प्रो. संजय द्विवेदी का ब्लॉग: आज भी युवाओं के ‘रोल मॉडल’ हैं स्वामी विवेकानंद

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 12, 2021 10:25 AM2021-01-12T10:25:34+5:302021-01-12T10:58:35+5:30

स्वामी विवेकानंद की जयंती के दिन 12 जनवरी को हर साल भारत में युवा दिवस मनाया जाता है. स्वामी विवेकानंद की जिंदगी बहुत छोटी रही लेकिन उनकी जिंदगी का पाठ बहुत बड़ा है.

Pro. Sanjay Dwivedi Blog: Swami Vivekananda role model of youth | प्रो. संजय द्विवेदी का ब्लॉग: आज भी युवाओं के ‘रोल मॉडल’ हैं स्वामी विवेकानंद

प्रो. संजय द्विवेदी का ब्लॉग: आज भी युवाओं के ‘रोल मॉडल’ हैं स्वामी विवेकानंद

Highlightsकोलकाता के एक संभ्रांत परिवार में 12 जनवरी, 1863 को जन्मे थे नरेंद्रनाथ दत्त नवंबर, 1881 के आसपास हुई स्वामी रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद की पहली मुलाकात केवल 39 साल की आयु में 4 जुलाई, 1902 को दुनिया से विदा हुए विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद भारतीय आध्यात्मिकता और भारतीय जीवन दर्शन को विश्व पटल पर स्थापित करने वाले नायक हैं. भारत की संस्कृति, भारतीय जीवन मूल्यों और उसके दर्शन को उन्होंने ‘विश्व बंधुत्व और मानवता’ को स्थापित करने वाले विचार के रूप में प्रचारित किया.

अपने निरंतर प्रवासों, लेखन और मानवता को सुख देने वाले प्रकल्पों के माध्यम से उन्होंने यह स्थापित किया कि भारतीयता और वेदांत का विचार क्यों श्रेष्ठ है.

कोलकाता महानगर के एक संभ्रांत परिवार में 12 जनवरी, 1863 को जन्मे नरेंद्रनाथ दत्त या नरेन का विवेकानंद हो जाना साधारण घटना नहीं है. बताते हैं कि बाल्यावस्था से ही नरेन एक चंचल प्रकृति के विनोदप्रिय बालक थे. 

स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने बदला विवेकानंद का जीवन

स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने उनकी जिंदगी को पूरा का पूरा बदल डाला. नवंबर, 1881 के आसपास हुई गुरु-शिष्य की इस मुलाकात ने एक ऐसे व्यक्तित्व को संभव किया, जिसे रास्तों की तलाश थी.

स्वामी विवेकानंद ज्यादा बड़े संन्यासी थे या उससे बड़े संचारक (कम्युनिकेटर) या फिर उससे बड़े प्रबंधक यह सवाल हैरत में जरूर डालेगा पर उत्तर हैरत में डालनेवाला नहीं है क्योंकि वे एक नहीं, तीनों ही क्षेत्रों में शिखर पर हैं. वे एक अच्छे कम्युनिकेटर हैं, प्रबंधक हैं और संन्यासी तो वे हैं ही. 

भगवा कपड़ों में लिपटा एक संन्यासी अगर युवाओं का ‘रोल मॉडल’ बन जाए तो यह साधारण घटना नहीं है, किंतु विवेकानंद के माध्यम से भारत और विश्व ने यह होते हुए देखा. उनके विचार अगर आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं तो समय के पार देखने की उनकी क्षमता को महसूस कीजिए. एक बहुत छोटी सी जिंदगी पाकर भी उन्होंने जो कर दिखाया वह इस धरती पर तो चमत्कार सरीखा ही था.

Swami Vivekananda: छोटी जिंदगी का बड़ा पाठ

स्वामी विवेकानंद की बहुत छोटी जिंदगी का पाठ बहुत बड़ा है. वे अपने समय के सवालों पर जिस प्रखरता से टिप्पणियां करते हैं वे परंपरागत धार्मिक नेताओं से उन्हें अलग खड़ा कर देती हैं. वे समाज से भागे हुए संन्यासी नहीं हैं. 

