प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: देश में वैज्ञानिकों की कमी क्यों?

By प्रमोद भार्गव | Updated: December 23, 2019 04:58 IST2019-12-23T04:58:29+5:302019-12-23T04:58:29+5:30

देश के इन संस्थानों में यह स्थिति तब है, जब सरकार ने पदों को भरने के लिए कई आकर्षक योजनाएं शुरू की हुई हैं. इनमें रामानुजम शोधवृत्ति, सेतु-योजना, प्रेरणा-योजना और विद्यार्थी-वैज्ञानिक संपर्क योजना शामिल हैं. महिलाओं के लिए भी अलग से योजनाएं लाई गई हैं. इनमें शोध के लिए सुविधाओं का भी प्रावधान है.

Pramod Bhargav Blog:Why is there a shortage of scientists in the country? | प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: देश में वैज्ञानिकों की कमी क्यों?

प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: देश में वैज्ञानिकों की कमी क्यों?

Highlightsवर्तमान में देश के 70 प्रमुख शोध-संस्थानों में वैज्ञानिकों के 3200 पद खाली हैं.बेंगलुरु के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) से जुड़े संस्थानों में सबसे ज्यादा 177 पद रिक्त हैं.

प्रमोद भार्गव

वैज्ञानिकों को लुभाने की सरकार की अनेक कोशिशों के बावजूद देश के लगभग सभी शीर्ष संस्थानों में वैज्ञानिकों की कमी बनी हुई है. वर्तमान में देश के 70 प्रमुख शोध-संस्थानों में वैज्ञानिकों के 3200 पद खाली हैं. बेंगलुरु के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) से जुड़े संस्थानों में सबसे ज्यादा 177 पद रिक्त हैं. पुणो की राष्ट्रीय रसायन प्रयोगशाला में वैज्ञानिकों के 123 पद खाली हैं.

देश के इन संस्थानों में यह स्थिति तब है, जब सरकार ने पदों को भरने के लिए कई आकर्षक योजनाएं शुरू की हुई हैं. इनमें रामानुजम शोधवृत्ति, सेतु-योजना, प्रेरणा-योजना और विद्यार्थी-वैज्ञानिक संपर्क योजना शामिल हैं. महिलाओं के लिए भी अलग से योजनाएं लाई गई हैं. इनमें शोध के लिए सुविधाओं का भी प्रावधान है.

इसके साथ ही परदेश में कार्यरत वैज्ञानिकों को स्वदेश लौटने पर आकर्षक पैकेज देने के प्रस्ताव दिए जा रहे हैं. बावजूद इसके न तो छात्रों में वैज्ञानिक बनने की रुचि पैदा हो रही है और न ही विदेश से वैज्ञानिक लौट रहे हैं.

इसकी पृष्ठभूमि में एक तो वैज्ञानिकों को यह भरोसा पैदा नहीं हो रहा है कि जो प्रस्ताव दिए जा रहे हैं, वे निरंतर बने रहेंगे. दूसरे, नौकरशाही द्वारा कार्यप्रणाली में अड़ंगों की प्रवृत्ति भी भरोसा पैदा करने में बाधा बन रही है. शोध-संस्थानों में वैज्ञानिकों की इस कमी की जानकारी संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में पृथ्वी एवं विज्ञान मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने बीते सत्र में दी है.  

दरअसल बीते 70 वर्षो में हमारी शिक्षा प्रणाली ऐसी अवधारणाओं का शिकार हो गई है, जिसमें समझने-बूझने के तर्क को नकारा जाकर रटने की पद्धति विकसित हुई है. दूसरे, संपूर्ण शिक्षा को विचार व ज्ञानोन्मुखी बनाने के बजाय नौकरी अथवा करियर उन्मुखी बना दिया गया है.

देश में जब तक वैज्ञानिक कार्य संस्कृति के अनुरूप माहौल नहीं बनेगा, तब तक दूसरे देशों से प्रतिस्पर्धा में आगे निकलना मुश्किल तो होगा ही, हमारे युवा भी बड़ी संख्या में वैज्ञानिक बनने की दिशा में आगे नहीं बढ़ेंगे.

Web Title: Pramod Bhargav Blog:Why is there a shortage of scientists in the country?

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