जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉग: देश के श्रम कानूनों में सुधार समय की जरूरत

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 3, 2019 05:36 AM2019-08-03T05:36:26+5:302019-08-03T05:36:26+5:30

उल्लेखनीय है कि इन दिनों देश ही नहीं पूरी दुनिया की निगाहें भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने और अगले पांच वर्षो में उसे पांच लाख करोड़ डॉलर का आकार देने के मद्देनजर भारत की नई श्रम संहिता (लेबर कोड) पर लगी हुई हैं.

Jayantilal Bhandari blog: Time needed to improve the country labor laws | जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉग: देश के श्रम कानूनों में सुधार समय की जरूरत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (फाइल फोटो)

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत के तेज आर्थिक विकास के लिए श्रम सुधार महत्वपूर्ण आवश्यकता है. इस परिप्रेक्ष्य में भारत श्रम सुधारों की डगर पर आगे बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है. गौरतलब है कि 23 जुलाई को सरकार ने संसद में श्रम कानून सुधार के दो अहम प्रस्ताव पेश किए. ये प्रस्ताव वेतन विधेयक संहिता 2019 और पेशेगत स्वास्थ्य सुरक्षा और कार्य की स्थिति संहिता 2019 से संबंधित हैं.

इन विधेयकों में सरकार ने न्यूनतम वेतन का विस्तार देश के पूरे श्रमबल तक करने तथा नियोक्ताओं को ठेके पर श्रमिक रखने के लिए कई लाइसेंस लेने की जरूरत खत्म करने के प्रस्ताव शामिल किए हैं. इस समय राज्यों को न्यूनतम वेतन तय करने का अधिकार है और देश में 2000 से ज्यादा तरीके के वेतन के स्तर हैं अतएव नए विधेयक से देशभर में न्यूनतम वेतन का नया तरीका लाभकारी होगा.

नए विधेयक में यह भी प्रावधान है कि नौकरी छोड़ने या नौकरी से हटाए जाने या कंपनी के बंद होने की स्थिति में कंपनी को दो दिन के अंदर बकाया वेतन का भुगतान करना होगा. इसी तरह से पेशेगत स्वास्थ्य सुरक्षा और काम करने की स्थिति से संबंधित नए कानून उन सभी प्रतिष्ठानों में लागू होंगे जिसमें कम से कम 10 कर्मचारी काम करते हैं. 

उल्लेखनीय है कि इन दिनों देश ही नहीं पूरी दुनिया की निगाहें भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने और अगले पांच वर्षो में उसे पांच लाख करोड़ डॉलर का आकार देने के मद्देनजर भारत की नई श्रम संहिता (लेबर कोड) पर लगी हुई हैं. विगत 5 जुलाई को वित्त मंत्नी निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट 2019-20 प्रस्तुत करते हुए कहा था कि सरकार 44 श्रम कानूनों को मिलाकर चार श्रम संहिताएं बनाएगी.

ये संहिताएं न्यूनतम वेतन और कार्यगत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा, सामाजिक सुरक्षा तथा औद्योगिक संबंधों पर केंद्रित होंगी. न्यूनतम वेतन से संबंधित संहिता के जरिए देशभर के लगभग 30 करोड़ श्रमिकों को न्यूनतम वेतन पाने का अधिकार मिलेगा. इस बिल में 178 रुपए का न्यूनतम दैनिक वेतन सुनिश्चित किया गया है. जिन राज्यों में इससे ज्यादा की व्यवस्था है वहां श्रमिकों को ज्यादा वेतन देने की व्यवस्था जारी रहेगी. इस प्रावधान से मजदूरों का शोषण रुकेगा क्योंकि अभी भी कुछ राज्यों में दैनिक मजदूरी 50, 60 या 100 रु पए पर अटकी पड़ी है. इस तरह चार में से दो श्रम संहिताओं को मंजूरी के बाद बाकी दो संहिताओं को शीघ्र मंजूरी दी जाएगी.

श्रम और औद्योगिक कानूनों की संख्या के मामले में हमारा देश दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में चुनौतीपूर्ण स्थिति में है. देश में ढेरों श्रम कानून लागू हैं. केंद्र सरकार के पास श्रम से संबंधित 44 और राज्य सरकारों के पास श्रम से संबंधित 100 से अधिक कानून हैं. देश में कारोबार के रास्ते में कई कानून ऐसे भी लागू हैं जो ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश शासनकाल के दौरान अर्थात 150-200 साल पहले बनाए गए थे. कई वर्षो से यह अनुभव किया जा रहा है कि श्रम कानून भी उत्पादकता वृद्धि में बाधक बने हुए हैं. उच्चतम न्यायालय भी कई बार अप्रासंगिक हो चुके ऐसे कानूनों की कमियां गिनाता रहा है, जो काम को कठिन और लंबी अवधि का बनाते हैं. दुनिया के आर्थिक और श्रम संगठन बार-बार यह कहते रहे हैं कि श्रम सुधारों से ही नए चमकीले भारत का निर्माण हो सकता है. 

देश के श्रम कानून लंबे समय से लाइसेंस राज की विरासत को ढोने वाले कानून बने हुए हैं. वस्तुत: जो श्रम सुधार नए दौर में आर्थिक व औद्योगिक विकास की मांग है, उसके लिए देश की नई चार श्रम संहिताओं से नई राह बन रही है. ऐसे सुधारों से आर्थिक विकास और रोजगार के  नए रास्ते खोले जा सकते हैं. अब श्रम कानूनों में लचीलापन लाने और इंस्पेक्टर राज को समाप्त करने के लिए श्रम नियमों को सरलतापूर्वक लागू करना होगा.

नए कानूनों की भरमार कम करनी होगी और ऐसी नीतियां और कार्यक्रम कार्यान्वित करने होंगे, जिनसे उत्पादन बढ़े और उपयुक्त सुरक्षा ढांचे के साथ श्रमिकों का भी भला हो. श्रम कानूनों में नए बदलाव का मतलब श्रमिकों का संरक्षण समाप्त करना नहीं है बल्कि इससे उद्योग-कारोबार के बढ़ने की संभावना बढ़ेगी और उद्योगों में नए श्रम अवसर निर्मित होंगे.

उद्योग जगत को भी यह समझना होगा कि वह श्रमिकों को खुश रखकर ही उद्योगों को तेजी से आगे बढ़ा सकेगा. सरकार को अधिकतम प्रयास करना होगा कि श्रम संगठन और उद्योग संगठन श्रम और पूंजी के हितों में समन्वय बनाने के लिए खुले मन से संवाद करें. ऐसा होने पर ही सरकार श्रम एवं पूंजी के बीच संतुलन बनाने की कठिन चुनौती का समाधान निकाल सकेगी. इससे श्रमिकों और उद्योगपतियों की प्रसन्नता के साथ देश विकास की डगर पर आगे बढ़ सकेगा.

Web Title: Jayantilal Bhandari blog: Time needed to improve the country labor laws

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