प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: जीवनदायिनी गंगा में सूक्ष्म जीवाणुओं की खोज

By प्रमोद भार्गव | Updated: September 23, 2019 06:35 IST2019-09-23T06:35:47+5:302019-09-23T06:35:47+5:30

मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के साथ ही गंगा सफाई का संकल्प लिया और उमा भारती को सफाई की जिम्मेवारी सौंपी गई. किंतु परिणाम अनुकूल नहीं आए. गंगा हमारे देश में न केवल पेयजल और सिंचाई आदि की जरूरत की पूर्ति का बड़ा जरिया है, बल्कि यह करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र भी है.

Microorganisms discovered in Jeevandayini Ganga | प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: जीवनदायिनी गंगा में सूक्ष्म जीवाणुओं की खोज

प्रतीकात्मक फोटो

Highlights1985 में राजीव गांधी की सरकार ने गंगा को स्वच्छ बनाने की ऐतिहासिक पहल की थी.यह कार्यक्रम दो चरणों में चला और इन 33 सालों में इस अभियान पर अब तक डेढ़ हजार करोड़ रु. से भी ज्यादा खर्च हो चुके हैं।

जीवनदायिनी गंगा नदी में उसके उद्गम स्थल गंगोत्री से गंगा सागर तक जीवाणुओं की खोज होगी, जिससे प्रदूषणकारी तत्वों, नदी के स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी पर इन जीवाणुओं के क्या प्रभाव पड़ते हैं, इसका पता चल सके. गंगा का पानी मानव स्वास्थ्य से भी जुड़ा है, इसलिए इसकी सूक्ष्म जीवाणु संबंधी विविधता को समझने के लिए जीआईएस मैपिंग की जा रही है. 9.33 करोड़ रु. की लागत का यह अध्ययन राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के अंतर्गत 24 माह में पूरा किया जाएगा. इस प्रस्ताव में कहा गया है कि गंगा नदी के कई क्षेत्रों में जीवाणुओं के संबंध में टुकड़ों में अनेक अध्ययन किए गए हैं, लेकिन पूरी नदी में जीवाणुओं का कोई अध्ययन अब तक नहीं हुआ है. इस अध्ययन में नदी के स्वास्थ्य एवं पुनर्जीवन क्षमता को परिभाषित करने और मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का भी आकलन किया जाएगा, जिससे नदी-जल की गुणवत्ता के मापदंड दोबारा परिभाषित किए जा सकें.

यह पड़ताल ऐसे समय की जा रही है, जब नदी में जैव विविधता की कमी संबंधी रिपोर्ट सामने आई है. इसमें एक अहम आयाम नदी-जल में मौजूद बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु की उपस्थिति हो सकती है, जो गंदगी और बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं. गंगा में वनस्पति एवं जंतुओं की 2000 प्रजातियां उपलब्ध हैं. इनमें से कई प्रजातियां क्षेत्रविशेष में पाई जाती हैं. गंगा में डॉल्फिन, घड़ियाल और मुलायम कवच वाले कछुए इसके विशिष्ट उदाहरण हैं. पाली कीट, सीप एवं घोंघों की कई प्रजातियां समुद्र और गंगा दोनों में पाई जाती हैं. हिलसा मछली पाई तो समुद्र में जाती है, लेकिन प्रजनन के लिए गंगा में आती है.  

1985 में राजीव गांधी की सरकार ने गंगा को स्वच्छ बनाने की ऐतिहासिक पहल की थी. यह कार्यक्रम दो चरणों में चला और इन 33 सालों में इस अभियान पर अब तक डेढ़ हजार करोड़ रु. से भी ज्यादा खर्च हो चुके हैं, लेकिन गंगा और ज्यादा मैली होती जा रही है. 2500 किमी लंबी इस नदी में पुराणों जैसी शुद्धता कहीं भी नहीं बची है. जबकि गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिया जा चुका है. 

नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के साथ ही गंगा सफाई का संकल्प लिया और उमा भारती को सफाई की जिम्मेवारी सौंपी गई. किंतु परिणाम अनुकूल नहीं आए. गंगा हमारे देश में न केवल पेयजल और सिंचाई आदि की जरूरत की पूर्ति का बड़ा जरिया है, बल्कि यह करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र भी है. फिर भी यह दिनोंदिन प्रदूषित होती गई है तो इसलिए कि हमने विकास के नाम पर इसकी कोई भी परवाह नहीं की कि हमारे प्राकृतिक संसाधनों का क्या हश्र होने वाला है.

Web Title: Microorganisms discovered in Jeevandayini Ganga

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