एनके सिंह का ब्लॉग: पैर फैलाता ही जा रहा है देश में भ्रष्टाचार
By एनके सिंह | Published: November 21, 2019 01:50 PM2019-11-21T13:50:55+5:302019-11-21T13:50:55+5:30
तमाम जांच के बाद प्राथमिक तौर पर इस जज को भ्रष्टाचार में लिप्त होने के सबूत मिले. संविधान निर्माताओंं ने न्यायपालिका, खासकर, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों को नैतिकता की प्रतिमूर्ति मानते हुए उन्हें पद पर रहने के दौरान हर संवैधानिक सुरक्षा कवच से नवाजा था और उन्हें पद से हटाना एक जटिलतम प्रक्रिया के तहत लगभग नामुमकिन कर दिया था.
सन् 2014 में जिस लोकप्रियता की लहर पर सवार हो गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी देश में सबसे मकबूल नेता बने और पांच साल बाद भी दुबारा प्रधानमंत्री चुने गए, वह थी - गुजरात का ‘भ्रष्टाचार-मुक्त विकास’ मॉडल. सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक ताजा शोध के अनुसार देश में जिन 425 पुलों का परीक्षण हुआ, उनमें से 281 का स्ट्रक्चर खराब निकला और इनमें 253 पिछले पांच से सात साल में बने. सबसे चौंकाने वाली बात है कि इनमें से सबसे ज्यादा 75 प्रतिशत गुजरात के पुल खराब पाए गए.
इस खराबी का मूल कारण घटिया मटेरियल का लगना बताया गया. आम तौर पर नए पुल को 100 साल चलना चाहिए लेकिन 15 पुलों पर तत्काल यातायात बंद करने की सिफारिश की गई है और बाकी पर अलग-अलग स्तर पर मरम्मत का काम शुरू किया जाएगा. एक हफ्ते पहले बिहार भाजपा के अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि राज्य में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत बनाई गई 14000 सड़कों में इंजीनियर-ठेकदार गठजोड़ से अधिकांश सड़कें घटिया मटेरियल से बनाई गर्इं हंै.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि मोदी के शासन काल में गुजरात में दलाल, भ्रष्ट अधिकारी-ठेकेदार साठ-गांठ का बोलबाला खत्म हो गया था. देश का शासन संभालने के बाद भी जनता को यही अपेक्षा थी, और आज भी है, कि देश में पहला हमला भ्रष्टाचार पर होगा.
देश के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के मुख्य-न्यायाधीश ने इलाहाबाद हाई-कोर्ट के एक जज पर भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज करने की इजाजत सीबीआई को दे दी है.
तमाम जांच के बाद प्राथमिक तौर पर इस जज को भ्रष्टाचार में लिप्त होने के सबूत मिले. संविधान निर्माताओंं ने न्यायपालिका, खासकर, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों को नैतिकता की प्रतिमूर्ति मानते हुए उन्हें पद पर रहने के दौरान हर संवैधानिक सुरक्षा कवच से नवाजा था और उन्हें पद से हटाना एक जटिलतम प्रक्रिया के तहत लगभग नामुमकिन कर दिया था.
एक ऐसे समय जब वैश्विक मंदी तेजी से भारत को भी अपने लौह-पाश में जकड़ रही है, राज्य सरकारों का अक्षम और भ्रष्ट होना इस संकट को और बढ़ाएगा. सरकारें सक्षमता और सही सोच से इस संकट से देश को निकाल सकती है बशर्ते वे हकीकत के प्रति ‘शुतुरमुर्गी भाव’ न रखे. औद्योगिक राज्य महाराष्ट्र और गुजरात में बिजली की मांग सबसे ज्यादा (क्रमश: 22 और 19 प्रतिशत) गिरी है, भ्रष्टाचार के अलावा मोदी का अपना राज्य औद्योगिक मंदी की चपेट में है. लब्बो-लुआब यह कि केंद्र सरकार खुशफहमी छोड़ कर देश को आसन्न आर्थिक मंदी और राज्यों की सरकारों में भ्रष्टाचार और विकासहीनता के अभेद्य चक्र-व्यूह में फंसने से पहले बाहर लाये वर्ना देरी महंगी पड़ेगी.