Kolkata Rape-Murder Case: क्या भविष्य में रुक पाएंगे 'आरजी कर मेडिकल कॉलेज' कांड....
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 18, 2024 12:40 IST2024-08-18T11:49:49+5:302024-08-18T12:40:33+5:30
Kolkata Rape-Murder Case: सवाल यह उठता है कि क्या महिला डॉक्टर के साथ राक्षसी प्रवृत्ति का कृत्य करने वाला संविधान व कानून में दिए गए अधिकारों का हकदार है क्योंकि उसने महिला डॉक्टर को हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया और परिवार को जीवन भर का दर्द दे दिया।

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राहुल शर्मा
कोलकाता के 'आरजी कर मेडिकल कॉलेज' में हुई महिला डॉक्टर की दुष्कर्म के बाद नृशंस हत्या 12 साल पूर्व हुए निर्भया कांड की याद ताजा कर देती है। लेडी डॉक्टर को दी गई यातना, नृशंस हत्या और घिनौनी करतूत देश के सिस्टम को सोचने पर मजबूर करने वाली है। दरअसल कानून बनाने और उसे लागू करने के अलावा यह बेहद जरूरी है कि उसका पालन किस हद तक हो रहा है।
निर्भया फंड जारी करने से कुछ नहीं होगा। केवल मंत्रालय या उनके विभाग बंटवारे से कुछ होने वाला नहीं है। भारत विशाल जनसंख्या वाला विश्व का दूसरा बड़ा देश है, लेडी डॉक्टर के साथ हुई घटना के बाद सीबीआई जांच शुरू हो गई, कमीशन गठित होंगे, उनकी रिपोर्ट आएगी, फास्ट ट्रैक अदालत में केस भी चलेगा, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या महिला डॉक्टर के साथ राक्षसी प्रवृत्ति का कृत्य करने वाला संविधान व कानून में दिए गए अधिकारों का हकदार है क्योंकि उसने महिला डॉक्टर को हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया और परिवार को जीवन भर का दर्द दे दिया।
महज किसी बलात्कारी को 'साइको किलर' कहकर सुर्खियां बनाने से कुछ नहीं होगा, दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना होगा। रामायण में भी उल्लेख है कि 'भय बिन होय न प्रीत' अर्थात जब तक अपराधी पर कठोर कार्रवाई नहीं होगी तब तक ऐसे केस समय-समय पर देश की धरती पर होते रहेंगे।
कभी आरोपी 'नाबालिग' होकर तो कभी 'साइको किलर' का लाभ उठाकर जेल की रोटी खाएगा, सरकारी अस्पताल में उपचार कराएगा। यदि जांच प्रभावित नहीं हुई और साक्ष्य उसके विरुद्ध चले भी जाएं और आरोपी को फांसी की सजा हो भी जाती है तो उसके पास निचली अदालत से हाईकोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील का अधिकार रहेगा।
राष्ट्रपति के यहां भी याचना का उसका अधिकार बरकरार रहेगा। शायद हमारे लोकतंत्र के सिस्टम को कानून तोड़ने वाले बखूबी जान चुके हैं और उन्हें पता है कि कानूनी प्रक्रिया लंबी चलनी है। ऐसे में यदि जनता कानून हाथ में लेकर त्वरित न्याय यानी खुद हिसाब बराबर करे तो उसे गंभीर कानूनी प्रक्रिया का सामना करना पड़ेगा।
समाज में आज हर बेटी का पिता, हर बहन का भाई और हर महिला का पति कितना भी मजबूत हो, किसी भी पद पर बैठा हो, लेकिन समाज में तेजी से बढ़ते महिला अपराध को लेकर स्वयं को असुरक्षित महसूस जरूर करता है। मां, पत्नी या बेटी यदि कामकाजी हैं तो उनके कार्यस्थल या स्कूल से घर पर सुरक्षित लौटने तक चिंता का भाव हम सभी के चेहरे पर साफ झलकता है।
लेडी डॉक्टर के साथ घिनौना कृत्य करने वालों के लिए यदि पुलिस सख्त होती है तो यह भी बात महत्व रखती है क्या वास्तव में पुलिस जांच सही दिशा में है, कहीं 'गेंहू के साथ घुन' तो नहीं पिस रहा है या नाजायज ही किसी को फंसाया तो नहीं जा रहा है, ऐसे अनेक विषय हैं जिन पर आज नहीं तो कल सोचना होगा।
क्योंकि हर महिला के दुष्कर्म और हत्या न तो मीडिया की सुर्खियां बन पाते हैं और न ही सभी पीड़िताओं को न्याय मिल पाता है। अनेक मामले दबंगई, पहुंच, धनबल के कारण थाना और मीडिया या न्यायालय की दहलीज तक पहुंच ही नहीं पाते। दरअसल लेडी डॉक्टर के साथ हुए दुष्कर्म और हत्या को लेकर हम और आप सहानुभूति तो रख सकते हैं।
लेकिन असली पीड़ा उन्हीं की है जिनके साथ घटना घटित होती है और हम भी इस केस को अगला केस होने तक 'केस स्टडी' मान लेंगे। भविष्य में ऐसी घटना होने पर कोलकाता आरजी कर 'मेडिकल कॉलेज कांड' लिखकर अपनी खानापूर्ति कर लेंगे, लेकिन क्या भविष्य में ऐसी घटनाओं पर रोक लग पाएगी?
देश एक तरफ 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाकर अनेक कीर्तिमान स्थापित कर रहा है, लेकिन इस देश की आजादी में अपने प्राणों की आहूति देने वाली 'झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और वीरगति को प्राप्त करने वाली अनेक वीरांगनाएं' आज भारत की बेटी की लूटी जा रही अस्मत को देखकर आंसू जरूर बहाती होंगी।
महज अपनी बेटी को 'गुड, बैड टच' का बोध कराने से अपराध नहीं रुकेगा, बेटे को मां, बहन, पत्नी ही नहीं, बल्कि हर महिला का सम्मान करने की शिक्षा देनी होगी और समाज में खुले घूम रहे राक्षसों के लिए ऐसे दंड का प्रावधान अविलंब करना होगा ताकि अपराध करने नहीं, बल्कि सोचने मात्र से उसकी रूह कांप उठे।
देश में ऐसे अनेक कानून बने जिनकी कभी कल्पना नहीं की गई थी, ऐसे फैसले हुए जिन्हें लेने से पूर्ववर्ती सरकारें, सरकार गिरने का भय मानती थीं तो फिर आज जरूरत है कोलकाता कांड जैसी घटनाओं के लिए आरोपी को लोकतंत्रीय शासन और उसके कानून से मिलने वाले अधिकारों पर पुनः विचार करने की, क्या वास्तव में ऐसे अपराधी अपील या दया के पात्र हैं, सवाल बड़ा और विचारणीय है।