मुंबई में कथित आतंकी हमले की धमकी के बाद सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े हो गए हैं. यातायात नियंत्रण कक्ष को मिले एक संदेश को पाकिस्तान से आया माना गया है. इसको भेजने वाले ने चिंता बढ़ाने के लिए वाट्सएप नंबर पर लिखा कि 26/11 जैसा हमला किया जाएगा. धमकी में कहा गया है कि हमारे छह लोग हैं, जो भारत में इस काम को अंजाम देंगे.
इससे पहले गुरुवार को रायगढ़ जिले में अरब सागर से एक संदिग्ध नाव में तीन एके-47 राइफल मिली थी, जिसके बाद पुलिस ने पूरे जिले में हाई अलर्ट घोषित किया था. हालांकि छानबीन में यह पता चला कि नाव किसी ऑस्ट्रेलियाई नागरिक की है, जो समुद्र में दो टुकड़े हो जाने की वजह से हाइटाइड में बहकर रायगढ़ तक आ पहुंची. इसलिए पुलिस ने मामले में किसी तरह की आतंकी साजिश होने की पुष्टि नहीं की.
साल 2008 में 26 नवंबर की शाम पाकिस्तान से आतंकी आमिर अजमल कसाब समेत 10 आतंकवादी समुद्री रास्ते ही मुंबई पहुंचे थे. उस घटना से सबक लेकर ताजा धमकी पर कितनी गंभीरता बरती जाए, यह सुरक्षा एजेंसियां बेहतर जानती हैं और कार्रवाई भी करती हैं. संभव है कि बीते दिनों में ऐसी कई धमकियां आई भी हों, सार्वजनिक की नहीं गई हों.
इन सब के बीच सवाल यही उठता है कि यातायात पुलिस के वाट्सएप तक संदेश पहुंचने तक गुप्तचर एजेंसियों की क्या भूमिका रही? यदि संदेश में कथित तौर पर आतंकवादियों की संख्या तक का जिक्र है तो उसे तैयार करने वाले कहां हैं? स्पष्ट है कि पुलिस की गुप्तचर व्यवस्था के जाल से आतंकवाद के पोषक तत्व बच रहे हैं.
सामाजिक तौर पर देखा जाए तो पुलिस लगातार अपने संबंधों को सीमित करती जा रही है. उसके खबरी घट रहे हैं और वीआईपी बढ़ रहे हैं. यही वजह है कि जमीनी स्तर पर सही-गलत की जानकारी समय पर पुलिस तक नहीं पहुंच रही है. ज्यादातर मामले किसी घटना के बाद सामने आते हैं, जिससे आपराधिक तत्वों के हौसले लगातार बुलंद होते रहते हैं. किसी समुद्री सीमा पर नाव में एके-47 आना और उसे टूटी हुई नौका बताना, वहीं वाट्सएप संदेश से जुड़े तारों को सहजता से जोड़ नहीं पाना गुप्तचर एजेंसियों की कमी और कमजोरी को साफ तौर पर उजागर करता है.
इसलिए आवश्यक है कि गुप्तचर एजेंसियों और पुलिस के संपर्कों को मजबूत बनाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं. उन्हें केवल सरकारी जासूस और वीआईपी सेवक-रक्षक बना कर न रखा जाए, जिससे उनकी पूरी सेवा तबादलों और पदस्थापना पर केंद्रित रहे. सर्वविदित है कि सारी सुरक्षा के बावजूद हमले और उनके प्रकार बदल रहे हैं. यदि उनका संज्ञान लेकर सुरक्षा व गुप्तचर एजेंसियां सुविज्ञ-सुसज्ज तथा सतर्क रहेंगी तो हमले तो बहुत दूर, उनकी धमकियां मिलना भी आसान नहीं होगा.