विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉगः मानवता के दुश्मन आतंकवाद का कोई धर्म नहीं

By विश्वनाथ सचदेव | Published: May 17, 2019 06:07 AM2019-05-17T06:07:36+5:302019-05-17T06:07:36+5:30

नाथूराम गोडसे ने न्यायालय में भले ही कुछ भी बयान दिया हो पर निश्चित रूप से उसका एक उद्देश्य यह भी था कि उसकी सोच को प्रसिद्धि मिले; लोगों में डर फैले, वे गांधी की तरह सोचना बंद कर दें, वे गांधी का अनुगमन न करें. ऐसा ही उद्देश्य होता है हर आतंकवादी का.

nathuram godse: terrorism has no religion, this is Humanity enemy | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉगः मानवता के दुश्मन आतंकवाद का कोई धर्म नहीं

File Photo

तीस जनवरी 1948 को जब महात्मा गांधी की हत्या हुई तो जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, एक पागल ने बापू को मार दिया. मुझे लगता है राष्ट्रपिता पर गोली चलाने वाले व्यक्ति की यही सही पहचान है. वह गोली चलाने वाला नाथूराम गोडसे था, हिंदू था, यह बताना शायद उस वक्त की जरूरत थी, पर हकीकत यही है कि इस प्रकार का कुकृत्य करने वाला व्यक्ति किसी धर्म से नहीं जुड़ा होता है. वह सिर्फ हत्यारा होता है-पागल हत्यारा. होते हैं उसके पास तर्क अपने कुकृत्य के, खोखले तर्क होते हैं वे. कोई कानून, कोई परंपरा, कोई सोच किसी को भी यह अधिकार नहीं देती कि वह विरोधी विचारों के लिए किसी की हत्या कर दे. लेकिन, गांधी यदि यह कह सकते होते कि उनके हत्यारे को क्या सजा दी जाए, तो निश्चित रूप से वे ईसा के इन शब्दों को ही दुहराते कि ‘हे प्रभु, इन्हें माफ कर देना. ये नहीं जानते ये क्या कर रहे हैं!’ मरने से पहले गांधी के मुंह से निकले शब्द ‘हे राम’ का यही अर्थ था.

नाथूराम गोडसे ने न्यायालय में भले ही कुछ भी बयान दिया हो पर निश्चित रूप से उसका एक उद्देश्य यह भी था कि उसकी सोच को प्रसिद्धि मिले; लोगों में डर फैले, वे गांधी की तरह सोचना बंद कर दें, वे गांधी का अनुगमन न करें. ऐसा ही उद्देश्य होता है हर आतंकवादी का. इसलिए नाथूराम गोडसे भी आतंकवादी था. आतंकवादी न हिंदू होता है न मुसलमान.  न ईसाई और न किसी और धर्म को मानने वाला. वह सिर्फ आतंकवादी होता है. अपने कुकृत्य के लिए वह भले ही तर्क देता रहे, पर कोई तर्क किसी आतंकवाद का औचित्य नहीं बन सकता. आतंकवाद एक अपराध है. आतंकवादी अपराधी है. 

यही बात कुछ अर्सा पहले न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्नी जेसिंडा अर्डर्न ने कही थी. न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च नगर में 15 मार्च, 2019 को आतंकवादियों ने दो मस्जिदों पर हमला करके पचास से अधिक बेकसूर लोगों की हत्या कर दी थी. हर आतंकी हमले में मरते बेकसूर ही हैं और ऐसे हर हमले में आतंकवादी का मुख्य उद्देश्य आतंक फैलाना होता है. प्रधानमंत्नी अर्डर्न ने इस हमले की निंदा करते हुए कहा था, ‘‘हम विविधता, करुणा और उदारता का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसीलिए हम पर यह हमला हुआ.’’  उन्होंने यह तो बताया कि हमला किसी ऑस्ट्रेलियाई ईसाई ने किया है, पर उन्होंने उसका नाम लेने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, ‘‘हम उन्हें नाम भी नहीं देंगे. आतंकवादी आतंक फैलाना चाहते हैं, इसके लिए उन्हें प्रचार चाहिए-इससे वे ज्यादा ताकतवर दिखते हैं. वह कुख्यात होना चाहते हैं. वह आतंकी है, अपराधी है, अतिवादी है, पर मैं उसे नाम नहीं दूंगी.’’ 

