ब्लॉग: सत्ता की नहीं, विचारों की लड़ाई लड़ें राजनीतिक दल

By विश्वनाथ सचदेव | Published: May 19, 2022 08:31 AM2022-05-19T08:31:52+5:302022-05-19T08:37:19+5:30

हाल ही में राजस्थान के उदयपुर में हुए कांग्रेस पार्टी के चिंतन-शिविर में इस दिशा में की गई कोशिश का दिखना एक अच्छा संकेत है. कहते हैं किसी भी मर्ज के इलाज से पहले उसका सही निदान जरूरी होता है. इस दृष्टि से देखें तो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने इस शिविर में सही नब्ज पर हाथ रखा है. 

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ब्लॉग: सत्ता की नहीं, विचारों की लड़ाई लड़ें राजनीतिक दल

Highlightsराहुल गांधी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि कांग्रेस का देश की जनता से संपर्क टूट गया है.छह दशक के लंबे शासन में कई अवसर आए जब कांग्रेस की रीति-नीति से देश की जनता को शिकायत हुई.भारतीयता की भावना को मजबूत बनाने की कोशिश हमारी चिंता का विषय होनी चाहिए. 

अध्यात्म के क्षेत्र में चिंतन-मनन का कुछ भी अर्थ होता हो, राजनीति की दुनिया में चिंतन का रिश्ता राजनीतिक नफा-नुकसान के गणित से ही जोड़ा जाता है. फिर भी राजनीतिक दलों के चिंतन-शिविर कभी-कभी धुंध साफ करने का काम कर जाते हैं. 

हाल ही में राजस्थान के उदयपुर में हुए कांग्रेस पार्टी के चिंतन-शिविर में इस दिशा में की गई कोशिश का दिखना एक अच्छा संकेत है. कहते हैं किसी भी मर्ज के इलाज से पहले उसका सही निदान जरूरी होता है. इस दृष्टि से देखें तो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने इस शिविर में सही नब्ज पर हाथ रखा है. 

अपने भाषण में राहुल गांधी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि कांग्रेस का देश की जनता से संपर्क टूट गया है. किसी भी राजनीतिक दल के लिए यह स्थिति चिंतन की आवश्यकता को तो रेखांकित करती ही है, चिंता का भी विषय होनी चाहिए.

कोई भी पार्टी यह दावा नहीं कर सकती कि उससे गलती नहीं होती. ऐसी गलतियां ही किसी पार्टी को जनता से दूर करती हैं, जनता से उसके संपर्क को कमजोर बनाती हैं. कांग्रेस के साथ ऐसा ही हुआ. 

छह दशक के लंबे शासन में कई अवसर आए जब कांग्रेस की रीति-नीति से देश की जनता को शिकायत हुई. जनतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है. उसने ऐसे हर अवसर पर कांग्रेस नेतृत्व को पाठ पढ़ाया. यह पाठ पढ़ाने की इसी प्रक्रिया का हिस्सा है कि पिछले दो आम-चुनावों में कांग्रेस को भारी पराजय का मुंह देखना पड़ा.

लेकिन ऐसी पराजय में ही भविष्य की कोई जीत छिपी होती है. जनतंत्र में जीत-हार राजनीतिक प्रक्रिया का हिस्सा है. लेकिन जरूरी है कि न तो जीतने वाला अपनी जीत पर रीझे और न हारने वाला हार से निराश होकर बैठ जाए. ऐसे में दोनों को चिंतन की आवश्यकता होती है. 

जीतने वाले को अपनी जीत को मजबूत बनाने के लिए और हारने वाले को हार की निराशा से उबरने के लिए. इसी चिंतन की अगली कड़ी है संकल्प- आने वाले कल को बेहतर बनाने का संकल्प. ‘भारत जोड़ो’ का नारा देकर, और इसके लिए संकल्प-बद्ध होकर कांग्रेस पार्टी ने अपने उदयपुर शिविर में यही कदम उठाने की घोषणा की है.

पर सिर्फ घोषणाएं पर्याप्त नहीं होतीं. घोषणाओं की क्रियान्विति उन्हें सही अर्थ देती है. भारत-जोड़ो अभियान ऐसी ही एक सार्थक कोशिश सिद्ध हो सकती है, बशर्ते कोशिश ईमानदार हो. पूरी निष्ठा और विश्वास के साथ की जाए यह कोशिश.

इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले कुछ दशकों में कांग्रेस और देश की जनता के बीच दूरी बढ़ी है. संपर्क टूटा है. चुनावों के परिणाम इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि इस दूरी को कम करने की कोशिशों में कहीं न कहीं कमी रही है. 

आवश्यकता इस कमी को दूर करने की है. आज देश जिस स्थिति में है उसमें राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर सोचने की आवश्यकता है. लड़ाई सत्ता की नहीं, विचार की है. हमारा भारत मानवीय आदर्शों और मूल्यों को मानने वाला हो, इसके लिए आवश्यक है कि हम एक ऐसा समाज बनाएं जिसमें हर नागरिक स्वयं को एक भारतीय के रूप में देखे. हर भारतीय एक जैसा हो. उसके अधिकार भी समान हों, और कर्तव्य भी. 

न तो किसी धर्म-विशेष का होने से कोई अधिक भारतीय बन सकता है और न ही किसी जाति-विशेष के आधार पर किसी के अधिकार दूसरे से अधिक हो सकते हैं. यह भारतीयता हमारे चिंतन का केंद्र होनी चाहिए. इस भारतीयता की भावना को मजबूत बनाने की कोशिश हमारी चिंता का विषय होनी चाहिए. 

यह एक चुनौती है जो आज के भारत के सामने खड़ी है. हर राजनीतिक दल को, हर विचारधारा वाले भारतीय को यह संकल्प लेना होगा कि वह एक मजबूत भारत बनाने की ईमानदार कोशिश करेगा. वह मजबूत भारत हिंदू या मुसलमान का नहीं, सिख या ईसाई का नहीं, हर भारतीय का होगा. ‘भारत जोड़ो’ का यही मतलब हो सकता है.

Web Title: political parties politics ideology congress chintan shivir

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