पुण्यप्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: गुजरात चुनाव में मोदी-शाह के राजनीतिक मॉडल की जीत

By पुण्य प्रसून बाजपेयी | Published: December 9, 2022 07:59 AM2022-12-09T07:59:59+5:302022-12-09T07:59:59+5:30

गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड बना दिया है. भाजपा की इस बड़ी जीत पर पत्रकार पुण्यप्रसून वाजपेयी क्या कहते हैं, पढ़ें उनका लेख-

Punya Prasun Bajpai article: Victory of Modi-Shah political model in Gujarat elections | पुण्यप्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: गुजरात चुनाव में मोदी-शाह के राजनीतिक मॉडल की जीत

गुजरात चुनाव में मोदी-शाह के राजनीतिक मॉडल की जीत (फोटो- ट्विटर, भाजपा)

चुनाव से पहले राज्य की सरकार बदल दी. देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने पूरी ताकत झोंक दी. दर्जन भर कैबिनेट मंत्री और चार राज्यों के मुख्यमंत्री प्रचार करने पहुंचे. सारे मुद्दे हवा हवाई हो गए. न मोरबी पुल का दर्द न महंगाई का गुस्सा. न जीएसटी की तबाही का रोष न बेरोजगारी का आक्रोश. 

फिर पाटीदार बंट गया. मुसलमान बंट गया. दलित उना को भूल गया. आदिवासी भी आदिवासी राष्ट्रपति के बनने से भाजपा के मुरीद हो गए. ओबीसी के सामने कोई चेहरा नहीं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही ओबीसी नेता माना. बिल्कीस बानो कांड से छलनी कानून का राज भी डगमगाकर पटरी पर लौट आया. 

कांग्रेस की खामोशी ने कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को बाहर नहीं निकाला तो आप के शोर ने बिना संगठन केजरीवाल की हवा बना दी जो सोशल मीडिया पर हंगामा खड़ा करती चली गई. जमीन पोपली ही रह गई और 27 बरस की सत्ता की लहर कुछ इस तरह बनी जिसमें लगा ही नहीं सत्ता विरोधी लहर भी कोई चीज होती है. या गुजरात अपने किसी नए नेता या पार्टी को चुनने निकला है क्योंकि सामने मोदी-शाह हैं, जिन्होंने अपने ही राजनीतिक प्रयोगों को बदला. अपनी ही जीत के पुराने रिकॉर्ड को तोड़ नया रिकॉर्ड बनाया.

भाजपा की डेढ़ सौ से अधिक सीटों की जीत गुजरात की पारंपरिक राजनीति का स्वाहा होना है. बीते बीस बरस में गुजरात में इससे पहले कभी जाति समीकरण और ओबीसी दांव नहीं था. इससे पहले कभी त्रिकोणीय मुकाबले की राह नहीं थी. पर गुजरात का राजनीतिक मॉडल सिर्फ गुजरात तक सिमट कर रह जाएगा ऐसा भी नहीं है. 

इस नायाब प्रयोग ने मोदी-शाह को ये ताकत दी है कि भाजपा शासित राज्यों में कोई मुख्यमंत्री ये न सोचे कि वो जीत सकता है या उसके भरोसे भाजपा को जीत मिल सकती है. भाजपा के भीतर कद्दावर नेताओं को भी इस नायाब राजनीतिक प्रयोग के सामने शीश झुकाने होंगे. क्योंकि गुजरात का ये मॉडल हिमाचल और दिल्ली से अलग है. 

हिमाचल और दिल्ली में सत्ता विरोधी हवा चलती है और भाजपा हार जाती है. लेकिन गुजरात में 27 बरस की सत्ता के बावजूद कोई एंटी-इनकम्बेसी नहीं होती. उल्टे लहर में तब्दील हो जाती है.

ये प्रयोग कर्नाटक के नेताओं के लिए भी हैं और राजस्थान व छत्तीसगढ़ के पुराने कद्दावर नेता जो मुख्यमंत्री रह चुके हैं उनके लिए भी. चाहे वो रमन सिंह हों या वसुंधरा राजे. आधा दर्जन राज्यों में 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले विधानसभा चुनाव होने हैं और जिस लकीर को गुजरात की जीत के साथ मोदी-शाह ने खींचा है उसमें गुजरात राज्य नहीं है लेकिन राज्य को जीतने के लिए गुजरात के इस मॉडल को जमीन पर उतारना ही सबसे जरूरी है, जिसमें भाजपा एक पिरामिड की शक्ल में है और शीर्ष ही हर निर्णय लेता है.

Web Title: Punya Prasun Bajpai article: Victory of Modi-Shah political model in Gujarat elections

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