Pahalgam Terror Attack: पाकिस्तान का हिसाब किस तरह होगा?, पूरा देश इस समय बहस में लगा
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 3, 2025 05:21 IST2025-05-03T05:20:13+5:302025-05-03T05:21:29+5:30
Pahalgam Terror Attack Updates: आईएसआई के अफसरों के ठिकानों पर ड्रोन से हमला करना है या लड़ाकू विमानों को टास्क देना है.

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विजय विद्रोही
पूरा देश इस समय बहस में लगा है कि भारत कब पाकिस्तान पर हमला करेगा, यह हमला किस किस्म का होगा, हमला कहां किया जाएगा. अखबारों में छपे लेख, टीवी चैनलों पर हो रही बहस और डिजिटल मीडिया देखने के बाद दस से ज्यादा सुझाव सामने हैं. इनका जिक्र करने से पहले यह जानना जरूरी है कि मोदी सरकार को तय करना है कि करना क्या है. आतंकवादियों के ट्रेनिंग कैंप पर निशाना साधना है या हाफिज सईद जैसे सरगना मार गिराने हैं, आईएसआई के अफसरों के ठिकानों पर ड्रोन से हमला करना है या लड़ाकू विमानों को टास्क देना है.
कुछ जानकारों का कहना है कि पुलवामा के बाद भारत को यह सब तय कर लेना था और पाकिस्तान को सख्त चेतावनी दे देनी चाहिए थी कि अगर अगला हमला हुआ तो हम तुरंत जवाबी कार्रवाई करेंगे. एक, जैसे इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश बनाया वैसे ही मोदी को बलूचिस्तान बनाने में सक्रिय हो जाना चाहिए. दो, बलूचिस्तान के साथ-साथ खैबर पख्तूनख्वा में भी फैल रहे असंतोष को हवा देनी चाहिए.
तीन, पाक के कब्जे वाले कश्मीर पर कब्जा करना चाहिए. चार, एलओसी के पार टैंक और विमानों से चढ़ाई कर देनी चाहिए ताकि एलओसी को बदला जा सके. पांच, दिल्ली में बैठे-बैठे ड्रोन से आतंक के सरगनाओं के छुपे ठिकानों पर हमला करना चाहिए. छह, कराची बंदरगाह बंद कर देने की कार्रवाई होनी चाहिए.
सात, अब जब वीजा बंद है, अटारी बॉर्डर बंद है तो ऐसे में पाक उच्चायोग का दफ्तर दिल्ली में क्यों है. इस पर ताला जड़ देना चाहिए. आठ, कोवर्ट ऑपरेशन चलाना चाहिए और चुन-चुन कर आतंकी संगठनों, आईएसआई और सैन्य अफसरों की हत्या कर देनी चाहिए. नौ, सीमित युद्ध. दस, आर-पार की लड़ाई का समय आ गया है.
सीमित युद्ध अगर सीमित नहीं रहा तो क्या होगा. भारत जो भी करेगा पाक सेना उसका जवाब देगी. तब क्या होगा. दुनिया के दूसरे देश भारत का कितना साथ देंगे. चीन क्या करेगा जिसका पैसा पाक में लगा और पीओके का एक हिस्सा पाक ने चीन को तोहफे के रुप में दे दिया है. कुछ जानकारों का कहना है कि हो सकता है कि चुनावी फायदे को देखते हुए ऐसे कदम उठाए जाएं जिनका जमकर प्रचार-प्रसार किया जा सके. सबसे बड़ी बात है कि दोनों देश परमाणु हथियारों से लैस हैं. भारत ने नो फर्स्ट यूज पर हस्ताक्षर किए हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय जगत के दबाव के बावजूद पाकिस्तान ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं.
हालांकि कुछ जानकारों का कहना है कि परमाणु हथियारों के साये में सीमित युद्ध की गुंजाइश भी निकलती है और भारत के पास मौका भी है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प क्या ऐसा होने देंगे. वह यूक्रेन-रूस युद्ध खत्म करना चाहते हैं, इजराइल-हमास में समझौता करवाने में लगे हैं, ईरान से बात कर रहे हैं. ऐसे में वह भारत पाकिस्तान में तनाव को घटाना ही चाहेंगे.
बहुत संभव है कि भारत और पाकिस्तान के बीच बैक चैनल सक्रिय हो गए हों और बीच का कोई रास्ता निकाला जा रहा हो. हो सकता है कि ऐसा कुछ हो जिसके बाद दोनों देश अपनी-अपनी जीत का दावा करें. जैसा कि 2019 में हुआ था. जो जानकार सीमित युद्ध की बात कर रहे हैं वह भूल जाते हैं कि पाकिस्तान को इससे ज्यादा फायदा होगा.
