सुदूर इलाकों के लिए अब भी ऑनलाइन शिक्षा दूर की कौड़ी, फहीम खान का ब्लॉग
By फहीम ख़ान | Published: June 24, 2021 01:27 PM2021-06-24T13:27:23+5:302021-06-24T13:28:58+5:30
वर्ष 2003-04 की बात है, जब बीएसएनएल के नेटवर्क को जिले के सुदूर इलाको में पहुँचाने के लिए प्रशासन और संबंधित विभाग के लोगों को काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी।
मैं पिछले रविवार से महाराष्ट्र के सबसे पिछड़े और नक्सल प्रभावित जिले गढ़चिरोली के सुदूर इलाकों में घूम रहा था। वैसे तो इस जिले में पहले 12 साल काम चुका हूं इसलिए नया कुछ नहीं है।
बावजूद इसके 2012 को जब से मैंने ट्रांसफर के बाद से यह जिला छोड़ा तब से अब तक इन 9 सालों में भी बदलाव के नाम पर तत्कालीन गृहमंत्री स्व. आर. आर. पाटिल की दूरदृष्टि से बनते पूल के अलावा कुछ नया होता नहीं दिखा। वर्ष 2003-04 की बात है, जब बीएसएनएल के नेटवर्क को जिले के सुदूर इलाको में पहुँचाने के लिए प्रशासन और संबंधित विभाग के लोगों को काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी।
ये समय ऐसा था जब सारे लोग इन इलाकों में मोबाइल नेटवर्क फैलाने के लिए युद्धस्तर पर कोशिश कर रहे थे। पुलिस प्रशासन का वैसे तो इससे सीधा संबंध था नही लेकिन फिर भी उन्होंने अपने सिविक प्रोग्राम के तहत इसे बेहद गंभीरता से लिया और नतीजा यह रहा कि वर्ष 2008-09 आते आते सुदूर इलाकों में मोबाइल टॉवर खड़े हुए और मोबाइल का नेटवर्क तेजी से विकास के लिए काम आने लगा।
पुलिस के लिए अपने इनफॉर्मर का तगड़ा नेटवर्क खड़ा करने में भी मदद मिली। यहीं कारण था कि बाद के वर्षों में गढ़चिरोली जिले में नेटवर्क की बदौलत काफी विकास काम हो सके। आज इतने वर्षों के बाद जब कोरोना संक्रमण की वजह से स्कूल, कॉलेज बंद पड़े है तो ऑनलाइन शिक्षा की बात कही जा रही है।
इस हफ्ते में जब मैंने गढ़चिरोली जिले के सुदूर इलाको का दौरा किया तो मुझे मोबाइल नेटवर्क की समस्या पेश आई। जानकारी लेने पर पता चला कि गढ़चिरोली जिले के दक्षिण इलाके में स्थित भामरागड, सिरोंचा और एटापल्ली जैसी सुदूर तहसीलों में मोबाइल नेटवर्क गंभीर समस्या बन गया है।
यहां निजी मोबाइल नेटवर्क की कोशिशें तो हो रही है लेकिन फिर वही पुराने नियम कानून के नाम पर प्रशासन ने नेटवर्क की राह रोके रखी है। इस तरह के माहौल में आप ऑनलाइन शिक्षा की कैसे उम्मीद कर सकते है। अभी कोरोना की तीसरी लहर का अंदेशा बना हुआ है। ऐसे में स्कूल ,कॉलेज अभी दीवाली तक खुलने के आसार नही है। आदिवासी आश्रम स्कूल भी बंद पड़ी है।
ऐसे में इन बच्चो के एजुकेशन का क्या होगा? अगर नेटवर्क ठीक होता तो ऑनलाइन शिक्षा किसी तरह दी भी जा सकती थी। लेकिन ऐसा नही की केवल इसी समय के लिए आपको नेटवर्क की ज्यादा जरूरत है। आज प्रतियोगी परीक्षा का दौर है। ऐसे समय मे अगर नेटवर्क उपलब्ध हो जाता है तो सुदूर इलाको के लोग भी बड़े शहरों के प्रशिक्षकों से प्रशिक्षण ले सकेंगे।
भविष्य की मजबूत पीढ़ी के निर्माण के लिए अब प्रशासन को चाहिये की वह सुदूर इलाको में मोबाइल नेटवर्क को और मजबूत करने को लेकर एक बार फिर से अभियान चलाए। इसमे प्रशासन और सरकार को भी फायदा ही होगा। अच्छे, प्रशिक्षित शिक्षकों, संस्थानों की मदद से आप सुदूर इलाको के बच्चो तक नए अवसर पहुँचा सकेंगे। जितना नेटवर्क मजबूत होगा उतना ही जल्दी सुदूर इलाको से जानकारी जिला, विभागीय, राज्य और राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच सकेगी।