प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: दिल्ली की तरह कोलकाता की भी बिगड़ी हवा
By प्रमोद भार्गव | Published: October 21, 2019 07:44 AM2019-10-21T07:44:12+5:302019-10-21T07:44:12+5:30
हवा में प्रदूषण की मात्र 100 पॉइंट्स को पार कर 118 से 128 पॉइंट्स पर आ टिकी है. यह फेफड़ों के लिए बेहद हानिकारक है. 27 सिगरेट पीने से जितना फेफड़ों को नुकसान होता है, उतना ही नुकसान यह प्रदूषण पहुंचा रहा है.
दिल्ली की तरह अब कोलकाता से भी वायु प्रदूषण की भयावह खबरें आने लगी हैं. जबकि यहां पराली जलाए जाने से वायु प्रदूषित नहीं हो रही है. फिलहाल दीपावली पर चलाए जाने वाले पटाखों से भी हवा दूषित नहीं हुई है. फिर भी हवा में प्रदूषण की मात्र 100 पॉइंट्स को पार कर 118 से 128 पॉइंट्स पर आ टिकी है. यह फेफड़ों के लिए बेहद हानिकारक है. 27 सिगरेट पीने से जितना फेफड़ों को नुकसान होता है, उतना ही नुकसान यह प्रदूषण पहुंचा रहा है.
सीएनसीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोलकाता में प्रति एक लाख लोगों में से 19 लोगों को फेफड़े का कैंसर हो रहा है. इसका कारण यही प्रदूषण माना जा रहा है. कैंसर पीड़ित इन लोगों में ज्यादातर ऐसे लोग हैं, जो स्वास्थ्य लाभ के लिए सुबह खुले में घूमने जाते हैं. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट, कोलकाता की रिपोर्ट के अनुसार यहां के लोग सबसे ज्यादा प्रदूषित वायु में सांस लेते हैं.
यहां की हवा में पिछले छह सालों में नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्र 2़7 गुना बढ़ गई है. विशेषज्ञ इसे मोटर-कारों की संख्या बढ़ना बता रहे हैं. कार बाजार में आए उछाल से पहले कोलकाता के लोग एक से दो किलोमीटर की दूरी पैदल तय करते थे, इससे प्रदूषण कम होता था. किंतु अब आदमी 500 मीटर भी पैदल चलना नहीं चाहता.
इस मानसिकता के चलते दो एवं चार पहिया वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ी है और उसी अनुपात में प्रदूषण भी बढ़ा है. इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड एवेलुएशन द्वारा संचालित वैश्विक बीमारी रिपोर्ट के मुताबिक हृदय रोग पांचवीं ऐसी बीमारी है, जिससे सबसे ज्यादा लोग मर रहे हैं.
आईआईटी कानपुर के एक अध्ययन के अनुसार 30 प्रतिशत प्रदूषण देश भर में डीजल-पेट्रोल से चलने वाले वाहनों से होता है. इसके बाद 26 प्रतिशत कोयले के कारण हो रहा है. दिवाली पर चलने वाले पटाखों से 5 फीसदी ही प्रदूषण होता है. पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था ग्रीनपीस का मानना है कि 12 लाख भारतीय हर साल वायु प्रदूषण के कारण मरते हैं. यह रिपोर्ट देश के 168 शहरों की वायु की गुणवत्ता का आकलन करके तैयार की गई है.
सबसे ज्यादा हानिकारक वाहनों से निकलने वाला धुआं होता है. इससे निकली गैसें और कण वातावरण में प्रदूषण की मात्र को 40 से 60 प्रतिशत तक बढ़ा देते हैं. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड देश के 121 शहरों में वायु प्रदूषण का आकलन करता है. इसकी एक रिपोर्ट के मुताबिक देवास, कोङिाकोड व तिरुपति को अपवाद स्वरूप छोड़कर देश के बाकी सभी शहरों में प्रदूषण एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रहा है.
इस प्रदूषण की मुख्य वजह तथाकथित वाहन क्रांति है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का दावा है कि डीजल और केरोसिन से होने वाले प्रदूषण से ही कोलकाता में एक-तिहाई बच्चे सांस की बीमारी की जकड़ में हैं. 20 फीसदी बच्चे मधुमेह की चपेट में हैं. इससे हालात की भयावहता को समझ सकते हैं.