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पाकिस्तान छोड़ नहीं पा रहा है कश्मीर प्रलाप, नए पीएम शहबाज शरीफ बोले-समाधान के बिना यह संभव नहीं...

By शोभना जैन | Updated: April 16, 2022 14:03 IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने पर भेजे शुभकामना संदेश की ही तरह पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शरीफ को शुभकामना संदेश देते हुए क्षेत्र को आतंकमुक्त बनाए जाने की कामना करते हुए शांति का संदेश दिया.

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ठळक मुद्देकश्मीर प्रलाप जारी रखना पाकिस्तान के किसी भी  शासक की मजबूरी बन चुकी है.जम्मू-कश्मीर में आतंक भड़काने/फैलाने में कश्मीरियों को ले कर ट्रम्प कार्ड खेलना अहम रहा. ‘पाकिस्तान भारत के साथ अच्छे रिश्ते चाहता है लेकिन कश्मीर विवाद के समाधान के बिना यह संभव नहीं है.

भारत पाकिस्तान के हाल के रिश्तों की बात करें तो पाकिस्तान में पिछले कुछ दिनों से चल रही राजनीतिक उथल-पुथल के बाद निर्विरोध निर्वाचित प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने शपथ ग्रहण करने के फौरन बाद पाकिस्तान का कश्मीर प्रलाप जारी रखा.

 

हालांकि इसके बाद  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने पर भेजे शुभकामना संदेश की ही तरह पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शरीफ को शुभकामना संदेश देते हुए क्षेत्र को आतंकमुक्त बनाए जाने की कामना करते हुए शांति का संदेश दिया. निश्चय ही कश्मीर प्रलाप जारी रखना पाकिस्तान के किसी भी  शासक की मजबूरी बन चुकी है.

सत्ता में बने रहने की भारी  जोड़तोड़ और उठापटक की राजनीति के बाद सत्ता  से बेदखल हुए इमरान खान भले ही रह-रह कर अपने कथित नए पाकिस्तान में भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की तारीफ करते रहे हो लेकिन हकीकत तो यही है कि उनके नए पाकिस्तान में आम पाकिस्तानी को भरमाने और जम्मू-कश्मीर में आतंक भड़काने/फैलाने में कश्मीरियों को ले कर ट्रम्प कार्ड खेलना अहम रहा.

अब पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के छोटे भाई और देश के नए प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने कहा है कि ‘पाकिस्तान भारत के साथ अच्छे रिश्ते चाहता है लेकिन कश्मीर विवाद के समाधान के बिना यह संभव नहीं है.’ दरअसल नए पुराने दोनों ही पाकिस्तान में वहां के शासकों के लिए कश्मीर कार्ड अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जरूरी है. अब नए शासकों का कहना है कि नए पाकिस्तान की जगह पाकिस्तानियों का वही पुराना पाकिस्तान लौट आया है, जहां जनता की बेहतरी के लिए काम किया जाएगा, लेकिन इस सबके साथ एक बार फिर कश्मीर प्रलाप जारी है.

दरअसल अगस्त 2019 में  जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त किए जाने के बाद  शाहबाज शरीफ ने इस मसले पर इमरान सरकार द्वारा गंभीर राजनयिक प्रयास नहीं किए जाने के लिए तीखे हमले करते हुए कश्मीरियों को लेकर दुखड़ा रोया था. उस वक्त वे पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के अध्यक्ष थे और सदन में विपक्ष के नेता थे.

इसी के चलते नवाज शरीफ जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे तो शाहबाज शरीफ कुछ हार्ड लाइनर माने जाते थे. ऐसे में आज जबकि देश में बेहद बदहाली, असंतोष और राजनीतिक संवैधानिक संकट के बाद उन्होंने सत्ता संभाली है, सवाल है क्या ध्वस्त हो रही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने जैसे अहम ज्वलंत मुद्दों पर ध्यान देने के साथ ही पाकिस्तान के शाहबाज शरीफ साहब भारत के साथ रिश्तों को पटरी पर लाने पर ध्यान देंगे या फिर असल मुद्दों पर ध्यान देने की बजाय कश्मीर प्रलाप जारी रख कर अपनी कुर्सी को बचाए रखने की कोशिश करते रहेंगे.

