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सुशासन कायम करके ही वायदों को पूरा किया जा सकता है, ललित गर्ग का ब्लॉग

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: November 10, 2020 23:52 IST

बेंगलुरु की पब्लिक अफेयर सेंटर नामक एजेंसी ने सार्वजनिक मामलों को लेकर भारत के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का अध्ययन किया है और उन्हें अंकों के आधार पर वर्गीकृत करते हुए बताया है कि केंद्र शासित प्रदेशों में सुशासन के स्तर पर चंडीगढ़ सबसे ऊपर है.

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ठळक मुद्देमूल्यांकन के मुख्य मानक हैं कि दुनिया के किस देश, किस राज्य और शहर में नागरिक सुविधाओं की क्या स्थिति है.राज्यों में केरल शीर्ष पर और दक्षिण के दूसरे सभी राज्य ऊपर के पायदान पर हैं तो उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा सबसे खराब स्थिति में हैं.कारोबार करने की दृष्टि से उत्तर प्रदेश में स्थितियां बाकी सभी राज्यों की तुलना में सबसे बेहतर हैं.

आजकल सरकारों के सुशासन एवं आदर्श-कार्यशैली का मूल्यांकन केवल चुनाव के वक्त ही नहीं होता बल्कि कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां इस तरह का अध्ययन करके मूल्यांकन करने लगी हैं. इस तरह के मूल्यांकन के मुख्य मानक हैं कि दुनिया के किस देश, किस राज्य और शहर में नागरिक सुविधाओं की क्या स्थिति है.

बेंगलुरु की पब्लिक अफेयर सेंटर नामक एजेंसी ने सार्वजनिक मामलों को लेकर भारत के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का अध्ययन किया है और उन्हें अंकों के आधार पर वर्गीकृत करते हुए बताया है कि केंद्र शासित प्रदेशों में सुशासन के स्तर पर चंडीगढ़ सबसे ऊपर है.

राज्यों में केरल शीर्ष पर और दक्षिण के दूसरे सभी राज्य ऊपर के पायदान पर हैं तो उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा सबसे खराब स्थिति में हैं. उत्तर प्रदेश सबसे निचले पायदान पर है. अभी कुछ दिनों पहले ही एक दूसरी एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कारोबार करने की दृष्टि से उत्तर प्रदेश में स्थितियां बाकी सभी राज्यों की तुलना में सबसे बेहतर हैं. इसी तरह के विरोधाभास दूसरे कुछ राज्यों के मामले में भी उभर सकते हैं.

सुशासन के लिए जरूरी है दायित्व और उसका ईमानदारी से निर्वहन. लेकिन विडंबना है कि सरकारें न तो दायित्व ढंग से ओढ़ती है और न ओढ़े हुए दायित्वों का ईमानदारी से निर्वाह करती है. दायित्व और उसके ईमानदारी से निर्वहन की अनभिज्ञता संसार में जितनी क्रूर है, उतनी क्रूर मृत्यु भी नहीं होती.

सुशासन समग्र प्रयास से स्थापित होता है. यह एकांगी कभी नहीं हो सकता. ऐसा नहीं हो सकता कि लचीली नीतियां बनाकर या कुछ प्रलोभन देकर राज्य में कारोबार के लिए स्थितियां तो बेहतर बना ली जाएं पर अपराध और भ्रष्टाचार रोकने के मामलें में शिथिलता बरतते रहें. जब किसी राज्य में सुशासन और खुशहाली आंकी जाती है तो उसमें देखा जाता है कि वहां के लोगों का जनजीवन कैसा है, उन्हें सार्वजनिक सुविधाएं-सड़कें, अस्पताल, सार्वजनिक परिवहन, बिजली-पानी, सुरक्षा-व्यवस्था कितनी नियोजित प्राप्त है, वहां स्वास्थ्य, शिक्षण संस्थाएं कैसी हैं.

वहां के किसान, दुकानदार कितने सहज महसूस करते हैं. महिलाएं और समाज के निर्बल कहे जाने वाले तबकों के लोग कितने सुरक्षित हैं. प्रशासन से आम लोगों की कितनी नजदीकी है. अगर कोई अपराध होता है तो दोषियों की धर-पकड़ में कितनी मुस्तैदी दिखाई जाती है. बेंगलुरु के जिस संस्थान ने राज्यों में सुशासन संबंधी ताजा रिपोर्ट जारी की है, उसने भी समानता, पारदर्शिता, सतर्कता, विकास और निरंतरता के आधार पर अध्ययन किया. इन बिंदुओं का महत्व समझा जा सकता है.

इन्हीं के आधार पर अंदाज लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में किन राज्यों का देश के आर्थिक विकास में कैसा और कितना योगदान रह सकता है. टिकाऊ विकास के मामले में इनसे कितनी मदद मिल सकती है. कुछ लोगों का तर्क हो सकता है कि छोटे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का दायरा छोटा और उनकी आबादी कम होती है इसलिए कानून-व्यवस्था और बुनियादी सुविधाओं के मामले में बेहतर काम हो पाते हैं, मगर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान जैसे बड़े और सघन आबादी वाले राज्यों में सरकारों के सामने कई मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.

मगर यह तर्क जिम्मेदारियों से बचाव का कोई रास्ता नहीं हो सकता. राज्यों को उनके आकार और आबादी के हिसाब से बजटीय आवंटन किए जाते हैं, उनकी आमदनी भी उसी अनुपात में छोटे राज्यों की अपेक्षा अधिक मानी जा सकती है. ऐसे में अगर बुनियादी स्तर पर वे बेहतर काम नहीं कर पातीं तो यह उनकी नाकामी ही कही जाएगी. सुशासन के मामले में पिछड़े हर राज्य को अपने से बेहतर राज्यों से प्रेरणा लेनी चाहिए.

शांतिपूर्ण शासन व्यवस्था एवं सुशासन के लिए जरूरी है कि आम-जनजीवन में कम-से-कम सरकारी औपचारिकताएं हों, कानून कम हों, सरकारी विभाग कम-से-कम हों. कुछ राज्य ऐसे हैं जहां 20-25 सरकारी विभाग होने चाहिए लेकिन उनकी संख्या 50-60 से अधिक है. कई राज्य ऐसे भी हैं जहां पुराने और अप्रासंगिक कानूनों का ढेर है. वे सुशासन में बाधक भी हैं, और जन-जीवन के लिए जटिल भी हैं. राज्य सरकारें हर स्तर पर सुशासन कायम करके ही अपने वायदों को पूरा करने के साथ ही आम जनता के जीवन को खुशहाल बना सकती हैं.

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