ब्लॉग: कंचनजंघा ट्रेन हादसे से उठे कई सवाल

By अरविंद कुमार | Updated: June 18, 2024 10:16 IST2024-06-18T10:14:29+5:302024-06-18T10:16:14+5:30

हाल के वर्षों में शून्य दुर्घटना मिशन, आधुनिकीकरण और तकनीक को लेकर रेलवे ने बहुत से दावे किए थे। संयोग से बीच में बड़े हादसे बचे रहे, पर 2 जून, 2023 को बालासोर रेल हादसा हो गया जिसने रेलवे की कार्यप्रणाली को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए।

Many questions raised by Kanchenjunga train accident | ब्लॉग: कंचनजंघा ट्रेन हादसे से उठे कई सवाल

कंचनजंघा ट्रेन हादसे से उठे कई सवाल

Highlightsजहां हादसा हुआ वहां कवच स्थापित नहीं थाजल्दी ही संसद सत्र के दौरान इस मुद्दे को फिर से गूंजने के आसार बन रहे हैंरेल संबंधी संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट बताती है कि रेल दुर्घटनाओं का घटता क्रम फिर उठान पर है

हाल के वर्षों में शून्य दुर्घटना मिशन, आधुनिकीकरण और तकनीक को लेकर रेलवे ने बहुत से दावे किए थे। संयोग से बीच में बड़े हादसे बचे रहे, पर 2 जून, 2023 को बालासोर रेल हादसा हो गया जिसने रेलवे की कार्यप्रणाली को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए। 

पश्चिम बंगाल में कंचनजंघा एक्सप्रेस दुर्घटना ने एक बार फिर से भारतीय रेल के सुरक्षा संरक्षा के दावों पर सवाल खड़ा कर दिया है। रेलवे बोर्ड की अध्यक्ष जया वर्मा सिन्हा ने स्वीकार किया है कि जहां हादसा हुआ वहां कवच स्थापित नहीं था। जल्दी ही संसद सत्र के दौरान इस मुद्दे को फिर से गूंजने के आसार बन रहे हैं। क्योंकि प्राथमिकता के आधार पर अंतरिम बजट 2024-25 में इस मद में 557 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था। जुलाई 2020 में कवच को राष्ट्रीय स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली के रूप में अपनाया गया था। पर अभी तक इसकी सीमित तैनाती ही है।

हाल के वर्षों  में शून्य दुर्घटना मिशन, आधुनिकीकरण और तकनीक को लेकर रेलवे ने बहुत से दावे किए थे। संयोग से बीच में बड़े हादसे बचे रहे, पर ठीक एक साल पहले अतीत में 2 जून, 2023 को बालासोर रेल हादसा हो गया जिसने रेलवे की कार्यप्रणाली को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए। उस हादसे में एक नहीं तीन गाड़ियां टकराई थीं और 275 से अधिक मौतें हुईं, 1100 से अधिक लोग घाय़ल हुए। रेल मंत्री के त्यागपत्र की मांग के साथ विपक्ष ने भी तमाम सवाल उठाए और फिर धीरे-धीरे सब शांत हो गया।

रेल इतिहास में लाल बहादुर शास्त्री के मंत्री काल में पहली बार 23 नवंबर, 1956 को तूतीकोरण एक्सप्रेस की दुर्घटना के बाद नैतिक आधार पर उनका पहला त्यागपत्र हुआ था। उस घटना में 154 लोगों की मौतें हुईं थीं, लेकिन प्रधानमंत्री नेहरूजी ने शास्त्रीजी को जिम्मेदार नहीं माना फिर भी उन्होंने इस्तीफा दिया। बाद में 2 अगस्त 1999 गाइसल रेल दुर्घटना के बाद नीतीश कुमार ने भी इस्तीफा दिया, जिसमें 300 मौतें हुईं. फिर 2017 में खतौली के पास कलिंग उत्कल एक्सप्रेस को लेकर रेल मंत्री सुरेश प्रभु को इस्तीफा देना पड़ा था। लेकिन मौजूदा रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव बाकियों से अलग हैं। वे एक दशक में चौथे रेलमंत्री हैं। उनके पहले डीवी सदानंद गौड़ा, सुरेश प्रभु और पीयूष गोयल मंत्री थे। सबने सुरक्षा तथा संरक्षा रेलवे की सर्वोच्च प्राथमिकता देने के साथ टक्कर रोधी उपकरणों की स्थापना, ट्रेन प्रोटेक्शन वार्निंग सिस्टम, ट्रेन मैनेजमेंट सिस्टम, सिग्नलिंग प्रणाली के आधुनिकीकरण पर काम किया। फिर भी कमजोरी बनी रही।

