उमेश चतुर्वेदी का ब्लॉग: असल मुद्दों से दूर चुनाव अभियान

By उमेश चतुर्वेदी | Published: April 3, 2019 07:04 AM2019-04-03T07:04:04+5:302019-04-03T07:04:04+5:30

सबसे ज्यादा साक्षरता दर वाले राज्य केरल में वोटिंग विचारधारा के साथ इससे भी तय होती है कि उम्मीदवार नायर है या इजवा है, ईसाई है या मुस्लिम है. केरल से सटे तमिलनाडु में भी गोंदर, वन्नियार और थेवर समूह मतदान में असर डालता है.

LOK SABHA ELECTION 2019: Real issues are missing in election | उमेश चतुर्वेदी का ब्लॉग: असल मुद्दों से दूर चुनाव अभियान

उमेश चतुर्वेदी का ब्लॉग: असल मुद्दों से दूर चुनाव अभियान

इस बार के चुनावों में दो तरह के रंग दिख रहे हैं. महानगरीय समाज अपने रोजाना के काम में जुटा हुआ है. एक हद तक वह चुनावी चर्चा से दूर दिख रहा है. अपवादों को छोड़ दें तो शहरी मतदाता इन चुनावों को लेकर मुखर नजर नहीं आ रहा. लेकिन ग्रामीण समाज चुनावी चर्चा को लेकर मुखर है.

यहां चर्चाएं भी दो तरह की हो रही हैं. कुछ लोग ऐसे हैं, जो चुनावी माहौल की व्याख्या सरकारी तंत्न की उपलब्धियों, किए गए कामों के आधार पर कर रहे हैं और इस लिहाज से वोट देने या न देने की बात कर रहे हैं तो दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं, जिनके लिए अपना जातीय स्वाभिमान कुछ ज्यादा ही गहरा है.

चाहे जिस भी दल के वे समर्थक हों, लेकिन वे चाहते हैं कि उनके यहां उनकी ही जाति के उम्मीदवार को वह दल मौका दे. 

उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में यह सोच कुछ ज्यादा ही गहरी है. वैसे कुछ राज्यों के राजनीतिक कर्णधार दावा करते हैं कि उनके यहां ऐसी सोच नहीं चलती, लेकिन हकीकत इससे उलट है.

सबसे ज्यादा साक्षरता दर वाले राज्य केरल में वोटिंग विचारधारा के साथ इससे भी तय होती है कि उम्मीदवार नायर है या इजवा है, ईसाई है या मुस्लिम है. केरल से सटे तमिलनाडु में भी गोंदर, वन्नियार और थेवर समूह मतदान में असर डालता है.

कर्नाटक में लिंगायत और वोक्कालिगा जातीय समूह के प्रभाव में चुनाव होते हैं. यह दुर्भाग्यजनक भले ही हो, लेकिन वोटिंग की राजनीति के लिए आजादी के बहत्तर साल बाद भी जाति एक कड़वी सच्चाई है. इस सच्चाई से पार पाए बिना लोकतंत्न के सबसे पवित्न और बड़े मंदिर संसद के दरवाजे नहीं खुल पाते. कहना न होगा कि ग्रामीण समाजों में इस बार भी इस सच्चाई के साथ चुनाव हो रहे हैं.

अपना राजनीतिक तंत्न इस स्तर पर पहुंच गया है कि वहां असल मुद्दा मतदान का आधार नहीं बन पाता. राजनीतिक दल अब चुनाव घोषणा पत्न की बजाय विजन डाक्युमेंट या दृष्टिपत्न जारी करने लगे हैं.

उनमें मुद्दों की बात होती है. ढेर सारे वादे होते हैं. कई बार कुछ लुभावने वादों के चक्कर में जनता आ भी जाती है. लेकिन ज्यादातर मामलों में ये वादे सिर्फ दिखावटी ही होते हैं. असल मतदान तो भावनाओं की धार में ही होता है.

Web Title: LOK SABHA ELECTION 2019: Real issues are missing in election