प्रकाश बियाणी का ब्लॉग: गोदाम भरे हुए हैं तो पेट न रहें खाली

By Prakash Biyani | Published: April 27, 2020 12:33 PM2020-04-27T12:33:33+5:302020-04-27T12:33:33+5:30

अब कोरोना संकट समाप्त होते ही ये प्रवासी मजदूर फिर रोजगार की तलाश में घर से निकलेंगे. क्या सरकार इस घटना से सबक सीखेगी और ऐसा बंदोबस्त करेगी कि ये जहां हों, इन्हें वहां सस्ता अनाज मिले.

Prakash Biyani blog: If the godowns are full, stomach should not be empty | प्रकाश बियाणी का ब्लॉग: गोदाम भरे हुए हैं तो पेट न रहें खाली

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

सरकारी गोदामों में इस साल 10 मार्च तक 7.7 करोड़ टन से अधिक अनाज भरा हुआ था. खाद्य सुरक्षा के तहत एक साल के राशन का कोटा है साढ़े पांच से छह करोड़ टन. खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्नी रामविलास पासवान सही कहते हैं कि हमारे पास एक साल की जरूरत जितना अनाज है. इस साल गेहूं की बंपर फसल हुई है जिसकी सरकारी खरीद को संगृहीत करना है तो सरकार को गोदाम खाली करने होंगे.

हाल ही में कोरोना संकट के चलते गरीबों के लिए सरकार ने प्रधानमंत्नी गरीब कल्याण योजना लांच की है. तदनुसार अब राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत जारी किए गए राशनकार्ड धारकों को नियमित 5 किलो के अतिरिक्त 5 किलो सस्ता अनाज दिया जा रहा है. ये वे लोग है जिन्हें 2011 की जनगणना में गरीबी की रेखा के नीचे चिन्हित किया गया था. देश की आबादी तब 121 करोड़ थी, जिनमें से 81 करोड़ को सरकार ने सस्ते अनाज का हकदार मानते हुए इन्हें राशन उपलब्ध करवाने का जिम्मा 5 लाख राशन दुकानों को सौंपा था.

कोरोना महामारी के बाद सारे देश में लॉकडाउन हुआ तो देश में नया वर्ग जन्मा अप्रवासी मजदूर. ये उन निर्धन प्रदेशों के युवा हैं जो रोजगार के लिए महानगरों में शिफ्ट हुए हैं. इनकी संख्या लगभग 9 करोड़ है. ये जहां हैं वहां इनके पास राशनकार्ड नहीं हैं. लॉकडाउन के बाद कोरोना के डर और भुखमरी से बचने के लिए अप्रवासी मजदूरों ने अनायास अपने घरों के लिए पैदल ही पलायन शुरू किया तो सरकार को आभास हुआ कि इन्हें जहां हैं वहीं रोकना है तो इनके रहने-खाने का नि:शुल्क बंदोबस्त करना होगा. राज्य सरकारों से उम्मीद थी कि वे यह बंदोबस्त करेंगी, पर ऐसा नहीं हुआ.  

अब कोरोना संकट समाप्त होते ही ये प्रवासी मजदूर फिर रोजगार की तलाश में घर से निकलेंगे. क्या सरकार इस घटना से सबक सीखेगी और ऐसा बंदोबस्त करेगी कि ये जहां हों, इन्हें वहां सस्ता अनाज मिले. यूं भी अब देश की आबादी 137 करोड़ से ज्यादा हो गई है. इनमें से 92 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं. यानी 11 करोड़ से ज्यादा पात्न लोगों को राशन दुकानों से अभी सस्ता अनाज नहीं मिल रहा है जबकि सरकारी गोदामों में संग्रहण की सुविधा न होने से अनाज बर्बाद हो रहा है.

Web Title: Prakash Biyani blog: If the godowns are full, stomach should not be empty

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