ब्लॉग: सराहनीय पहल, कोविड-19 से अनाथ हुए छात्रों की पढ़ाई का खर्च उठाएगी महाराष्ट्र सरकार
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: August 24, 2022 03:07 PM2022-08-24T15:07:48+5:302022-08-24T15:07:48+5:30
महाराष्ट्र सरकार में मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने विधानसभा में घोषणा की है कि कोविड-19 के दौरान अनाथ हुए छात्रों की पढ़ाई का खर्च राज्य सरकार उठाएगी. यह एक अच्छी पहल है. सरकार की जरूरत ऐसे कामों में ज्यादा होती है.
कोरोनाकाल के दौरान अपने माता-पिता को खो चुके बच्चों की फीस भरने का महाराष्ट्र सरकार का फैसला निश्चित रूप से स्वागत योग्य है. राज्य सरकार में मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने सोमवार को विधानसभा में घोषणा की कि कोविड-19 के दौरान अनाथ हुए छात्रों की पढ़ाई का खर्च राज्य सरकार उठाएगी.
इस फैसले से सरकारी खजाने पर भार भी मात्र दो करोड़ रु. सालाना पड़ेगा, क्योंकि कोविड महामारी के दौरान विभिन्न सरकारी कॉलेजों में पढ़ने वाले स्नातक के 931 और स्नातकोत्तर के 228 छात्र अनाथ हुए हैं. लेकिन अगर ज्यादा भी पड़ता तब भी इसका बोझ उठाना राज्य सरकार का दायित्व था. वस्तुत: सरकार की जरूरत ऐसे ही कामों के लिए पड़ती है या पड़नी चाहिए.
आदर्श शासन वही होता है जिसमें किसी भी तरह की आपदा से प्रभावित होने वाले नागरिकों का सरकार द्वारा ध्यान रखा जाए. देश में कोरोना की दूसरी लहर इतनी भयानक थी, कि आज भी उसकी याद करके रूह कांप जाती है. न जाने कितने लोगों ने इस महामारी के दौरान अपने परिजनों-प्रियजनों को खोया था. उनकी पीड़ा का तो अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता जिन्होंने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया. उस क्षति की भरपाई तो कभी हो ही नहीं सकती लेकिन जितनी भी संभव हो, सरकार को ऐसे पीड़ितों की मदद करनी चाहिए.
पिछले दिनों जब कोरोना से होने वाली मौतों के लिए मृतकों के परिजनों को सरकारी प्रावधान के अनुसार मुआवजे की घोषणा की जा रही थी तो दुर्भाग्य से कुछ लोगों ने फर्जी तरीके से भी इसका लाभ लेने की कोशिश की थी. ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि उनका यह लालच योजना के वास्तविक लाभार्थियों को लाभ पाने से कहीं न कहीं वंचित करता है.
होना तो यह चाहिए कि जिन्होंने महामारी का प्रकोप नहीं झेला है, वे ईश्वर के प्रति शुक्रगुजार हों और आपदा को झेलने वालों की मदद करने की कोशिश करें. दरअसल सबकुछ सरकार के भरोसे छोड़ देने पर होता यह है कि जो सरकार जनता की सेवा के लिए बनी होती है या होनी चाहिए, वह उसकी स्वामी बन जाती है. इसलिए अगर हम चाहते हैं कि सरकार अपने दायित्वों का भलीभांति निर्वहन करे तो इसके लिए हमें भी अपने दायित्वों का पूर्णत: निर्वाह करना चाहिए.