भारतीय रेल देश की जीवनरेखा कही जाती है। ऑस्ट्रेलिया की आबादी के बराबर और करीब सवा दो से ढाई करोड़ मुसाफिरों को ले जाती है। औसतन 13,523 सवारी और 9146 मालगाड़ियां रोज चलाने वाली भारतीय रेल बुलेट युग की ओर जाने की तैयारी में है। वंदे भारत जैसी ट्रेन चमक-दमक में बहुत आगे है।  रेल बजट को आम बजट में समाहित करने के साथ ही यह दावा लगातार किया जाता रहा है कि अब भारतीय  रेल  का संरक्षा रिकार्ड बेहतर बन कर यूरोपीय देशों के बराबर हो गया है। पर जमीनी हकीकत चिंताजनक है। 

आज भारतीय रेल नेटवर्क में उच्च यातायात घनत्व के 7 मार्गों और 11 अति व्यस्त मार्गों की दशा बेहद खराब है। इन पर 41% माल परिवहन होता है, जबकि 25 हजार किमी के 11 अति व्यस्त मार्गों पर 40% यात्री चलते हैं। भारतीय रेल की 50% रेल लाइनें 80% बोझा संभाल रही हैं। 25% रेल नेटवर्क पर 100 से 150% यातायात चल रहा है। क्षमता से अधिक उपयोग के कारण कई खंडों पर भारी दबाव है। हर साल करीब 200 सिग्नल ओवरएज होते हैं और 100 बदले जाते हैं। हर साल 4500 किमी से 5000 किमी रेलपथ बदले जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। पर बदलाव की गति धीमी रहती है। बकाया काम बढ़ता जाता है। इस कारण सुरक्षा और संरक्षा की चुनौती बरकरार है और कौन गाड़ी कब शिकार बन जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता।

बीते दो दशकों में काफी बदलाव हुए हैं। आज रेलवे के समक्ष आतंकवाद और उग्रवाद की वह समस्या नहीं जो पहले हुआ करती थी। मुंबई हमले के बाद इंटीग्रेटेड सिक्यूरिटी सिस्टम के तहत कई काम हुए। यही नहीं राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष के रूप में 2017-18 में पांच साल की अवधि के लिए एक लाख करोड़ रुपए की एक खास निधि से रेलपथ नवीकरण, सुरक्षा, पुलों की मरम्मत जैसे कई काम हुए। रेल संबंधी संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट बताती है कि 2017-18 से रेल दुर्घटनाओं का घटता क्रम 2021-22 से फिर उठान पर है। कवच से लेकर कोई भी अत्याधुनिक तकनीक रेलवे के पास पहुंच जाए तो भी कर्मचारियों की अहमियत बरकरार रहेगी।

भारतीय रेल में स्वीकृत 14.74 लाख स्वीकृत पदों की तुलना में 11.62 लाख कर्मचारी काम कर रहे हैं।  भले ही हवाई अड्डों जैसे रेलवे स्टेशन बाद में बनें पर हर रेल यात्री सुरक्षित यात्रा करना चाहता है। रेलवे को ही यह सुनिश्चित करना है कि उसे चमक-दमक या रफ्तार को प्राथमिकता देनी है, या सुरक्षा और संरक्षा को. बेशक रेलवे में सफलता की तमाम कहानियों के बीच आज जरूरत इस बात की है कि हर हाल में सुरक्षा औऱ संरक्षा के पहलुओं को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए। रेलवे क्षेत्र के विशेषज्ञों का एक आयोग बना कर नए दौर की चुनौतियों के आलोक में प्राथमिकताएं तय की जाएं, कवच को हर क्षेत्र में लगाया जाए ताकि हर जान सुरक्षित रहे।

Web Title: Many questions raised by Kanchenjunga train accident

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