभी विराम नहीं मिलेगा. एक न एक दिन तो सारे इंसान अपने मालिक के समक्ष हिसाब के लिए जमा होने वाले हैं, तब संसार का एक अकेला मालिक सारे इंसानों के मतभेदों का फैसला कर देगा.’ जरूरत है कि इंसान धार्मिक
मतभेदों के फैसले इस दुनिया में न करे और ईश्वर की अदालत के
लगने का इंतजार करे और
कयामत से पहले कयामत को लागू न करे.