एम. वेंकैया नायडू का ब्लॉग: भाषाई विरासत को समृद्ध करना जरूरी
By एम वेंकैया नायडू | Published: April 10, 2019 04:32 PM2019-04-10T16:32:16+5:302019-04-10T16:32:16+5:30
भाषा बौद्धिक और भावनात्मक अभिव्यक्ति के लिए एक उपकरण है. भाषा संस्कृति, वैज्ञानिक ज्ञान और विश्व दृष्टि के वैश्विक संचरण का माध्यम है. यह महत्वपूर्ण अदृश्य धागा है, जो अतीत को वर्तमान से जोड़ता है. यह मानव विकास के साथ विकसित होता है और निरंतर उपयोग से इसे पोषण मिलता है.
विगत गुरुवार को संस्कृत, पाली, प्राकृत, अरबी, फारसी, तेलुगु, कन्नड़, ओड़िया और मलयालम के विद्वानों के सम्मान के समय वास्तव में मैं बहुत खुश था. मानव संसाधन विकास मंत्रलय द्वारा आयोजित एक समारोह में शास्त्रीय भाषाओं के संरक्षण और विकास के लिए उन्हें पुरस्कार प्रदान किया गया. मैं प्रसन्न था कि देश उन विद्वानों की सराहना और पहचान कर रहा था जो पारंपरिक ज्ञान को जीवित रखे हुए हैं और जो अतीत तथा वर्तमान के बीच बौद्धिक पुल का काम कर रहे हैं. महान भारतीय कवि आचार्य दंडी ने कहा था कि यदि भाषाओं का उजाला न होता तो हम अंधेरी दुनिया में भटक रहे होते.
भाषा बौद्धिक और भावनात्मक अभिव्यक्ति के लिए एक उपकरण है. भाषा संस्कृति, वैज्ञानिक ज्ञान और विश्व दृष्टि के वैश्विक संचरण का माध्यम है. यह महत्वपूर्ण अदृश्य धागा है, जो अतीत को वर्तमान से जोड़ता है. यह मानव विकास के साथ विकसित होता है और निरंतर उपयोग से इसे पोषण मिलता है.
मैंने हमेशा अपनी भाषाई विरासत की रक्षा और संरक्षण के महत्व पर बल दिया है. हमारी भाषाएं हमारे इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. वास्तव में वे हमारी पहचान, परंपराओं और रिवाजों को परिभाषित करती हैं. जनता के बीच संबंध मजबूत करने में वे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.
हम बहुभाषीय देश हैं, जहां 19500 से अधिक भाषाएं या बोलियां बोली जाती हैं. हालांकि करीब 97 प्रतिशत आबादी 22 अनुसूचित भाषाओं में से ही कोई एक भाषा बोलती है.
आधुनिक भारतीय भाषाओं की जड़ें प्राचीन हैं और उनका उद्गम शास्त्रीय भाषाओं से हुआ है. अनेक भाषाओं की अपनी समृद्ध साहित्यिक परंपरा है, विशेष रूप से जिन्हें भारत सरकार द्वारा शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता हासिल है. बेशक, संस्कृत एक सबसे पुरानी इंडो-यूरोपियन भाषा है, जिसके प्रमाण ईसापूर्व दूसरी सहस्नब्दी से मिलते हैं.
