Karnataka Honeytrap Row: कर्नाटक के हनी ट्रैप की लंबी है दास्तान?, 48 राजनेता शामिल

By हरीश गुप्ता | Updated: April 3, 2025 05:22 IST2025-04-03T05:22:12+5:302025-04-03T05:22:12+5:30

Karnataka Honeytrap Row: सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप से इनकार कर दिया है और जांच कछुआ चाल से बढ़ रही है. कर्नाटक में हनी ट्रैप कांड और अश्लील वीडियो, पेन ड्राइव और सीडी का मामला कोई नई बात नहीं है.

Karnataka Honeytrap Row story Karnataka's honey trap is long blog harish gupta 48 politicians included K N Rajanna cooperation minister Congress government | Karnataka Honeytrap Row: कर्नाटक के हनी ट्रैप की लंबी है दास्तान?, 48 राजनेता शामिल

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Highlightsदो बार अलग-अलग महिलाओं के साथ उनके आवास पर आया.भाजपा से जुड़े एक केंद्रीय मंत्री सहित 48 राजनेता इससे जुड़े हैं.गृह मंत्री डॉ जी. परमेश्वर ने तुरंत उच्चस्तरीय जांच का आश्वासन दिया.

Karnataka Honeytrap Row: कर्नाटक में हनी ट्रैप का मामला लगातार चर्चा में है. राज्य के सहकारिता मंत्री के.एन. राजन्ना, जो मुख्यमंत्री के करीबी विश्वासपात्र हैं, ने दावा किया कि 48 राजनेता -जिनमें केंद्रीय नेता (एक केंद्रीय मंत्री) भी शामिल हैं- हनीट्रैप में फंसे हैं. उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन इसने पिटारा खोल दिया. भाजपा ने कुछ प्रतीकात्मक विरोध किया, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला. दिल्ली में सन्नाटा पसरा रहा और पार्टी ने कांग्रेस के मंत्री द्वारा फोड़े गए राजनीतिक बम को भुनाने की जल्दी नहीं की, जिन्होंने एक कहानी सुनाई कि कैसे एक वकील ने उन्हें हनीट्रैप में फंसाने की कोशिश की, जो दो बार अलग-अलग महिलाओं के साथ उनके आवास पर आया. उनके आवास पर सीसीटीवी नहीं होने से फुटेज नहीं है और उनके दावे को पुष्ट करने के लिए कोई सबूत नहीं है.

लेकिन उन्होंने दावा किया कि भाजपा से जुड़े एक केंद्रीय मंत्री सहित 48 राजनेता इससे जुड़े हैं. दिलचस्प बात यह है कि यह भाजपा के एक विधायक थे जिन्होंने सबसे पहले इस मुद्दे को उठाया और मंत्री का नाम लिया, जिसके बाद राजन्ना ने बयान जारी किया. गृह मंत्री डॉ जी. परमेश्वर ने तुरंत उच्चस्तरीय जांच का आश्वासन दिया.

सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप से इनकार कर दिया है और जांच कछुआ चाल से बढ़ रही है. कर्नाटक में हनी ट्रैप कांड और अश्लील वीडियो, पेन ड्राइव और सीडी का मामला कोई नई बात नहीं है. अगर कांग्रेस के नेतृत्व वाली देवराज उर्स सरकार में मंत्री आर.डी. कित्तूर को 1973 में एक लापता महिला को शरण देने के आरोपों के बाद इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा, तो सुर्खियों में आने वाले हालिया मामले पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के थे, जिन पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत आरोप लगाया गया था.

फिर अप्रैल 2024 में जनता दल (सेक्युलर) के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा के बेटे एच.डी. रेवन्ना पर 2019 से तीन साल तक अपने घर पर एक घरेलू सहायिका का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया गया. लेकिन बड़ा मामला एच.डी. रेवन्ना के बेटे प्रज्वल रेवन्ना से जुड़ा था, जो एक पूर्व सांसद हैं, जिन पर यौन उत्पीड़न के कई मामलों में आरोप लगे थे. दोनों कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे हैं.

विलंबित परिवर्तन

सत्ताधारी प्रतिष्ठान में इफ्तार पार्टियों का चलन फिर से बढ़ गया है. भाजपा शासित दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने हाल ही में भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा द्वारा आयोजित ‘दावत-ए-इफ्तार’ कार्यक्रम में भाग लिया और ‘समाज में एकता और सद्भाव, विशेष रूप से रमजान के पवित्र महीने के दौरान’ के महत्व पर जोर दिया.

यह एकमात्र ऐसा कार्यक्रम नहीं था जिसे भाजपा नेताओं ने 2025 में आयोजित किया हो. इस सुखद परिवर्तन ने ऐसे आयोजनों से दूर रहने की दशकों पुरानी नीति में बदलाव को चिह्नित किया. 2014 में नई भाजपा ने इफ्तार पार्टियों को छोड़ दिया, जब न तो तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेपतुल्ला और न ही भाजपा उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने कभी इफ्तार पार्टियों की मेजबानी की.

