पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग:आफत बनते आवारा मवेशी

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: October 10, 2019 08:30 IST2019-10-10T08:30:23+5:302019-10-10T08:30:23+5:30

पिछले दो दशकों से मध्य भारत का अधिकांश हिस्सा तीन साल में एक बार अल्प वर्षा का शिकार रहा है. यहां से रोजगार के लिए पलायन की परंपरा भी एक सदी से ज्यादा पुरानी है

Pankaj Chaturvedi's blog: Stray cattle becoming a disaster | पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग:आफत बनते आवारा मवेशी

पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग:आफत बनते आवारा मवेशी

(पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग)

उत्तरप्रदेश ही नहीं, लगभग सारे देश में बेसहारा गौवंश, भले ही राजनीति का अस्त्र बन गया हो, लेकिन यह भी सच है कि उनकी बेहद दुर्गति है. जिस पशु-धन से देश की समृद्धि का द्वार खुल सकता है, वह भूखा- लावारिस सड़कों पर यहां-वहां घूम रहा है.  एक सरकारी अनुमान है कि आने वाले आठ सालों में भारत की सड़कों पर कोई 27 करोड़ आवारा मवेशी होंगे. यदि उन्हें सलीके से रखना हो तो उसका व्यय पांच लाख 40 हजार करोड़ होगा. यह राशि हमारे कुल सालाना बजट से कहीं ज्यादा है.  

यहां जानना जरूरी है कि सन् 1968 तक देश के हर गांव- मजरे में तीन करोड़ 32 लाख 50 हजार एकड़ गोचर की जमीन हुआ करती थी, जहां आवारा या छुट्टा पशु चर कर अपना पेट भर लेते थे. सनद रहे कि चरागाह की जमीन बेचने या उसका अन्य काम में इस्तेमाल पर हर तरह की रोक है. शायद ही कोई ऐसा गांव या मजरा होगा जहां पशुओं को चरने की जमीन के साथ कम से कम एक तालाब और कोई कुएं नहीं हों.

पिछले दो दशकों से मध्य भारत का अधिकांश हिस्सा तीन साल में एक बार अल्प वर्षा का शिकार रहा है. यहां से रोजगार के लिए पलायन की परंपरा भी एक सदी से ज्यादा पुरानी है. लेकिन दुधारू मवेशियों को मजबूरी में छुट्टा छोड़े देने का रोग अभी कुछ दशक से ही है. दूध न देने वाले मवेशी को आवारा छोड़ देने के चलते यहां खेत व इंसान दोनों पर संकट है. जब फसल कुछ  हरी होती है तो अचानक ही हजारों गायों का रेवड़ आता है व फसल चट कर जाता है. यदि गाय को मारो तो धर्म-रक्षक खड़े हो जाते हैं और खदेड़ों तो बगल का खेत वाला बंदूक निकाल लेता है.

आज जरूरत है कि आवारा पशुओं के इस्तेमाल, उनके कमजोर होने पर गौशाला में रखने और मर जाने पर उनकी खाल, सींग आदि के पारंपरिक तरीके से इस्तेमाल की स्पष्ट नीति बने. आज जिंदा जानवर से ज्यादा खौफ मृत गौ-वंश का है, भले ही वह अपनी मौत मरा हो. तभी बड़ी संख्या में गौपालक गाय पालने से मुंह मोड़ रहे हैं.देश व समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पशु-धन को सहेजने के प्रति दूरंदेशी नीति व कार्य योजना आज समय की मांग है

Web Title: Pankaj Chaturvedi's blog: Stray cattle becoming a disaster

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