पीयूष पांडे का ब्लॉग: अपने-अपने ‘विकास’ की सबको चिंता

By पीयूष पाण्डेय | Published: October 31, 2020 02:24 PM2020-10-31T14:24:03+5:302020-10-31T14:24:03+5:30

हिंदुस्तान या पाकिस्तान की बुनियादी समस्या लगभग एक जैसी ही हैं. आजादी के इतने सालों बाद भी दोनों देश इससे निपटने में लगे हैं. ऐसे में नॉर्वे का ये उदाहरण देखिए कि कैसे एक छोटा देश रोज अपनी समस्याओं का हल निकालने में जुटा रहता है.

Piyush Pandey's blog: in India and Pakistan Everyone worries about their 'development' | पीयूष पांडे का ब्लॉग: अपने-अपने ‘विकास’ की सबको चिंता

पीयूष पांडे का ब्लॉग: अपने-अपने ‘विकास’ की सबको चिंता

Highlightsनॉर्वे में लोगों को सरकार से अमूमन कोई समस्या नहीं होती, आपसी कोशिश से निकालते हैं हर मुश्किल का हलहिंदुस्तान में भी सबको विकास चाहिए लेकिन सबका अपना-अपना अलग ‘विकास’ है

नॉर्वे यूरोप का एक बहुत छोटा देश है. इतना छोटा कि हिंदुस्तान या पाकिस्तान के टॉप 50 प्रदर्शनकारी ठान लें तो वहां पहुंचकर अपने हुनर से पूरा देश जाम कर सकते हैं. चूंकि दोनों देशों के टॉप प्रदर्शनकारी सदैव अपने-अपने देश में चक्काजाम करने में व्यस्त रहते हैं, लिहाजा नॉर्वे में कभी ऐसी नौबत नहीं आई. नॉर्वे में लोगों को सरकार से अमूमन कोई समस्या नहीं होती. 

जिस तरह हिंदुस्तान की नगर पालिकाओं में हर वार्ड का एक पार्षद होता है, उसी तरह नॉर्वे में भी अलग-अलग मुहल्लों से पदाधिकारी चुने जाते हैं. नॉर्वे में रह रहे मेरे एक हिंदुस्तानी मित्र ने मुझे बताया था कि चुने हुए पदाधिकारी हर सप्ताह एक दिन बैठक करते हैं और ऐसी समस्या खोजते हैं, जिसे हल किया जा सके. 

काफी चिंतन के बाद जब उन्हें कोई समस्या नहीं मिलती तो वे लोग आपसी सहमति से समस्या पैदा करते हैं और फिर उसे हल करते हैं. मसलन, राय बनाई जाती है कि फलां मुहल्ले की स्ट्रीट लाइट पुरानी हो गई हैं, लिहाजा नई लगवा दी जाएं या फुटपाथ पर नई डिजाइन की कोई बेंच लगवा दें वगैरह वगैरह.

हिंदुस्तानियों या पाकिस्तानियों की यही खूबी है कि उनके लिए विकास के मायने यूरोपीय और अमेरिकी देशों के लोगों की सोच से बहुत अलग हैं. 

यहां कई इलाकों में आज तक सड़क को गड्ढों ने गोद ले रखा है लेकिन लोगों को परवाह नहीं. कई गांवों में बिजली नहीं पहुंची लेकिन लोगों को ढेले भर की चिंता नहीं. कई हिस्सों में पीने का पानी मयस्सर नहीं लेकिन इस पर कोई आंदोलन नहीं. चुनाव के वक्त जब लोगों को उम्मीदवारों से इलाके के विकास के बाबत सवाल करने होते हैं, तब उनके लिए विकास का अर्थ हो जाता है अपनी जाति का बंदा विधानसभा-संसद पहुंच जाए.

मजेदार बात यह है कि सबको विकास चाहिए लेकिन सबका अपना-अपना अलग ‘विकास’ है. पार्टी नेताओं के लिए टिकट ही विकास है. जीते हुए नेता के लिए मंत्नीपद विकास है. बाबू के लिए कमीशन, ठेकेदार के लिए ठेका, मास्टर के लिए ज्यादा से ज्यादा ट्यूशन, खिलाड़ी के लिए धुआंधार विज्ञापन, लेखक के लिए फेलोशिप, गुंडों के लिए कब्जा और सुपारी किलर के लिए सुपारी विकास है. विकास बिल्कुल नए अर्थो में हिंदुस्तान की जमीन पर प्रस्फुटित होता है.

Web Title: Piyush Pandey's blog: in India and Pakistan Everyone worries about their 'development'

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