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कृष्णप्रताप सिंह का ब्लॉगः हत्याओं की पांच गुनी आत्महत्याएं!

By कृष्ण प्रताप सिंह | Updated: April 22, 2022 15:27 IST

आंकड़ों के अनुसार आत्महत्या करने वालों में 67 प्रतिशत 18 से 45 वर्ष की उम्र के बीच के हैं और उनमें पढ़े-लिखों की संख्या भी कम नहीं है।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में हर चार मिनट में अपनी जीवन स्थितियों से क्षुब्ध कोई न कोई व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है़ इनमें महिलाओं की आत्महत्या दर 16.4 प्रति एक लाख जबकि पुरुषों की 25.8 प्रति एक लाख है और किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्या समस्या का दूसरा ही पहलू सामने लाती है। लेकिन अब एक नए अध्ययन का यह निष्कर्ष कि दुनिया में जितने लोग हत्यारों के शिकार नहीं हुआ करते, उनसे ज्यादा आत्महत्या को मजबूर होते हैं, बताता है कि मानव जीवन की यह असुरक्षा हमारी चिंता से कहीं ज्यादा बड़ी है। इस अध्ययन के अनुसार हमारे देश में आत्महत्या करने वालों की संख्या हत्याओं से जानें गंवाने वालों की पांच गुनी है़

इस चिंता को खत्म करना है तो महज इस उपदेश से काम नहीं चलने वाला कि आत्महत्या कायरता या जीवन से पलायन है। समझना होगा कि मनोविकारों या रोगों से पीड़ित और अवसादग्रस्त व्यक्तियों को छोड़ दें तो कोई भी व्यक्ति अपने जीवन का अंत नहीं करता। वह तब तक अपनी जिंदगी बचाने की कोशिश करता है, जब तक उसे लगता है कि उसके सामने उपस्थित रात की कोई न कोई सुबह जरूर है।

उसका यह विश्वास बनाए रखने में उसके आसपास के परिवेश, परिजनों और प्रियजनों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जब वे यह भूमिका नहीं निभा पाते और संबंधित व्यक्ति इस निष्कर्ष तक पहुंच जाता है कि अब उसकी कोई सुबह नहीं बची, तभी उसकी निराशा चरम पर पहुंचती है। इस रूप में कोई भी आत्महत्या संबंधित देश व समाज की सामाजिक-आर्थिक संरचना की विसंगतियों, जटिल जीवन परिस्थितियों, दरकते सपनों और संवेदनहीन तंत्र के खिलाफ जोरदार टिप्पणी होती है।

सन्‌ 2017 में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम बनने से पहले तक तो हालत यह थी कि कोई मानसिक रोगी आत्महत्या का कदम उठाता तो उसे अपराधी ही माना जाता था। इस अधिनियम के बाद स्थिति थोड़ी बदली है। लेकिन देश में आत्महत्या करने वालों की संख्या साल दर साल बढ़ रही है। आंकड़ों के अनुसार आत्महत्या करने वालों में 67 प्रतिशत 18 से 45 वर्ष की उम्र के बीच के हैं और उनमें पढ़े-लिखों की संख्या भी कम नहीं है।

टॅग्स :हत्याWHOवर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन
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