नई भाजपा के दृष्टिकोण ने अटल बिहारी वाजपेयी की नीति से अलग रुख अपनाया, जो अक्सर मुसलमानों तक पहुंचने के लिए कांग्रेस जैसी रणनीति अपनाते थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न तो इफ्तार दावत का आयोजन किया और न इसमें शामिल हुए हैं. उन्होंने 2014 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की इफ्तार पार्टी से दूरी बनाए रखी.

गृह मंत्री राजनाथ सिंह व नजमा हेपतुल्ला को छोड़ अन्य भाजपा मंत्रियों ने भी ऐसा ही किया. दशकों से राजनेता, अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता और अन्य लोग हर रमजान में इफ्तार के लिए इकट्ठा होते रहे हैं, यह औपनिवेशिक काल के बाद, आजादी के बाद की एक अनूठी अवधारणा है जो देश के लिए अद्वितीय है.

पंडित जवाहरलाल नेहरू के दौर में शुरू हुई यह प्रथा, जब उन्होंने नई दिल्ली में अखिल भारतीय कांग्रेस मुख्यालय में व्यक्तिगत इफ्तार मिलन समारोह आयोजित किए थे, 2014 में समाप्त हो गई. हालांकि भाजपा ने बाद के वर्षों में इफ्तार पार्टियों को ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ के एक साधन के रूप में बताते हुए उनसे बचना जारी रखा.

लेकिन पार्टी के वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक सहयोगी मंच ने 2016 और 2018 में राजनीतिक इफ्तार पार्टियां आयोजित कीं. हिंदू कट्टरपंथियों और धर्मनिरपेक्षतावादियों, दोनों द्वारा कड़ी आलोचना किए जाने के बाद, मंच ने कई वर्षों तक फिर से उस क्षेत्र में प्रवेश नहीं किया. लेकिन अब 2025 में बदलाव देखा गया है जब वरिष्ठ मंत्री और पार्टी नेता ऐसी पार्टियों में शामिल हुए और मेजबानी की.

एनजेएसी का मामला ठंडे बस्ते में!

न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की घटना ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम पर बहस को पुनर्जीवित करने का अवसर प्रदान किया है. उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने एनजेएसी पर सर्वदलीय बैठक बुलाने की सही पहल की, जिसे 2014 में संसद ने सर्वसम्मति से पारित किया था.

यह न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण से संबंधित था, जो सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम का एक विशेष क्षेत्र था. शुरू में ऐसा लगा कि यह कदम अपने तार्किक निष्कर्ष पर पहुंच सकता है. लेकिन विपक्ष और सत्तारूढ़ भाजपा के बीच विश्वास की कमी ने 2025 में कई बाधाएं पैदा कीं.

धनखड़ के प्रयासों से बहस कुछ तार्किक निष्कर्षों तक पहुंच सकती थी, लेकिन लोकसभा में स्थिति ने एक कड़वा मोड़ ले लिया और मामला कम से कम अभी के लिए वहीं समाप्त होता दिख रहा है. इसका एक कारण यह है कि न्यायमूर्ति वर्मा का मामला उलझता जा रहा है, क्योंकि कई लोग उनकी ईमानदारी की गवाही दे रहे हैं. इससे जांच धीमी पड़ी है और एनजेएसी के लिए मामला मजबूत हुआ है.

अगर सरकार अपने पत्ते चतुराई से खेलती है, तो एनजेएसी को उम्मीद से पहले ही प्रकाश में लाया जा सकता है, क्योंकि कांग्रेस अब संशोधित एनजेएसी चाहती है. विपक्ष न्यायाधीशों की नियुक्ति में अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण पर जोर देने के लिए उत्सुक है, जो जाति जनगणना की उसकी चल रही मांग के अनुरूप होगा. यह अधिनियम 2014 में संसद द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया था, लेकिन बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया था.

और अंत में

हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद राजीव शुक्ला ने राज्यसभा में सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव से पूछा कि क्या सरकार ने कई यूट्यूब चैनल ब्लॉक किए हैं और यदि हां, तो उसका ब्यौरा क्या है. माननीय मंत्री जी से राज्यसभा में डकिंग की कला सीखनी चाहिए.

उनका जवाब था: सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 को अधिसूचित किया है, जो अन्य बातों के साथ-साथ डिजिटल मीडिया पर समाचार और समसामयिक मामलों के प्रकाशकों और ऑनलाइन क्यूरेटेड सामग्री (ओटीटी प्लेटफॉर्म) के प्रकाशकों के लिए आचार संहिता तथा उसके उल्लंघन से संबंधित शिकायतों के समाधान के लिए तीन स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र प्रदान करता है.

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 ए ‘भारत की संप्रभुता या अखंडता के हित में’ सामग्री को अवरुद्ध करने और अन्य आधारों को सूचीबद्ध करने का प्रावधान करती है. सूचना व प्रसारण मंत्रालय आईटी नियम, 2021 के भाग- III के प्रावधानों के तहत ऐसी सामग्री की सार्वजनिक पहुंच रोकने के लिए निर्देश जारी करता है.

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