ब्लॉग: देशों में अमीरों की बढ़ रही है सख्या, पर अमीरी-गरीबी की खाई भी होती जा रही है चौड़ी

By वेद प्रताप वैदिक | Published: September 29, 2022 02:05 PM2022-09-29T14:05:58+5:302022-09-29T14:07:00+5:30

हमारे देश में आम लोग गरीब से गरीबतर होते जा रहे हैं. महंगाई बढ़ती जा रही है, आमदनी घट रही है और लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी मुश्किल होती जा रही है.

number of rich is increasing in countries, but the gap between rich and poor is also widening | ब्लॉग: देशों में अमीरों की बढ़ रही है सख्या, पर अमीरी-गरीबी की खाई भी होती जा रही है चौड़ी

बढ़ती जा रही है अमीरी-गरीबी की खाई

पिछले कई वर्षों से मैं लिख रहा हूं कि हमारी सरकारें जो दावे करती रही हैं कि देश की गरीबी घटती जा रही है, वे मुझे सही नहीं लगते. यह ठीक है कि देश में अमीरी भी बढ़ रही है और अमीरों की संख्या भी बढ़ रही है लेकिन यदि हम गरीबी की सही पहचान कर सकें तो हमें मालूम पड़ेगा कि देश में हमारे आम लोग गरीब से गरीबतर होते जा रहे हैं. महंगाई बढ़ती जा रही है, आमदनी घट रही है और लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी दूभर हो रही है. 

एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था, ‘फाइनेंशियल सर्विसेज कंपनी’ के ताजा आंकड़ों के अनुसार भारत के 80 प्रतिशत लोग 163 रु. रोज से भी कम खर्च कर पाते हैं. जरा हम सोचें कि क्या डेढ़ सौ रु. रोज में कोई आदमी अपने भोजन, कपड़े, निवास, चिकित्सा और मनोरंजन की व्यवस्था कर सकता है? बच्चों की शिक्षा, यात्रा, ब्याह-शादी आदि के खर्चों को आप न भी जोड़ें तो भी आपको मानना पड़ेगा कि भारत के लगभग 100 करोड़ लोग गरीबी की जिंदगी गुजार रहे हैं. 

हमारे लोगों के दैनंदिन जीवन की तुलना जरा हम यूरोप और अमेरिका के लोगों से करके देखें. शहरों और गांवों के उच्च और मध्यम वर्ग के लोगों को छोड़ दें और देश के अन्य ग्रामीण, पिछड़े, मेहनतकश लोगों को जरा नजदीक से देखें तो हमें पता चलेगा कि वे मनुष्यों की तरह जी ही नहीं पाते हैं. 

भारत में शारीरिक और बौद्धिक श्रम के बीच इतनी गहरी खाई है कि मेहनतकश लोग पशुओं सरीखा जीवन जीने के लिए मजबूत होते हैं. गरीबी की रेखा को सरकारें ऊंचा-नीचा करती रहती हैं लेकिन करोड़ों लोग कुपोषण के शिकार होते हैं. इसका पता कौन रखता है? देश के लाखों लोगों के पास अपने इलाज के लिए पर्याप्त पैसे ही नहीं होते. वे इलाज के अभाव में दम तोड़ देते हैं. भारत में दान-धर्म का चलन बहुत है लेकिन इससे क्या अमीरी-गरीबी की खाई पट पाएगी?

Web Title: number of rich is increasing in countries, but the gap between rich and poor is also widening

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