पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: पर्यावरण प्रदूषण को गंभीर बनाता ई-कचरा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 5, 2019 01:08 PM2019-11-05T13:08:46+5:302019-11-05T13:08:46+5:30

वैसे तो केंद्र सरकार ने सन 2012 में ई-कचरा (प्रबंधन एवं संचालन) नियम लागू किया है, लेकिन इसमें दिए गए दिशा-निर्देश का पालन होता कहीं दिखता नहीं है

Pankaj Chaturvedi's blog: e-waste makes environmental pollution serious | पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: पर्यावरण प्रदूषण को गंभीर बनाता ई-कचरा

पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: पर्यावरण प्रदूषण को गंभीर बनाता ई-कचरा

दिल्ली व उसके आसपास जहरीले धुएं ने लोगों की सांसों में सिहरन पैदा करना शुरू किया तो प्रशासन भी जागा और  राजधानी से सटे लोनी में पुलिस ने 30 जगह छापा मार कर 100 क्विंटल से ज्यादा ई-कचरा जब्त किया. असल में इन सभी कारखानों में ई-कचरे को सरेआम जला कर अपने काम की धातुएं निकालने का अवैध कारोबार होता था. इसके धुएं से पूरा इलाका परेशान था. अब गाजियाबाद पुलिस के पास ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहां इस कचरे को सहेज कर रखा जा सके. जाहिर है कि यह घूम-फिर कर आज नहीं तो कल वहीं पहुंच जाएगा जहां से आया है. हमारी सुविधाएं, विकास के प्रतिमान और आधुनिकता के आईने जल्दी ही हमारे लिए गले का फंदा बनने वाले हैं.

आज देश में लगभग 18.5 लाख टन ई-कचरा हर साल निकल रहा है. दुर्भाग्य है कि इसमें से महज ढाई फीसदी कचरे का ही सही तरीके से निपटारा हो रहा है. बाकी कचरा अवैध तरीके से निपटारे के लिए छोड़ दिया जाता है. भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का इस्तेमाल भले ही अब अपरिहार्य बन गया हो, लेकिन यह भी सच है कि इससे उपज रहे कचरे को सही तरीके से नष्ट (डिस्पोज) करने की तकनीक का घनघोर अभाव है. घरों और यहां तक कि बड़ी कंपनियों से निकलनेवाला ई-वेस्ट ज्यादातर कबाड़ी उठाते हैं. वे इसे या तो किसी लैंडफिल में डाल देते हैं या फिर कीमती मेटल निकालने के लिए इसे जला देते हैं, जो कि और भी नुकसानदेह है.

वैसे तो केंद्र सरकार ने सन 2012 में ई-कचरा (प्रबंधन एवं संचालन) नियम लागू किया है, लेकिन इसमें दिए गए दिशा-निर्देश का पालन होता कहीं दिखता नहीं है. मई 2015 में ही संसदीय समिति ने देश में ई-कचरे के चिंताजनक रफ्तार से बढ़ने की बात को रेखांकित करते हुए इस पर लगाम लगाने के लिए विधायी एवं प्रवर्तन तंत्र स्थापित करने की सिफारिश की थी.

ऐसा नहीं है कि ई-कचरा महज कचरा या आफत ही है. झारखंड के जमशेदपुर स्थित राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला के धातु निष्कर्षण विभाग ने ई-कचरे में छुपे सोने को खोजने की सस्ती तकनीक खोज ली है. इसके माध्यम से एक टन ई-कचरे से 350 ग्राम सोना निकाला जा सकता है. जानकारी है कि मोबाइल फोन पीसीबी बोर्ड की दूसरी तरफ कीबोर्ड के पास सोना लगा होता है. यह भी समाचार है कि अगले ओलंपिक में विजेता खिलाड़ियों को मिलने वाले मैडल भी ई-कचरे से ही बनाए जा रहे हैं. जरूरत बस इस बात की है कि कूड़े को गंभीरता से लिया जाए, उसके निस्तारण की जिम्मेदारी उसी कंपनी को सौंपी जाए जिसने उसे बेच कर मुनाफा कमाया है और ऐसे कूड़े के लापरवाही से निस्तारण को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा जाए.
 

Web Title: Pankaj Chaturvedi's blog: e-waste makes environmental pollution serious

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