Maharashtra Politics: महाविकास आघाड़ी की उभरती अंदरूनी परेशानियां?, विधानसभा चुनाव में 46 सीटें जीतने के बाद
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: January 13, 2025 06:10 IST2025-01-13T06:10:30+5:302025-01-13T06:10:30+5:30
Maharashtra Politics: गठबंधन के पैरोकार शिवसेना ठाकरे गुट के सांसद संजय राऊत को गठबंधन की बात उठाने पर कार्यकर्ताओं के गुस्से का सामना करना पड़ा.

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Maharashtra Politics: विधानसभा चुनाव में 46 सीटें जीतने के बाद महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी में अंदरूनी तौर पर सब कुछ ठीक नहीं है. एक तरफ जहां राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के नेता शरद पवार अपनी पार्टी की बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में निष्ठा की सराहना कर चर्चा में हैं, तो दूसरी ओर शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) विधानसभा चुनाव में ठगा महसूस करने के कारण खुद को अलग करने का मन बना रहा है. फिर भी कांग्रेस के नेतृत्व के मन में गठबंधन है, बावजूद इसके कि जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता स्वतंत्र छवि की मांग बुलंद कर रहे हैं.
लोकसभा चुनाव में निर्दलीय समर्थन के साथ 31 सीटें जीतने वाली आघाड़ी विधानसभा चुनाव में भी जोेरदार वापसी की उम्मीद में थी, लेकिन इस चुनाव में झटका इतना बड़ा लगा कि उससे उबरते नहीं बन रहा है. गठबंधन के साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने का अंतर समझ में आ गया है. आने वाले दिनों में महानगर पालिकाओं, नगर परिषदों, जिला परिषदों के चुनाव होंगे.
यदि उनमें भी निचले स्तर का तालमेल नहीं बना तो मुश्किल विधानसभा चुनाव से अधिक होगी. यही कारण है कि शिवसेना(उद्धव ठाकरे गुट) ने अकेले स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ने की घोषणा की है. यह बात सहज नहीं, बल्कि कहा जा रहा है कि एक बैठक में कार्यकर्ताओं के बड़े हंगामे के बाद तय हुई.
यहां तक कि गठबंधन के पैरोकार शिवसेना ठाकरे गुट के सांसद संजय राऊत को गठबंधन की बात उठाने पर कार्यकर्ताओं के गुस्से का सामना करना पड़ा. उधर, दस सीटें जीतने के बाद राकांपा शरद पवार गुट असहज स्थिति में है. उसके लिए विधायक तो दूर, सांसदों को एकजुट बनाए रखना बड़ी चुनौती मालूम पड़ रही है.
लिहाजा वह भी अपने भविष्य को लेकर चिंतित है. इनके बीच कांग्रेस है, जो अपने आलाकमान के आदेश-निर्देश पर निर्भर है. मगर स्थानीय स्तर पर उसके लिए भी सब कुछ अच्छा नहीं है. साफ है कि विपरीत विचारधारा के दलों के साथ आने से बना गठबंधन परेशानियों के दौर से गुजर रहा है.
हालांकि इसमें भी कांग्रेस के नेता समाधान की बात कर रहे हैं. किंतु बाकी दोनों दल अपनी राह पकड़ने के लिए तैयार हैं. दूसरी ओर आने वाले दिनों में होने वाले स्थानीय निकायों के चुनावों को लेकर महागठबंधन काफी सजग है. वह अपनी जड़ों को मजबूत करने की चाह में आपस में कोई विवाद नहीं कर रहा है, जिससे आघाड़ी की चिंता और बढ़ रही है.
इस परिस्थिति में आघाड़ी के दलों के अनेक नेता अपना भविष्य सुरक्षित करने की दिशा में कदम बढ़ाने में संकोच नहीं कर रहे हैं. स्पष्ट है कि पिछले विधानसभा चुनाव के बाद बना गठबंधन ढाई साल राज्य सरकार को चलाने में तो सफल रहा, मगर उसके बाद से परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. निकट भविष्य में उनमें कोई कमी आने के आसार नहीं हैं. व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के आगे अधिक समझौते करने होंगे, जिनके नुकसान-फायदे न चाहते हुए भी गिनने ही होंगे.