Nitin Gadkari: सांसदों के बीच गडकरी सर्वाधिक लोकप्रिय क्यों?
By हरीश गुप्ता | Updated: September 19, 2024 06:04 IST2024-09-19T06:03:38+5:302024-09-19T06:04:59+5:30
Nitin Gadkari: अधिकांश कैबिनेट मंत्रियों को नए भवन में कमरे आवंटित किए गए हैं, जबकि राज्यमंत्रियों को पुराने भवन में.

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Nitin Gadkari: सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी द्वारा यह खुलासा किए जाने के बाद कि विपक्ष के एक प्रमुख नेता ने प्रधानमंत्री पद के लिए उन्हें अपना उम्मीदवार बनाने के लिए संपर्क किया था, अटकलों के बावजूद वे सभी विचारधाराओं के सांसदों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं. नए संसद भवन में उनका मंत्रिपरिषद कक्ष सबसे अधिक भीड़भाड़ वाला स्थान है. क्यों? क्योंकि उनका कक्ष एक खुले घर की तरह है और कोई भी सांसद सीधे अंदर आ सकता है. अधिकांश कैबिनेट मंत्रियों को नए भवन में कमरे आवंटित किए गए हैं, जबकि राज्यमंत्रियों को पुराने भवन में.
लेकिन गडकरी का कमरा आकर्षण का केंद्र रहा है. वे हमेशा मुस्कुराते रहते हैं और जो भी उनके पास आता है, उसकी मदद करने की पूरी कोशिश करते हैं. विभिन्न दलों के सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों में सड़क बनवाने के लिए उनके पास जाते हैं और संभव हो तो उसे राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची में शामिल करवाते हैं.
गडकरी इन सांसदों से केवल यही अनुरोध करते हैं कि उनकी राज्य सरकारें तेजी से सड़क बनवाने के लिए जमीन का अधिग्रहण करें. वे उन्हें बताते हैं कि जब तक जमीन का अधिग्रहण नहीं हो जाता, केंद्र सरकार वर्षों तक अपने फंड को रोक कर नहीं रखेगी. गडकरी ने बताया कि 1 अप्रैल 2014 से शुरू हुई 697 राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएं अपने नियत समय पर पूर्ण नहीं हो पाई हैं.
इसके परिणामस्वरूप विभिन्न एजेंसियों पर भारी वित्तीय बोझ पड़ा है, जिसमें कुल मिलाकर 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक के अनुबंध शामिल हैं. यह भी ध्यान देने योग्य है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ गडकरी के मधुर संबंधों ने पहले ही भाजपा के भीतर काफी ध्यान आकर्षित किया था. हालांकि यह बैठक यूपी में राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं की समीक्षा के लिए थी.
मोदी ने नौकरशाहों को दी ढील
लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद जब मोदी ने सचिवों के साथ मैराथन बैठक की तो नौकरशाहों को उनका पहला संदेश यही था कि उन्हें हर बात पर पीएमओ का मुंह ताकने से बचना चाहिए. सचिवों को अपने स्तर पर ही मुद्दों का समाधान करना चाहिए. यह अलग बात है कि कोई भी सचिव ऐसा जोखिम नहीं लेगा और फाइल भेजी जाए या नहीं, अक्सर पीएमओ को फोन करता रहेगा.
मोदी को प्रधानमंत्री बनते ही यह अहसास हो गया था कि वे गठबंधन सरकार चलाएंगे और सहयोगी दल शायद हर बात के लिए पीएमओ से मंजूरी लेना पसंद न करें. 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद नौकरशाह भी अधिक सहज स्थिति में है. अधिकारियों ने खुलासा किया कि उनके सहकर्मी सरकार की आलोचना करने या उसका मजाक उड़ाने में संकोच नहीं करते, खासकर अपने विभिन्न व्हाट्सएप्प ग्रुपों में.
एक और बात जो ध्यान देने लायक है, वह यह है कि कई भाजपा नेताओं ने भी अपने विचार सार्वजनिक रूप से व्यक्त करना शुरू कर दिया है, जिसमें वरिष्ठ नेता भी शामिल हैं.
