शोभना जैन का ब्लॉग, संघर्ष विराम के पालन में कितनी संजीदगी दिखाएगा पाकिस्तान?
By शोभना जैन | Published: March 5, 2021 12:18 PM2021-03-05T12:18:36+5:302021-03-05T12:20:40+5:30
भारत और पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा पर और अन्य क्षेत्रों में संघर्ष विराम संबंधी सभी समझौतों का सख्ती से पालन करने पर सहमति जताई.
भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले कुछ वर्षों से चल रही ‘जाहिराना तल्खियों’ के बीच गत 25-26 फरवरी को दोनों देशों के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों द्वारा अचानक किए गए एक संयुक्त ऐलान से सभी चकित रह गए.
यह अहम बयान था कि दोनों देश नियंत्नण रेखा तथा सभी सेक्टरों में 2003 के संघर्ष विराम का ‘सख्ती से पालन’ करेंगे. खबरों के मुताबिक संघर्ष विराम को लागू करने के नए संकल्प के पांच दिन बाद अभी फिलहाल अंतर्राष्ट्रीय सीमा और नियंत्नण रेखा पर लंबे अंतराल के बाद हालांकि शांति बहाल हुई है, लेकिन हकीकत यह भी है कि दोनों देशों के बीच 2003 में हुए संघर्ष विराम का पिछले ऐसे समझौतों की तरह पाकिस्तान ने कभी भी ईमानदारी से पालन नहीं किया. ऐसे में कितने ही सवाल हवा में तैर रहे हैं.
इस बार भी आखिर इस समझौते पर पाकिस्तान के रुख को लेकर कितना भरोसा किया जाए? समझौते से कितनी उम्मीदें हैं? अभी जबकि समझौते को लागू करने के नियम और प्रारूप नहीं बने हैं, ऐसे में यह सवाल अहम है कि क्या इन पर दोनों पक्षों के बीच सहमति हो पाएगी, खास कर ऐसे में जबकि समझौते में कहा गया है कि ‘दोनों देश अपने बुनियादी सरोकार तथा बुनियादी मुद्दों’ के समाधान के लिए काम करेंगे.
यह साफ है कि भारत का बुनियादी मुद्दा पाकिस्तान की तरफ से सीमा पार आतंकवाद यानी पाकिस्तान की जमीन से संचालित होने वाली आतंकी गतिविधियों को रोकना है. उसका स्पष्ट दृष्टिकोण रहा है कि आतंक और वार्ता साथ-साथ नहीं चल सकते और उधर पाकिस्तान ने भारत के अभिन्न अंग कश्मीर को अपना निर्मूल बुनियादी मुद्दा बनाकर उस पर अपनी सुई अटका रखी है.
ऐसे में सहमति के बिंदु कैसे बनेंगे? वैसे तो इस अचानक ऐलान से पहले पिछले कुछ माह से चल रही ‘बैक चैनल डिप्लोमेसी’ का हाथ है. समझौता दोनों देशों के सैन्य ऑपरेशंस के महानिदेशकों के बीच मात्न बातचीत के बाद अचानक नहीं किया गया. जाहिर है कि इसके पीछे तमाम स्थितियों पर पूरी तरह से विचार-विमर्श कर राजनीतिक नेतृत्व की इच्छाशक्ति रही होगी.
भारत द्वारा पिछले कुछ समय से ऐसे फैसलों से अलग हटकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्नी इमरान खान की हाल की श्रीलंका यात्ना के समय उनके विमान को भारत की वायु सीमा से होकर गुजरने देने की अनुमति इसी क्रम में देखी जा सकती है. इस ऐलान के ‘समय’ को देखते हुए एक सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि भारत चीन के विदेश मंत्रियों के बीच हॉटलाइन स्थापित किए जाने संबंधी अहम बातचीत से ऐन पहले हुए इस सैन्य ऐलान का क्या लद्दाख से चीनी फौजें हटने के घटनाक्रम से भी कोई तार जुड़ा है?
हालांकि एक वरिष्ठ पूर्व राजनयिक के अनुसार इस ऐलान को चीन के साथ रिश्ते स्थिर रखने की किसी पैकेज डील से नहीं जोड़ा जा सकता है. बहरहाल, समझौते का भविष्य में किस तरह से क्रियान्वयन होगा यह सबसे अहम सवाल है. क्या पाकिस्तान की घरेलू परिस्थितियां और अंतर्राष्ट्रीय हालात में इस बार उसका रुख पिछली बार से कुछ अलग यानी ‘थोड़ा भरोसेमंद’ रहेगा, या फिर वही ढाक के तीन पात!
पाकिस्तान अपनी रणनीति या यूं कहें साजिशी फितरत के चलते सीमा पर आतंकवादियों की घुसपैठ और हथियारों की तस्करी को भी लगातार अंजाम देता रहा है. ऐसे हालात में फिलहाल तो यही लग रहा है कि समझौते से फिलहाल दोनों पक्षों के बीच सीमा पर गोलीबारी तो कम-से-कम रुक ही जाएगी और अगर दीर्घकालिक संभावना को देखें तो दोनों देशों के बीच संबंध बेहतर करने या यूं कहें सामान्य करने का एक अवसर भी है. फिलहाल दोनों देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक संबंध ठप पड़े हैं.
अगर पाकिस्तान भारत के खिलाफ अपनी जमीन से आतंकी गतिविधियां चलाना बंद कर देता है तो अगला कदम दोनों देशों के बीच संवाद फिर से शुरू होने का बन सकता है. ‘पड़ोसी सबसे पहले’ और दक्षिण एशिया में शांति व स्थिरता भारतीय विदेश नीति की प्राथमिकताओं में है. भारत के आंतरिक मामलों में दखल और आतंक को बढ़ावा देकर पाकिस्तानी सरकार और सेना वहां की असली समस्याओं से जनता का ध्यान भटकाने की जुगत लगाते हैं.
वैसे ऐसे कोई राजनीतिक, कूटनीतिक या रणनीतिक संकेत भी नहीं हैं जिससे लगे कि पाकिस्तान कश्मीर में अलगाव और आतंक बढ़ाने की अपनी दशकों पुरानी नीति छोड़ देगा. ऐसे में यह जरूरी है कि भारतीय रक्षा तंत्न और रणनीतिकार सतर्क रहें.
एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के अनुसार इस समझौते का मकसद सीमाओं पर हिंसा रोकना और कम करना है लेकिन फिर भी अगर कोई आतंकी हमला होता है तो सेना के पास जवाब देने का अधिकार हमेशा ही है और वह तत्पर भी है. इससे पूर्व भी कई मौके ऐसे आए जबकि पाकिस्तान ने समझौतों का पालन नहीं किया. एक बार फिर अब गेंद उसके पाले में है. सीमा पर सतर्कता बनाए रखने के साथ नजर इस पर रहेगी कि वह इस बार कितना भरोसेमंद साबित होता है.