वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः सच की खातिर जान दे दी
By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 19, 2019 10:59 AM2019-01-19T10:59:45+5:302019-01-19T10:59:45+5:30
बिल्कुल वैसा ही साहस एक अन्य आर्यसमाजी ने किया है. उन्होंने आसाराम की पोल खोल दी है. उनकी बेटी के साथ हुए दुराचार का भांडाफोड़ कर उन्होंने अपनी जान खतरे में डाल रखी है. गुरमीत राम रहीम और आसाराम के कांड में दर्जनों लोगों की हत्या हुई है लेकिन फिर भी इन दोनों पाखंडी संतों को कोई बचा नहीं पाया है.
हरियाणा के पत्नकार रामचंद्र छत्नपति के हत्यारे गुरमीत राम रहीम और उसके तीन चेलों को उम्रकैद की सजा हुई है. इस फैसले का सारे देश में स्वागत होगा. 16 साल बाद यह फैसला आया. स्वर्गीय रामचंद्र छत्नपति एक अत्यंत निर्भीक और निष्पक्ष पत्नकार थे. वे पत्नकार तो थे ही, मूलत: समाजसेवी थे. वे हमारे साथी थे. स्वामी अग्निवेश के समाज-सुधार के आंदोलनों में जुटे रहते थे.
वे आर्यसमाज द्वारा चलाए जाने वाले अभियानों में अग्रणी भूमिका निभाते थे. वे सार्वदेशिक आर्य युवक परिषद के प्रधान थे. जब गुरमीत ने ‘सच कहूं’ पत्न निकाला तो रामचंद्र ने ‘पूरा सच’ नाम का जवाबी पत्न निकाला. उन्हें धमकियां मिलती रहती थीं. उस पत्न के प्रकाशन से उन्हें कोई खास आर्थिक लाभ भी नहीं होता था लेकिन उन्होंने आर्यसमाज के संस्थापक महान संन्यासी स्वामी दयानंद सरस्वती से सीखा था कि सत्य की रक्षा के लिए मृत्यु का वरण करना हो तो उसके लिए भी तैयार रहना चाहिए. वही हुआ. उनकी हत्या कर दी गई.
बिल्कुल वैसा ही साहस एक अन्य आर्यसमाजी ने किया है. उन्होंने आसाराम की पोल खोल दी है. उनकी बेटी के साथ हुए दुराचार का भांडाफोड़ कर उन्होंने अपनी जान खतरे में डाल रखी है. गुरमीत राम रहीम और आसाराम के कांड में दर्जनों लोगों की हत्या हुई है लेकिन फिर भी इन दोनों पाखंडी संतों को कोई बचा नहीं पाया है.
आजकल साधुगीरी बहुत बड़ा धंधा बन गया है. हमारे नेता, जो वोट के गुलाम होते हैं, वे जा-जाकर संतों और साधुओं के चरणों में मत्था टेकते हैं. इनमें जो पाखंडी साधु होते हैं वे इन नेताओं के साथ अपना उल्लू सीधा करते हैं. किसी भी संत और नेता को परखे बिना उस पर कभी विश्वास मत कीजिए. जहां तक स्वर्गीय रामचंद्र छत्नपति का सवाल है, उन्हें निर्भीक पत्नकारिता का राष्ट्रीय सम्मान मिलना चाहिए. उनके नाम पर हरियाणा सरकार को बड़ा पुरस्कार स्थापित करना चाहिए.