राज कुमार सिंह का ब्लॉग: आधी आबादी के साथ राजनीतिक छल
By राजकुमार सिंह | Updated: May 20, 2024 10:57 IST2024-05-20T10:56:01+5:302024-05-20T10:57:29+5:30
आधी आबादी के हिस्से बमुश्किल 10-15 प्रतिशत टिकट ही आती है, उनमें भी ज्यादातर पर कब्जा राजनीतिक परिवारों से आनेवाली महिलाओं और सेलिब्रिटी मानी जानेवाली महिलाओं का रहता है.

प्रतीकात्मक तस्वीर
संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देनेवाला नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित हो जाने के बाद भी आधी आबादी के प्रति राजनीतिक दलों के व्यवहार में बदलाव नहीं दिखता. महिला सशक्तिकरण की बात सभी दल करते हैं, लेकिन जब चुनाव में टिकट देने का मौका आता है तो कन्नी काट लेते हैं.
आधी आबादी के हिस्से बमुश्किल 10-15 प्रतिशत टिकट ही आती है, उनमें भी ज्यादातर पर कब्जा राजनीतिक परिवारों से आनेवाली महिलाओं और सेलिब्रिटी मानी जानेवाली महिलाओं का रहता है. आम परिवारों से आनेवाली राजनीतिक कार्यकर्ता अक्सर ठगी-सी महसूस करती हैं.
पिछले साल भारी सस्पेंस के बीच नए संसद भवन में हुए विशेष सत्र में नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित करते वक्त लंबे-चौड़े वायदे किए गए थे, लेकिन उनकी कलई इन लोकसभा चुनावों में खुल गई है. वायदा महिलाओं को लोकसभा और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण देने का था, लेकिन इन चुनावों में पांचवें चरण तक उन्हें टिकट देने का प्रतिशत 12 पर ही पहुंच पाया है.
बेशक संसद द्वारा पारित विधेयक में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण लागू करने की तारीख तय नहीं, लेकिन उसके बाद हो रहे पहले लोकसभा चुनाव में उस दिशा में ईमानदार पहल तो दिखनी चाहिए थी. वह विधेयक पारित होने के बाद पिछले साल के अंत में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से भी राजनीतिक दलों की कथनी-करनी में भारी अंतर दिखा था.
फिर भी उम्मीद थी कि जिस संसद ने महिला आरक्षण पर मुहर लगाई, उसके चुनाव में तो टिकट वितरण में कुछ गंभीरता दिखेगी. आलम यह है कि पहले दो चरणों के मतदान में महिला उम्मीदवारों का प्रतिशत मात्र आठ रहा. तीसरे चरण में यह प्रतिशत नौ तक पहुंचा और चौथे चरण में दस तक. पांचवें चरण में यह 12 प्रतिशत तक पहुंच पाया है. क्या यह देश की लगभग 50 प्रतिशत आबादी से छल नहीं है?
नारी शक्ति वंदन अधिनियम पर संसद में बहस के दौरान और उसके बाद बाहर भी, राजनीतिक दलों के वायदों का क्या हुआ? टिकट देने में यह उदासीनता क्या इसलिए है कि अभी तक संगठन में भी महिलाओं को अग्रिम पंक्ति में नहीं लाया जा सका है? जो राजनीतिक दल संगठनात्मक ढांचे में महिलाओं को एक-तिहाई हिस्सेदारी नहीं दे सकते, वे संसद और विधानसभाओं में वास्तव में दे देंगे, यह दिवास्वप्न ज्यादा लगता है.
यह भी शेष राजनीतिक दलों पर बेहद तल्ख टिप्पणी है कि ओडिशा में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल देश में एकमात्र ऐसा दल है, जो महिलाओं को 33 प्रतिशत टिकट देने की अपनी वचनबद्धता पर हर चुनाव में ईमानदारी से अमल भी करता है.