पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: मानसून की बारिश को त्रासदी नहीं, जीवन पर्व बनाएं

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: July 20, 2024 10:42 IST2024-07-20T10:41:07+5:302024-07-20T10:42:01+5:30

जैसे ही प्रकृति ने अपना आशीष बरसाया और ताल-तलैया, नदी-नाले उफन कर धरा को अमृतमय करने लगे, अजीब तरह से समाज का एक वर्ग इसे जल प्रलय, हाहाकार जैसे शब्दों से निरूपित करने लगा. 

Make monsoon rain a celebration of life, not a tragedy | पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: मानसून की बारिश को त्रासदी नहीं, जीवन पर्व बनाएं

पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: मानसून की बारिश को त्रासदी नहीं, जीवन पर्व बनाएं

Highlightsआषाढ़ शुरू होते ही मानसून ने अभी दस्तक दी ही थी कि भारत के जो हिस्से पानी के लिए व्याकुल थे, पानी-पानी हो गए. धरती पर इंसान का अस्तित्व बनाए रखने के लिए पानी जरूरी है तो पानी को बचाए रखने के लिए बारिश का संरक्षण ही एकमात्र उपाय है. इस समय देश के हर एक इंसान को जल देवता के अभिषेक के लिए खुद कुछ समय और श्रम देना ही चाहिए.

आषाढ़ शुरू होते ही मानसून ने अभी दस्तक दी ही थी कि भारत के जो हिस्से पानी के लिए व्याकुल थे, पानी-पानी हो गए. जैसे ही प्रकृति ने अपना आशीष बरसाया और ताल-तलैया, नदी-नाले उफन कर धरा को अमृतमय करने लगे, अजीब तरह से समाज का एक वर्ग इसे जल प्रलय, हाहाकार जैसे शब्दों से निरूपित करने लगा. 

असल में जब धरती तप रही थी, तब समाज को अपने आसपास के कुएं, बावड़ी, तालाब, जोहड़, नदी, सरिता से गंदगी साफ करना था, उसमें जम गई गाद को खेतों तक ले जाना था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं, सो जो पानी सारे साल के लिए धरती को जीवन देता, वह लोगों को कहर लगने लगा. एक बात समझना होगा कि नदी, नहर, तालाब झील आदि पानी के स्रोत नहीं हैं, हकीकत में पानी का स्रोत मानसून है या फिर ग्लेशियर. 

तालाब, नदी-दरिया आदि तो उसको सहेजने का स्थान मात्र हैं. मानसून की हम कद्र नहीं करते और उसकी नियामत को सहेजने के स्थान को गर्मी में तैयार नहीं करते, इसलिए जलभराव होता है और फिर कुछ दिन बाद जल-भंडार खाली. आज गंगा-यमुना के उद्गम स्थल से लेकर छोटी नदियों के किनारे बसे गांव-कस्बे तक बस यही हल्ला है कि बरसात ने खेत-गांव सबकुछ उजाड़ दिया. 

लेकिन जरा मानसून विदा होने दीजिए, उन सभी इलाकों में पानी की एक-एक बूंद के लिए मारा-मारी होगी. अभी सावन और भादों के महीने सामने खड़े हैं. इस समय देश के हर एक इंसान को जल देवता के अभिषेक के लिए खुद कुछ समय और श्रम देना ही चाहिए. भले ही हमने गर्मी में तैयारी नहीं की लेकिन अभी भी कोई देर नहीं हुई है, बस कुछ भीगने और हाथ-पैर में पावन मिट्टी के लिपटने को तैयार हों. 

धरती पर इंसान का अस्तित्व बनाए रखने के लिए पानी जरूरी है तो पानी को बचाए रखने के लिए बारिश का संरक्षण ही एकमात्र उपाय है. यदि देश की महज पांच प्रतिशत जमीन पर पांच मीटर औसत गहराई में बारिश का पानी जमा किया जाए तो पांच सौ लाख हेक्टेयर पानी की खेती की जा सकती है. इस तरह औसतन प्रति व्यक्ति 100 लीटर पानी पूरे देश में दिया जा सकता है.

और इस तरह पानी जुटाने के लिए जरूरी है कि स्थानीय स्तर पर सदियों से समाज की सेवा करने वाली पारंपरिक जल प्रणालियों को खोजा जाए, उन्हें सहेजने वाले, संचालित करने वाले समाज को सम्मान दिया जाए और एक बार फिर समाज को ‘पानीदार’ बनाया जाए. तो मानसून का त्रासदी नहीं, जीवन के अनिवार्य तत्व के अवसर की तरह आनंद लें, जहां स्थान मिले, बरसात के पानी को रोकें और उसे दो-तीन दिन में धरती में जज्ब हो जाने दें.

Web Title: Make monsoon rain a celebration of life, not a tragedy

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