मान लीजिए कि भारत एलओसी पार कर पाक अधिकृत कश्मीर में प्रवेश करता है और नागरिकों की मौत होती है तो पाकिस्तान को मौका मिल जाएगा कि वह दुनिया के सामने भारत को हमलावर देश घोषित करे, इस बहाने पाक दुनिया से मध्यस्थता करने को कहेगा, कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीय करने की कोशिश करेगा और वहां की सेना पाकिस्तान की जनता की रक्षक बन कर उभरेगी.
सेना कहेगी कि देखा, हम ही तुम्हारी सुरक्षा कर सकते हैं. भारत यह कभी नहीं चाहेगा कि पाक में जनरल मुनीर की सेना को तवज्जो मिले. उस सेना को, जहां भगदड़ मची है. सुना है सेना के सौ से ज्यादा अफसरों के इस्तीफे हो चुके हैं. जगह-जगह कोर कमांडर आपस में अधिकारों व इलाकों के लिए उलझ रहे हैं.
सबसे सही उपाय तो यही है कि तीन मोर्चों पर भारत लड़े. एक, कूटनीति के स्तर पर. दो, कोवर्ट ऑपरेशन करके खतरनाक आतंकवादी सरगनाओं को मौत की सजा दे. तीन, अपने घर यानी कश्मीर को महफूज रखे. इसके लिए तारबंदी को मजबूत किए जाने से लेकर नफरी करने वालों को अत्याधुनिक उपकरण देना शामिल है.
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सही कहा है कि आतंकवाद के खिलाफ सड़क पर उतरे कश्मीरी लोगों ने आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब दिया है. अब जरूरत है उस स्थानीय जनता को विश्वास में लेने की, जो थोड़े पैसों के लालच में आतंकवादियों का साथ देते हैं. पहलगाम में मारे गए घोड़ी पालक सईद आदिल शाह की शहादत का इस्तेमाल इसके लिए किया जा सकता है.
अगर सिर्फ संदेह के आधार पर स्थानीय लोगों की गिरफ्तारियां होंगी, बेवजह लोगों के घर तोड़े जाएंगे तो बात फिर से बिगड़ सकती है. एक सवाल हर कोई उठा रहा है कि हमले की जानकारी पहले क्यों नहीं मिली. इस समय तो सेना का अपना खुफिया तंत्र हैं, अर्धसैनिक बलों के अलग तंत्र हैं, पुलिस का अलग तंत्र है. आर ए डब्ल्यू का अपना खुफिया तंत्र है.
फिर भी पहले से ठोस जानकारी किसी के पास नहीं थी. आर ए डब्ल्यू के निदेशक रह चुके ए एस दुलत का कहना है कि मानव इंटेलिजेंस की कमी है. दुलत कहते हैं कि गुर्जर बकरवाल पहले सेना और पुलिस के लिए मुखबिरी का काम करते थे लेकिन जम्मू कश्मीर का परिसीमन हुआ तो पहली बार 9 एसटी सीटों की गठन किया गया है.
इनमें से छह जम्मू क्षेत्र में थी. इन छह में से चार सीटें हिंदू पहाड़ियों के लिए पहली बार आरक्षित की गईं तो मुस्लिम गुर्जर बकरवाल के लिए सिर्फ दो. इससे गुर्जर नाराज हुए और सूचनाएं देना बंद या कम कर दिया. अगर दुलत साहब ठीक कह रहे हैं तो मोदी सरकार को सोचना पड़ेगा. तारबंदी पर से फ्लोटिंग सीढ़ी के सहारे भारत में घुसने की कहानी मजाक जैसी लगती है लेकिन सच है.
हिमपात से तारबंदी प्रभावित होती है और गर्मियां आने पर तुरंत मरम्मत की जरूरत पड़ती है लेकिन बजट लालफीताशाही की फाइलों में उलझ जाता है. बाबू और अफसरशाही हावी हो जाती है. रात में देखने वाले उपकरण की बैटरी डिस्चार्ज होने पर तुरंत चार्ज नहीं हो पाती क्योंकि बॉर्डर और एलओसी में बिजली की आपूर्ति गड़बड़ होती रहती है.
जानकारों का तो यहां तक कहना है कि फेंसिंग में करंट भी दौड़ नहीं रहा क्योंकि या तो बिजली सप्लाई ठीक नहीं है या फिर वोल्टेज पूरा नहीं रहता. खुफिया सूत्रों का कहना है कि घाटी और जम्मू में इस समय करीब सवा सौ आतंकवादी मौजूद हैं जिसमें से तीन चौथाई विदेशी है यानी सीमा पार से आए हैं. अब साफ है कि अगर हम इनके आने पर रोक लगा दें तो काफी हद तक समस्या हल हो सकती है.