शी जिनपिंग का भारत दौरा: कैसे पीएम मोदी ने किया एक तीर से दो शिकार
By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 12, 2019 03:28 PM2019-10-12T15:28:47+5:302019-10-12T15:28:47+5:30
मैंने लिखा था कि चीन और भारत की क्या-क्या मजबूरियां हैं कि जिनके चलते उन्हें आपसी संबंधों को आगे बढ़ाना पड़ रहा है
मैंने लिखा था कि चीन और भारत की क्या-क्या मजबूरियां हैं कि जिनके चलते उन्हें आपसी संबंधों को आगे बढ़ाना पड़ रहा है. महाबलीपुरम में जो कुछ हुआ, वह जो ह्यूस्टन में हुआ है, उससे किसी तरह कम नहीं है. भारत और चीन के सदियों पुराने संबंधों को नरेंद्र मोदी ने आज जिस तरह रेखांकित किया है, वैसा तो हिंदी-चीनी भाई-भाई के दौर में जवाहरलाल नेहरू भी नहीं कर सके थे.
मोदी ने लुंगी पहनकर और शी को नारियल पानी पिलाकर एक तीर से दो शिकार कर लिए. उन्होंने दक्षिण के लोगों के दिलों को छू लिया और चीन-भारत सांस्कृतिक संबंधों की प्राचीनता को रेखांकित कर दिया.
उस समय चीन में नई-नई माओ और चाऊ एन-लाई की सरकार बनी थी. वह कमजोर भी थी और दुनिया में चीन का विरोध भी था. शीतयुद्ध के उस जमाने में चीन के मुकाबले भारत का पाया ज्यादा मजबूत था लेकिन आज चीन का सारी दुनिया में बोलबाला है, खासकर भारत के पड़ोसी देश में. आज जबकि चीनी राष्ट्रपति भारत में हैं, चीन ने नया दांव चला है.
उसने कश्मीर के सवाल पर संयुक्तराष्ट्र के जिक्र को हटा लिया है. इस स्थिति को ज्यों का त्यों चलने दिया जाए तो भी भारत का कोई नुकसान नहीं है लेकिन इस सारी कसरत में से भारत का कुछ ठोस फायदा भी निकलना चाहिए. ह्यूस्टन में जो अपूर्व सभा हुई, उसमें नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत छवि तो जरूर चमक गई लेकिन भारत को फायदा क्या हुआ ? डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने प्रवासी भारतीय वोटरों को जरूर प्रभावित कर लिया लेकिन भारत-अमेरिकी व्यापार का मुद्दा आज भी अधर में लटका हुआ है.
इसी प्रकार भारत-चीन व्यापार में भारत को जो 60 बिलियन डॉलर का घाटा है, वह पूरा होगा या नहीं ? अमेरिकी-चीन व्यापार संकट के इस दौर में भारत को क्या 100-200 बिलियन डॉलर का फायदा हो सकता है ? इसमें जरा भी शक नहीं कि यदि हिंदी-चीनी भाई-भाई का दौर फिर से शुरू हो जाए तो यह 21 वीं सदी एशिया की सदी बने बिना नहीं रहेगी.