पीयूष पांडे का ब्लॉग: कभी-कभी मेरे दिल में ‘पॉजीटिव’ ख्याल आते हैं

By पीयूष पाण्डेय | Updated: May 15, 2021 16:04 IST2021-05-15T16:04:14+5:302021-05-15T16:04:50+5:30

कभी-कभी मेरे मन में घनघोर पॉजीटिव ख्याल ये आता है कि देश के सारे कालाबाजारी साधु हो गए और सारे बयानवीर नेता मौनी बाबा।

Piyush Pandey blog about Sometimes I have positive thoughts in my heart | पीयूष पांडे का ब्लॉग: कभी-कभी मेरे दिल में ‘पॉजीटिव’ ख्याल आते हैं

(फाइल फोटो)

कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आते हैं। पॉजीटिव। लेकिन इन दिनों ‘पॉजीटिव’ शब्द ही भयंकर निगेटिव हो गया है। जिस तरह किसी जमाने में राष्ट्रसेवा को समर्पित शब्द ‘राजनीति’ अब धांधली, मक्कारी और लफ्फाजी को समर्पित हो चुका है, और अच्छे घरों के कई लोग अपने बच्चों के राजनीति में जाने की बात सुनते ही सिहर उठते हैं, वैसे ही मैं ‘पॉजीटिव’ शब्द जुबां पर लाने से घबरा रहा हूं।

मैंने सबसे पहले पत्नी को अपने विचार बताने की कोशिश की। मैंने कहा- ‘सुनो, कुछ दिनों से बहुत पॉजीटिव विचार...’ उसने ‘पॉजीटिव’ शब्द सुनते ही मुझे दुत्कारते हुए कहा- ‘ज्यादा पॉजीटिव पॉजीटिव मत करो। चुपचाप घर के अंदर वाले कमरे में बैठो। और दो मास्क लगा लेना। इससे कोरोना से बचे रहोगे और तुम्हारा मुंह भी थोड़ा बंद रहेगा।’खैर, हिंदुस्तान में जब कोरोना से पॉजीटिव हुए लाखों बंदे अपनी करतूत से बाज नहीं आ रहे और क्वारंटीन होने के बजाय खुले में घूम रहे हैं तो मैं कैसे बाज आ जाता। मैंने अपने पॉजीटिव विचार लिखने का मन बनाया।

दरअसल, कभी-कभी मेरे मन में ख्याल आता है कि देश के हर छोटे-बड़े इलाकों में कई-कई सरकारी अस्पताल होंगे, जो निजी अस्पतालों से भी बेहतर होंगे और गरीब लोगों के लिए बिल्कुल नि:शुल्क। अस्पताल में बेड की कमी को अपराध माना जाएगा। जिस तरह हर गली-मुहल्ले के कोने में पनवाड़ी बैठा रहता है, वैसे ही हर मुहल्ले के कोने में एक छोटा ऑक्सीजन प्लांट होगा। जिस तरह ऑर्डर करने पर आधे घंटे में पिज्जा घर पहुंच जाता है, वैसे ही आधे घंटे में घर पर दवाइयां पहुंच जाएंगी।  

कभी-कभी मेरे मन में ख्याल आता है कि जिस देश में लाखों हेक्टेयर जंगल बिना इजाजत के काटे जा रहे हों, वहां श्मशान में कम से कम लकड़ियों की कमी न हो। जिन बंदों को जीते जी अच्छी स्वास्थ्य सेवा नहीं मिली, उन्हें मरने के बाद तो कायदे से अंतिम संस्कार नसीब हो। गंगा में अस्थियां में मिले फूल भले दिख जाएं लेकिन बहती लाशों के दर्शन न हों।

मगर ये हो न सका। और अब ये आलम है कि अखबार-फेसबुक-ट्विटर खोलने से डर लगता है। जान बचाने के अलावा अब कोई जुस्तजू नहीं और गुजर रही है जिंदगी कुछ इस तरह, जैसे मेडिकल सुविधाओं के सहारे के अलावा किसी और चीज की आरजू ही नहीं।सच कहूं, कभी-कभी पॉजीटिव ख्याल आता है कि मौत सिर्फ आंकड़े में और श्रद्धांजलि औपचारिकता में तब्दील न हो।
 

Web Title: Piyush Pandey blog about Sometimes I have positive thoughts in my heart

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