पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: अभी भी बरकरार है किताबों का आकर्षण
By पंकज चतुर्वेदी | Published: March 11, 2021 03:10 PM2021-03-11T15:10:59+5:302021-03-11T15:11:30+5:30
किताबें हर विषम हालात का मुकाबला करने में सक्षम हैं, वे नई परिस्थितियों में ढल कर, किसी भी तकनीकी में लिप्त हो कर ज्ञान-ज्योति प्रज्ज्वलित रखने में हिचकिचाती नहीं हैं.
एक अंजान, अदृश्य जीवाणु ने जब सारी दुनिया की चहलकदमी रोक दी, इंसान को घर में बंद रहने पर मजबूर कर दिया, फिर भी कोई भी भय इंसान की सृजनात्मकता, विचारशीलता और उसे शब्दों में पिरो कर प्रस्तुत करने की क्षमता पर अंकुश नहीं लगा पाया. यों भी कहें तो अतिश्यिोक्तिन होगी कि इस अजीब परिवेश ने न केवल लिखने के नए विषय दिए, बल्कि लेखक की पाठकों से दूरियां कम हुईं, नई तकनीकी के माध्यम से मुहल्ले, कस्बों के विमर्श अंतर्राष्ट्रीय हो गए.
शुरुआत में कुछ दिनों में जब मुद्रण संस्थान ठप्प रहे, जब समझ आ गया कि पुस्तक मेलों-प्रदर्शनियों के दिन जल्दी आने वाले नही हैं, तब सारी दुनिया की तरह पुस्तकों की दुनिया में भी कुछ निराशा-अंदेशा व्याप्त था. लेकिन घर में बंद समाज को त्रासदी के पहले हफ्ते में ही भान हो गया कि पुस्तकें ऐसा माध्यम हैं जो सामाजिक दूरी को ध्यान में रखते हुए घरों में स्वाध्ययन अवसाद से मुक्ति दिलाने में महती भूमिका निभाती हैं. महामारी के इस भय भरे माहौल में लॉकडाउन में सकारात्मक सोच के साथ पठन-पाठन से लोगों को जोड़ने के लिए कई अभिनव प्रयोग किए गए.
बुद्धिजीवी वर्ग को समझने में ज्यादा देर नहीं लगी कि इस महामारी ने हमें अपनी जीवन शैली में बदलाव के लिए मजबूर किया है और इससे पठन अभिरूचि भी अछूती नहीं है. आनन-फानन में लोगों ने पहले फेसबुक जैसे नि:शुल्क प्लेटफार्म पर रचना पाठ, गोष्ठी, लेखक से मुलाकात और रचनाओं की आॅडियो-वीडियो प्रस्तुति प्रारंभ की और फिर जूम, गूगल, जैसे कई नए मंच सामने आ गए जिनमें देश-दुनिया के सैंकड़ों लोग एक साथ जुड़ कर साहित्य विमर्श कर रहे हैं.
ऐसा नहीं है कि कोरोना संकट के साथ आए बदलावों से प्रकाशन व लेखन में सभी कुछ अच्छा ही हुआ. नई टेक्नोलॉजी ने भले ही ज्ञान के क्षेत्र में क्रांति ला दी है, लेकिन मुद्रित पुस्तकें आज भी विचारों के आदान-प्रदान का सबसे सशक्त माध्यम हैं. साथ ही आम आदमी के विकास हेतु जरूरी शिक्षा और साक्षरता का एकमात्र साधन किताबें ही हैं. हमारी बड़ी आबादी अभी भी डिजिटल माध्यमों से इतनी गंभीरता से परिचित नहीं हैं.
हमारे प्रकाशन उद्योग की विकास दर पिछले साल तक बीस प्रतिशत सालाना रही जो अब थम गई हैं. इसमें महंगाई, पुस्तकों के मुद्रण के बनिस्पत सीमित डिजिटल या ई बुक्स संस्करण निकलने, कागज की बढ़ती कीमत, बाजार में पूंजी का अभाव आदि घटक शामिल हैं.