Lok Sabha Election BJP: भाजपा के सामने सत्ता के बंटवारे की चुनौती, 2024 में ‘ब्रांड मोदी’ को बड़ा झटका, आखिर क्या है यहां जानिए
By हरीश गुप्ता | Updated: June 27, 2024 09:35 IST2024-06-27T09:34:28+5:302024-06-27T09:35:31+5:30
Lok Sabha Election BJP: 2019 में 303 सीटें जीतकर भाजपा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. 2024 में ‘ब्रांड मोदी’ को बड़ा झटका लगा और भाजपा 240 लोकसभा सीटों पर सिमट गई.

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Lok Sabha Election BJP: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एकल खिलाड़ी और अपने काम में दक्ष माना जाता है. मोदी ने एक नई कार्यसंस्कृति लाकर पूरे देश में जोश पैदा किया. गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने 13 साल के कार्यकाल के दम पर ही वे 2014 के लोकसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत पाने वाले 30 साल में पहले नेता बने. उन्होंने 2019 में अपनी सीटों की संख्या में और सुधार किया और 303 सीटें जीतकर भाजपा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. लेकिन 2024 में ‘ब्रांड मोदी’ को बड़ा झटका लगा और भाजपा 240 लोकसभा सीटों पर सिमट गई.
बेशक, मोदी ने 293 सांसदों के साथ गठबंधन सरकार बनाई. लेकिन भाजपा अभी भी इनकार की मुद्रा में है और ऐसा दिखा रही है जैसे मोदी 2.0 और मोदी 3.0 सरकारों में कोई अंतर नहीं है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अभी शुरुआती दिन हैं और मोदी 2.0 और मोदी 3.0 सरकारों के बीच अंतर को समझने में समय लगेगा.
भाजपा के सहयोगी दल भी अपने-अपने मामलों को सुलझाने में व्यस्त हैं. हालांकि, उनमें से कई ने पिछले 10 वर्षों के दौरान मोदी सरकार की कार्यशैली का स्वाद चखा है. वे जानते हैं कि इस अवधि के दौरान भाजपा ने अपने सहयोगियों और अन्य लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया. लेकिन उन्होंने अपने हितों के मुद्दों पर बात करना शुरू कर दिया है.
जल्द ही राज्यपालों, आयोगों और न्यायाधिकरणों में अध्यक्षों और सदस्यों, सार्वजनिक उपक्रमों में निदेशकों आदि की नियुक्तियों में अपना हिस्सा मांगेंगे. अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान, मोदी सरकार ने ऐसी नियुक्तियों में आरएसएस के पदाधिकारियों की भी नहीं सुनी थी. भाजपा पर अपने सहयोगियों के साथ सत्ता को साझा करने का दबाव होगा.
भाजपा को क्यों रहना होगा सतर्क
भाजपा ने भले ही लगातार तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाकर इतिहास रच दिया हो, लेकिन उसे अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए 2024 में फिर से परीक्षा पास करनी होगी. पार्टी ने बहुत कुछ खो दिया है और उसकी अजेयता पर सवालिया निशान लग गया है क्योंकि वह 240 लोकसभा सीटें जीतकर बहुमत से 32 सीट पीछे रह गई.
अपना दबदबा फिर से हासिल करने के लिए भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में तीन में से कम से कम दो विधानसभा चुनाव जीतने होंगे. हालांकि जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव होने की संभावना है, लेकिन सरकार अन्य तीन राज्यों में इसी तरह की कवायद करने से पहले इसे कराने पर विचार कर रही है.
दिलचस्प बात यह है कि भाजपा इन तीनों राज्यों में शासन कर रही है और लोकसभा के चौंकाने वाले नतीजों से पहले उसका प्रदर्शन मजबूत था. भाजपा और उसके सहयोगी महाराष्ट्र और हरियाणा में अपना दबदबा बनाए रखने में बुरी तरह विफल रहे और झारखंड में बमुश्किल लोकसभा की अधिकांश सीटें जीत पाए.
महायुति ने अधिकांश लोकसभा सीटें खो दीं और तीनों सहयोगियों, भाजपा-शिवसेना-राकांपा के बीच काफी अनिश्चितताएं पैदा हो गई हैं. भाजपा के लिए एकमात्र अच्छी बात यह है कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाला शिवसेना (यूबीटी) गुट अब हिंदुत्ववादी ताकतों का मसीहा नहीं रह गया है क्योंकि वह शरद पवार और कांग्रेस के साथ गठबंधन में है जो राज्य में ‘धर्मनिरपेक्ष’ ताकतों का प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं.
इसी तरह, हरियाणा में भी भाजपा के सामने एक समस्या है, जहां वह दस साल से सत्ता में है. लेकिन मुख्यमंत्री बदलने के बावजूद वह दस में से पांच लोकसभा सीटें हार गई और दो सीटें बहुत कम अंतर से जीत पाई. भाजपा ने विधानसभा चुनाव जीतने के लिए इस छोटे से राज्य से तीन केंद्रीय मंत्री बनाए हैं.
झारखंड में, भाजपा को फिर से उभर रहे इंडिया गठबंधन का सामना करना पड़ेगा, हालांकि उसने 14 में से 9 सीटें जीती हैं. इन राज्यों में कोई भी प्रतिकूल परिणाम एनडीए गठबंधन में और अधिक अनिश्चितताएं पैदा करेगा.
जयराम रमेश ने कैसे छोड़ी अपनी छाप
पूर्व केंद्रीय मंत्री और चार बार राज्यसभा सांसद रहे जयराम रमेश ने इस आम चुनाव में मीडिया रणनीति को बखूबी संभालकर अपनी योग्यता साबित की और कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख के रूप में अपने संचार कौशल का परिचय दिया. पिछले 45 वर्षों में उन्होंने जहां भी काम किया, एकल खिलाड़ी के रूप में ही काम करते रहे.
भारत में उन्होंने 1979 में औद्योगिक लागत एवं मूल्य ब्यूरो में अर्थशास्त्री लोवराज कुमार के सहायक के रूप में काम शुरू किया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1975 में आईआईटी बॉम्बे से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक. करने और कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी के हेंज कॉलेज में अध्ययन करने के बाद, उन्होंने मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में डॉक्टरेट भी किया.
उन्होंने 2009 से 2014 तक मनमोहन सिंह सरकार में प्रमुख विभागों को संभाला. लेकिन कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने के बाद वे एक भूमिका की तलाश में थे और अपने कौशल को साबित करने व भाजपा का सफलतापूर्वक मुकाबला करने के लिए एक आख्यान बनाने के लिए दस साल तक इंतजार किया.
यह पहली बार था जब भाजपा के मीडिया विभाग को जयराम रमेश के रूप में टक्कर मिली, क्योंकि वे चौबीसों घंटे काम कर रहे थे. राहुल गांधी ने कुछ विरोधी आवाजों की परवाह किए बिना उन्हें पूरी छूट दे दी. जयराम रमेश फालतू की बातें बर्दाश्त नहीं करते और शायद उन चंद नेताओं में से हैं जिनकी बात राहुल गांधी सुनते हैं.