भारतविद विलियम जोंस ने 1786 में कहा था, ‘संस्कृत भाषा की प्राचीनता जो भी हो, इसकी संरचना अद्भुत है, ग्रीक भाषा से यह ज्यादा संपूर्ण है, लैटिन की तुलना में अधिक विपुल है, दोनों की तुलना में अधिक परिष्कृत है, हालांकि दोनों के व्याकरण की जड़ें बहुत गहरी हैं.’ जैसा कि एम्सटर्डम यूनिवर्सिटी के रेन्स बोड ने कहा है, ‘भाषा विज्ञान का इतिहास प्लेटो या अरस्तू के साथ नहीं बल्कि व्याकरण के भारतीय रचनाकार पाणिनि के साथ शुरू होता है.’ कुछ भाषाओं को उनकी प्राचीन साहित्यिक विरासत के कारण शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है. उदाहरण के लिए तमिल साहित्य की जड़ें 500 ईसापूर्व, तेलुगु 400 ईसापूर्व, कन्नड़ 450 ईसापूर्व, मलयालम 1198 ईस्वी और ओड़िया की 800 ईस्वी सन से मौजूद दिखाई देती हैं. इनमें से प्रत्येक भाषा में साहित्य का समृद्ध खजाना है.
यदि हम इस परंपरा को संरक्षित नहीं रखते हैं तो हम विरासत में मिले अपने समृद्ध खजाने की चाबी को खो देंगे. विशेषज्ञों के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि लगभग 600 भाषाएं विलुप्त होने के कगार पर हैं और पिछले 60 वर्षो में 250 से अधिक भाषाएं विलुप्त हो गई हैं. जब भाषा मरती है तो एक पूरी संस्कृति मर जाती है. हम ऐसा नहीं होने दे सकते. भाषाओं सहित अपनी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करना हमारा संवैधानिक कर्तव्य है. प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन और उनका प्रचार करना आज के समय की जरूरत है. शास्त्रीय भाषाओं और साहित्य का अध्ययन इतिहास के प्रामाणिक स्नेतों तक पहुंच प्रदान करेगा, इसलिए जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तब पांडुलिपियों के लिए राष्ट्रीय मिशन की स्थापना की गई. प्राचीन ग्रंथों का संरक्षण सिर्फ पहला कदम है. जो हमें करने की जरूरत है वह यह कि इन प्राथमिक स्नेतों का उपयोग करके अनुसंधान करने के लिए विद्वानों को प्रेरित करें और नया ज्ञान हासिल करें.हमें अपने ज्ञान में वृद्धि करनी चाहिए और अपने वर्तमान तथा भविष्य को रौशन करना चाहिए.
आज हम एक तेजी से बदलती हुई दुनिया में रह रहे हैं, जहां प्रौद्योगिकी हमारे जीवन और काम करने के तरीके को बदल रही है. हमें अपनी भाषाओं और संस्कृति को संरक्षित करने व बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी की शक्ति का दोहन करना चाहिए. कई भारतीय भाषाओं में भाषा प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता उपकरण विकसित करने के लिए आवश्यक संसाधन अपर्याप्त या अनुपलब्ध हैं. इस खाई को पाटने के लिए, भारत सरकार ने वर्ष 2008 में भारतीय भाषाओं के लिए लिंग्विस्टिक डाटा कंसोर्टियम (एलडीसी-आईएल) योजना शुरू की है और भारत की सभी अनुसूचित भाषाओं में पिछले 11 वर्षो से उच्च गुणवत्ता वाले भाषाई संसाधन तैयार किए जा रहे हैं.
भाषा के संरक्षण और विकास के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण की जरूरत है. इसे प्राथमिक स्कूल स्तर पर शुरू करना चाहिए और शिक्षा के उच्च स्तर तक जारी रखना चाहिए. कम से कम एक भाषा में कार्यात्मक साक्षरता सुनिश्चित की जानी चाहिए.
अधिकाधिक लोगों को इन भाषाओं में कविता, कहानी, उपन्यास और नाटक लिखने चाहिए. हमें इन भाषाओं में बोलने, लिखने और संवाद करने वालों के लिए सम्मान और गर्व की भावना रखनी चाहिए. हमें भारतीय भाषा के प्रकाशनों, पत्रिकाओं और बच्चों के लिए लिखी जाने वाली पुस्तकों को प्रोत्साहित करना चाहिए. बोलियों और लोक साहित्य पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए. समावेशी विकास के लिए भाषा को एक उत्प्रेरक बनना चाहिए.