वे समाज में रच-बस कर उसके सामने खड़े प्रश्नों से मुठभेड़ का साहस दिखाते हैं. वे विश्वमंच पर सही मायने में भारत, उसके अध्यात्म, पुरुषार्थ और वसुधैव कुटुंबकम की भावना को स्थापित करने वाले नायक हैं. वे एक गुलाम देश के नागरिक हैं पर उनकी आत्मा, वाणी और कृति स्वतंत्न है. वे सोते हुए देश और उसके नौजवानों को झकझोर कर जगाते हैं और नवजागरण का सूत्नपात करते हैं. 

धर्म को वे जीवन से पलायन का रास्ता बनाने के बजाय राष्ट्रप्रेम, राष्ट्र के लोगों से प्रेम और पूरी मानवता से प्रेम में बदल देते हैं. शायद इसीलिए वे कह पाए- ‘‘व्यावहारिक देशभक्ति सिर्फ एक भावना या मातृभूमि के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति मात्र नहीं है.
 
देशभक्ति का अर्थ है अपने साथी देशवासियों की सेवा करने का जज्बा.’’ अपने जीवन, लेखन, व्याख्यानों में वे जिस प्रकार की परिपक्वता दिखाते हैं, पूर्णता दिखाते हैं वह सीखने की चीज है. 

उनमें अप्रतिम नेतृत्व क्षमता, कुशल प्रबंधन के गुर, परंपरा और आधुनिकता का तालमेल दिखता है. उनमें परंपरा का सौंदर्य है और बदलते समय का स्वीकार भी है. वे आधुनिकता से भागते नहीं, बल्कि उसका इस्तेमाल करते हुए नए समय में संवाद को ज्यादा प्रभावकारी बना पाते हैं.

स्वामी विवेकानंद की खासियत

स्वामीजी का लेखन और संवादकला उन्हें अपने समय में ही नहीं, समय के पार भी एक नायक का दर्जा दिला देती है.

आज के समय में जब संचार और प्रबंधन की विधाएं एक अनुशासन के रूप में हमारे सामने हैं तब हमें पता चलता है कि स्वामीजी ने कैसे अपने पूरे जीवन में इन दोनों विधाओं को साधने का काम किया. 

यह वह समय था जब मीडिया का इतना कोलाहल नहीं था, फिर भी छोटी आयु पाकर भी वे न सिर्फ भारत वरन दुनिया में भी जाने गए. अपने विचारों को लोगों तक पहुंचाया और उनकी स्वीकृति पाई. क्या कम्युनिकेशन की ताकत और प्रबंधन को समझे बिना उस दौर में यह संभव था? 

स्वामीजी के व्यक्तित्व और उनकी पूरी देहभाषा को समझने पर उनमें प्रगतिशीलता के गुण नजर आते हैं. उनका अध्यात्म उन्हें कमजोर नहीं बनाता, बल्कि शक्ति देता है कि वे अपने समय के प्रश्नों पर बात कर सकें. उनका एक ही वाक्य ‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता’ उनकी संचार और संवादकला के प्रभाव को स्थापित करने के लिए पर्याप्त है. 

यह वाक्य हर निराश व्यक्ति के लिए एक प्रभावकारी स्लोगन बन गया. इसे पढ़कर जाने कितने निराश, हताश युवाओं में जीवन के प्रति एक उत्साह पैदा हो जाता है. जोश और ऊर्जा का संचार होने लगता है.  

अपने कर्म, जीवन, लेखन, भाषण और संपूर्ण प्रस्तुति में उनका एक आदर्श प्रबंधक और कम्युनिकेटर का स्वरूप प्रकट होता है. किस बात को किस समय और कितने जोर से कहना, यह उन्हें पता है. 1893 में शिकागो में आयोजित धर्म सम्मेलन में उनकी उपस्थित सही मायने में भारत के आत्मविश्वास और युवा चेतना की मौजूदगी थी, जिसने समूचे विश्व के समक्ष भारत के मानवतावादी पक्ष को रखा.

मात्र 39 साल की आयु में 4 जुलाई, 1902 को वे दुनिया से विदा हो गए, किंतु वे कितने मोर्चो पर कितनी बातें कह और कर गए हैं कि वे हमें आश्चर्य में डालती हैं. आज की युवा शक्ति उनसे प्रेरणा ले सकती है.

Web Title: Pro. Sanjay Dwivedi Blog: Swami Vivekananda role model of youth

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