दरअसल इन तमाम बातों के बावजूद इस तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है जिससे इस नए दौर में फिलहाल रिश्तों के कुछ पटरी पर आने की हल्की सी आशा की किरण नजर आती है. पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के कार्यकाल में ही पीएम मोदी दिसंबर 2015 में पाकिस्तान का अचानक दौरा कर शरीफ परिवार के एक विवाह समारोह में शामिल हुए थे और शाहबाज शरीफ भी उस वक्त नवाज शरीफ के साथ लगातार बने हुए थे. समझा जाता है कि पिछले कुछ समय से चल रही तल्खियों के दौर में  दोनों देशों के बीच रिश्तों को सामान्य बनाने के लिए बैक चैनल कूटनीति से भी वे जुड़े रहे.

देखना होगा कि दो वर्ष पूर्व पठानकोट आतंकी हमले के बाद से और तल्ख हुए रिश्तों को शरीफ के कार्यकाल में सामान्य बनाने की क्या कुछ कोशिश होती है, विशेष तौर पर  शाहबाज की व्यापारिक विरासत और व्यापारिक प्राथमिकताओं को देखते हुए क्या आर्थिक रिश्तों में सहयोग की कुछ संभावना नजर आ सकती है.

भारत पाक रिश्तों पर नजर रखने वाले मानते हैं कि संभव है दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों में जल्द ही कुछ हरकत दिखाई दे. इस उम्मीद के पीछे वजह मानी जाती है कि नवाज शरीफ परिवार भारत के साथ बेहतर रिश्तों का हिमायती रहा है. शाहबाज स्वयं दिसंबर 2013 में भारत आए थे और  भारत में  पंजाब सहित अनेक प्रदेशों में जाकर उन्होंने वहां अनेक परियोजनाओं में दिलचस्पी दिखाई थी.

दिलचस्प बात यह है कि वे अपने पंजाब सूबे के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. ऐसे में शाहबाज के कार्यकाल में व्यापारिक रिश्ते बहाल करने की  शुरुआत की पहल की एक हल्की सी उम्मीद दिखती तो है. एक अर्थशास्त्री के अनुसार भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते बेहतर करने से बेहद खस्ताहाल अर्थव्यवस्था से जूझ रहे पाकिस्तान को मदद मिलेगी.

भारत उसे वहां की आधारभूत परियोजनाओं के विकास में विशेष तौर पर मदद दे सकता है. नवाज शरीफ की ही तरह शाहबाज भी व्यापारी हैं. लेकिन उलझे समीकरण में चीन फैक्टर को भी ध्यान में रखना होगा. कुल  मिलाकर देखा जाए तो समीकरण वहां उलझे हुए हैं और जैसा कि कूटनीति की भाषा में कहा जाए तो स्थिति अस्थिर है.

शाहबाज नवाज ने हाल ही में कार्यकाल संभाला है और वहां कश्मीर प्रलाप  जारी है और यह तय है कि राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई में  यह प्रलाप हावी रहेगा, बना रहेगा, ऐसे में आपसी तनाव बढ़ाने वाले मुद्दों पर बातचीत की संभावनाओं को लेकर सवालिया निशानों के बीच  रिश्तों को कुछ पटरी पर लाने  के बतौर व्यापारिक रिश्तों में कुछ सक्रियता दिखने  की संभावनाओं के  बीच भारत में वेट एंड वॉच की स्थिति है. देखना होगा कि इमरान सरकार के बाद शरीफ कार्यकाल कैसे शुरू होता है. 

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