एक और महत्वपूर्ण बात कही थी न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्नी ने. लगभग 18 साल पहले, सही तिथि 11 सितंबर 2001 है, आधुनिक आतंकवाद का युग प्रारंभ हुआ था. तब से लेकर अब तक दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में आतंकवादी घटनाएं हो रही हैं. इन घटनाओं का हवाला देते हुए प्रधानमंत्नी जेसिंडा अर्डर्न ने इस बात को रेखांकित करना जरूरी समझा कि इन घटनाओं को धर्म-विशेष से जोड़कर हम आतंकवादियों के उद्देश्यों को ही पूरा करने में मददगार होते हैं. आतंकवादी, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, अपराधी होता है. अपराध की सजा तो मिलनी ही चाहिए, पर साथ ही यह समझना भी जरूरी है कि आतंकवाद पनपता कैसे है?

सौ साल पहले अमृतसर के जलियांवाला बाग में अंग्रेज जनरल डायर ने निहत्थी और बेकसूर भीड़ पर गोलियां बरसा कर पंजाब में, या कहना चाहिए सारे भारत में, आतंक का माहौल पैदा करने की कोशिश की थी. था तो यह साम्राज्यवादी सोच का ही परिणाम, पर इसे सरकारी आतंकवाद ही कहा जाना चाहिए. देश की आजादी के लिए लड़ रही कांग्रेस पार्टी ने तब इस नरसंहार की जांच के लिए एक समिति गठित की थी. गांधीजी भी इस समिति के सदस्य थे. इस महत्वपूर्ण जांच के बाद गांधीजी ने कहा था, ‘‘जनरल डायर ने जो किया, मैं उसकी तीव्र भर्त्सना करता हूं, पर मैं डायर के नहीं, डायरवाद के खिलाफ हूं.’’ यह डायरवाद वस्तुत: आतंकवाद का ही एक और नाम है.

सौ साल पहले गांधी ने जो कहा था, आज वही बात न्य़ूजीलैंड की प्रधानमंत्नी दुहरा रही हैं. आतंकवादियों को सजा अवश्य मिलनी चाहिए, पर जरूरी यह भी है कि उन स्थितियों, उस सोच के बारे में भी चिंतन हो जो आतंकवाद को पनपने का मौका देते हैं. यह तभी हो सकता है जब हम आतंकवाद को एक अपराध और आतंकवादी को सिर्फ एक अपराधी के रूप में देखें. ऐसा हर हत्यारा सिर्फ अपराधी होता है, पागल भी. उसका कोई नाम नहीं होता. इसलिए उसके नाम को प्रचारित करना भी जरूरी नहीं है. 

जरूरी उस पागलपन को ठीक करना है जिसके चलते दुनिया में आतंकवाद फैल रहा है. यह पागलपन ही मनुष्य को मनुष्य समझने के बजाय उसे धर्मो और जातियों में बांट कर देखने की बीमार दृष्टि देता है. जैसे गांधी ने डायर के बजाय डायरवाद को अमानुषिक बताया था, वैसे ही मनुष्यता का दुश्मन कोई एक आतंकी नहीं, बल्कि आतंकवाद है. लड़ाई इस आतंकवाद के खिलाफ लड़ी जानी है. और यह लड़ाई उस हर व्यक्ति को लड़नी है जो स्वयं को विवेकशील मानता है. आप मानते हैं स्वयं को विवेकशील?

Web Title: nathuram godse: terrorism has no religion, this is Humanity enemy

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