यह बदलाव आश्चर्यजनक है और हरियाणा तथा अन्य राज्यों में जिस तरह का विद्रोह देखने को मिल रहा है, वह पहले कभी नहीं देखा गया था. राज्यों में भाजपा नेता हाईकमान की बात नहीं सुन रहे हैं और कुछ मंत्री भी अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहे हैं, जिनमें स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह भी शामिल हैं.
अरुण गोयल होने का महत्व
पंजाब कैडर के 1985 बैच के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और पूर्व चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के पुनर्वास ने लोगों को चौंका दिया है. गोयल ने 2024 के आम चुनावों से पहले अपने पद से अचानक इस्तीफा दे दिया था. गोयल को अब क्रोएशिया में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया है.
यह काफी चौंकाने वाला था क्योंकि अगर अरुण गोयल चुनाव आयोग में अपने पद पर बने रहते तो वह राजीव कुमार के सेवानिवृत्त होने के बाद फरवरी 2025 में दिसंबर 2027 तक के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त बन जाते. लेकिन गोयल ने 10 मार्च 2024 को इस्तीफा दे दिया और उनका इस्तीफा 19 अप्रैल को 2024 के संसदीय चुनावों के लिए पहले चरण के मतदान की शुरुआत से ठीक एक महीने पहले आया.
गोयल ने 18 नवंबर, 2022 को चुनाव आयुक्त के रूप में कार्यभार संभाला था. संयोग से, उन्होंने केंद्र सरकार में भारी उद्योग सचिव के रूप में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी और वीआरएस लेने के एक दिन बाद ही उन्हें चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था. 10 मार्च, 2024 को चुनाव आयुक्त के पद से इस्तीफा देने के बाद गोयल पिछले छह महीनों से घर पर आराम कर रहे थे.
लेकिन विदेश में पहली राजनीतिक नियुक्ति हुई. हालांकि क्रोएशिया भारत की विदेश नीति के लिए महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन गोयल की जाग्रेब में पोस्टिंग महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक संवेदनशील क्षेत्र के केंद्र में स्थित है. अब यह स्पष्ट है कि अरुण गोयल ने किसी के कहने पर इस्तीफा दिया था, जिसने उन्हें आश्वासन दिया था कि उन्हें कहीं और पुनर्वासित किया जाएगा.
गोयल ने मोदी को तब प्रभावित किया जब उन्होंने आजादी के 75 साल पूरे होने का जश्न मनाने के लिए एक प्रमुख अभियान ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ की अवधारणा बनाकर प्रदर्शित किया. गोयल एक ‘अच्छे, मृदुभाषी और विनम्र’ अधिकारी हैं जो किसी को भी यह अनुमान नहीं लगाने देते कि वे क्या सोच रहे हैं. ये गुण एक अच्छे राजनयिक के लिए जरूरी हैं.
आतिशी कोई कठपुतली नहीं
दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में अरविंद केजरीवाल की जगह चुनी गई आतिशी मार्लेना सिंह कोई कठपुतली या गूंगी नहीं हैं. इसमें कोई संदेह नहीं कि मनीष सिसोदिया शराब कांड में जेल में न होते तो यह पद संभाल लेते. आतिशी न केवल अरविंद केजरीवाल की बल्कि उनकी पत्नी सुनीता की भी सबसे भरोसेमंद हैं.
इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे 14 विभागों को संभाल रही थीं और जब उनके साथी जेल में थे, तब भी उन्होंने फ्रंट-फुट पर बल्लेबाजी की. दिलचस्प बात यह है कि वे पिछले साल मार्च में ही मंत्री बनीं, जब सिसोदिया और सत्येंद्र जैन को जेल भेजा गया था. वे पूर्व स्टीफनियन, रोड्स स्कॉलर हैं और उन्होंने लंदन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है .
उनकी शिक्षा, नीति और शासन की पृष्ठभूमि है. आम आदमी पार्टी में शामिल होने से पहले उन्होंने मध्यप्रदेश में कई गैरसरकारी संगठनों के साथ काम किया और 2013 के विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी की घोषणापत्र मसौदा समिति की एक प्रमुख सदस्य थीं, जो एक गेम-चेंजर था. इसलिए, वह न तो कठपुतली और न ही गूंगी हैं.