हर छोटे तमाशे पर भारी बड़ा तमाशा, पीयूष पांडे का ब्लॉग
By पीयूष पाण्डेय | Updated: August 29, 2020 19:42 IST2020-08-29T19:42:32+5:302020-08-29T19:42:32+5:30
दावा किया जाता है- ‘आज फलां खुलासा आपके होश उड़ा देगा.’ कई दर्शक इतनी बार अपने होश उड़वा चुके हैं कि उनके होश ने अब हड़ताल कर दी है. चैनल के रिपोर्टर तनाव में हैं क्योंकि उन्हें जमीन-आसमान कहीं से भी खुलासा खोज के लाना है. इस कड़ी में स्टिंग आपरेशन हो रहे हैं.

पैसे के विषय में बहुत साल पहले एक नेताजी ‘स्टिंग आपरेशन’ में ही कह गए हैं कि पैसा खुदा तो नहीं, मगर खुदा से कम भी नहीं.
इन दिनों एक अभिनेता की मौत की गुत्थी समाचार चैनलों के लिए ‘राष्ट्रीय समस्या’ बनी हुई है. चैनल दर्शकों के लिए रोज दो-चार कथित खुलासे लाते हैं. दावा किया जाता है- ‘आज फलां खुलासा आपके होश उड़ा देगा.’ कई दर्शक इतनी बार अपने होश उड़वा चुके हैं कि उनके होश ने अब हड़ताल कर दी है. चैनल के रिपोर्टर तनाव में हैं क्योंकि उन्हें जमीन-आसमान कहीं से भी खुलासा खोज के लाना है. इस कड़ी में स्टिंग आपरेशन हो रहे हैं.
स्टिंग आपरेशन के विषय में सबसे मजेदार बात यह है कि ये किसी का भी हो सकता है. मतलब-बंदा सीधे-सीधे इंटरव्यू देने को तैयार हो, फिर भी आप उसका स्टिंग आपरेशन कर सकते हैं. कुछ रिपोर्टर यही कर रहे हैं. पकड़-पकड़ कर स्टिंग आपरेशन हो रहे हैं.
स्टिंग आपरेशन से सनसनी पैदा होती है. सनसनी से चीखने का उन्माद आता है. उन्माद से टीआरपी आती है. टीआरपी से पैसा आता है और पैसे के विषय में बहुत साल पहले एक नेताजी ‘स्टिंग आपरेशन’ में ही कह गए हैं कि पैसा खुदा तो नहीं, मगर खुदा से कम भी नहीं.
हर न्यूज चैनल का अपना-अपना अलग रसोड़ा उर्फ स्टूडियो है, जिसमें शाम को दरबार सजता है. मृत्यु एक तमाशे में तब्दील है. और ये तमाशा तब तक चलेगा, जब तक चैनल की टीआरपी आएगी. किसी की मौत से भी टीआरपी आए तो न्यूज चैनल के दफ्तर में जश्न होता है. टीआरपी नहीं आए तो बाहर कितना भी खुशनुमा माहौल हो, चैनल के दफ्तर में मातम पसरा रहता है.
जिस तरह बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है, उसी तरह हर बड़ा एक्सक्लूसिव तमाशा छोटे तमाशे को खा जाता है. किंतु, इस बार तमाशा मृत्यु का बना है. हद ये कि तमाशा भी सिर्फ उसी की मृत्यु का बनता है, जिसकी मृत्यु में ग्लैमर हो. कभी किसान की आत्महत्या की खबर तमाशे में तब्दील होती देखी है आपने? कभी किसी एंकर को स्टूडियो में चिल्लाते सुना है कि देश जानना चाहता है कि अन्नदाता क्यों खुदकुशी करने को मजबूर है. क्यों बच्चियों के रेप कम नहीं हो रहे. क्यों पीएचडी धारक चपरासी बनने को मजबूर है.
निश्चित रूप से मृत्यु व्यंग्य का विषय नहीं. व्यंग्य तो जीवन में पग-पग पर है. मृत्यु का चरित्र तो सत्यवादी हरिश्चंद्र की तरह है. निश्चित. वो आपसे रूठ नहीं सकती. वरना इस दौर में कौन, किससे, कब, क्यों रूठ जाए, कहना मुश्किल है. कई बार आपका मित्र आपसे उस बात पर रुठ जाता है, जिसका आपको इल्म नहीं होता.
सरकारों से वोटर रूठ जाते हैं और सरकार को कानों-कान खबर भी नहीं होती. आलाकमान कब नेता से रुठ जाए, इसे नापने का कोई यंत्र आज तक नहीं बना. श्रीमतीजी कब नाराज हो जाएं- इसे तो स्वयं ईश्वर नहीं जान पाए. कहने का आशय ये कि रुठना स्वाभाविक क्रिया है, लेकिन खबर के नाम पर हल्ला मचाने वाले चैनलों से दर्शक क्यों नहीं रूठते, ये पता नहीं चलता.