जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉग: देश में खाद्यान्न प्रचुरता के कारण घटी गरीबी

By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Published: April 29, 2022 12:49 PM2022-04-29T12:49:55+5:302022-04-29T12:52:06+5:30

इस साल देश में गेहूं का उत्पादन रिकॉर्ड 11.13 करोड़ टन रहने का अनुमान है. गेहूं का उत्पादन पिछले वर्ष 10.95 करोड़ टन रहा था. 2021-22 के दौरान चावल का कुल उत्पादन 12.79 करोड़ टन रिकॉर्ड अनुमानित है.

Jayantilal Bhandari blog: Poverty decreased due to the abundance of food grains in country | जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉग: देश में खाद्यान्न प्रचुरता के कारण घटी गरीबी

देश में खाद्यान्न प्रचुरता के कारण घटी गरीबी (फाइल फोटो)

हाल ही में विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के द्वारा प्रकाशित पॉलिसी रिसर्च पेपर्स में कहा गया है कि भारत में हाल के वर्षों में आर्थिक चुनौतियों के बीच गरीबी घटी है. इन दोनों वैश्विक संगठनों के द्वारा प्रकाशित रिसर्च पेपर्स को इन दिनों पूरी दुनिया में गंभीरतापूर्वक पढ़ा जा रहा है.  विश्व बैंक के रिसर्च पेपर में कहा गया है कि देश में 2011 में अति गरीबी की दर 22.5 प्रतिशत थी, जो 2015 में 19.1 प्रतिशत पाई गई तथा 2019 में अति गरीबी की दर घटकर 10 प्रतिशत रह गई.

यदि हम गरीबी में कमी आने संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण करें तो पाते हैं कि जहां 2011 से 2015 के बीच अति गरीबी की दर में 3.4 प्रतिशत की कमी आई वहीं 2015 से 2019 के बीच अति गरीबी की दर में 9.1 प्रतिशत की गिरावट हुई, जो 2011-15 के मुकाबले 2.6 गुना अधिक है.

इस रिसर्च पेपर के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल (2015-19) में ग्रामीण और शहरी दोनों ही गरीबी में 2011-15 के मुकाबले अधिक कमी आई. 2011 से 2015 के बीच ग्रामीण गरीबी दर में 4.4 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि 2015-19 के बीच ग्रामीण गरीबी में 10.3 प्रतिशत की कमी आई. इसी तरह शहरी गरीबी में 2011-15 के बीच 1.3 प्रतिशत की कमी आई जबकि 2015-19 के बीच शहरी गरीबी में 6.6 प्रतिशत की गिरावट आई. 

विश्व बैंक के इस रिसर्च पेपर में वर्ष 2015 से 2019 के बीच गरीबी दर में गिरावट आने के कई महत्वपूर्ण कारण बताए गए हैं. कहा गया है कि गरीबों के सशक्तिकरण की कल्याणकारी योजनाओं से गरीबी में कमी आई. असंगठित कामगारों (कैजुअल वर्कर्स) की दिहाड़ी में अधिक बढ़ोत्तरी हुई. सबसे छोटे आकार का खेत रखने वाले किसानों की आय में भी बढ़ोत्तरी हुई.

जहां विश्व बैंक के रिसर्च पेपर के तहत लॉकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था का अध्ययन शामिल नहीं है, वहीं आईएमएफ के द्वारा पिछले दिनों प्रकाशित रिसर्च पेपर में कोविड की पहली लहर 2020-21 के प्रभावों को भी अध्ययन में शामिल करते हुए कहा गया है कि सरकार के पीएमजीकेएवाई के तहत मुफ्त खाद्यान्न वितरण कार्यक्रम ने कोविड-19 की वजह से लगाए गए लॉकडाउन के प्रभाव की गरीबों पर मार को कम करने में अहम भूमिका निभाई है और इससे अत्यधिक गरीबी में भी कमी आई है. 

आईएमएफ के कार्यपत्र में कहा गया है कि खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम कोविड-19 से प्रभावित वित्तीय वर्ष 2020-21 को छोड़कर अन्य वर्षों में गरीबी घटाने में सफल रहा है. कार्य पत्र में अमेरिकी शोध संगठन प्यू रिसर्च सेंटर के द्वारा प्रकाशित की गई उस रिपोर्ट को खारिज किया गया है जिसमें कहा गया है कि कोरोना महामारी ने भारत में साल 2020 में 7.5 करोड़ लोगों को गरीबी के दलदल में धकेल दिया है. 

आईएमएफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्यू का अध्ययन चलन से बाहर हो चुके संदर्भ पर आधारित था. कहा गया है कि यद्यपि 2020-21 के दौरान 1.5 से 2.5 करोड़ लोग गरीबी में आ गए थे, लेकिन 80 करोड़ लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली से खाद्यान्न के मुफ्त वितरण की व्यवस्था ने बड़ी संख्या में लोगों को गरीबी से उबारने में मदद की.

दुनिया के अर्थ विशेषज्ञ कह रहे हैं कि कोविड-19 के बीच भारत में ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचे सुरक्षित खाद्यान्न भंडारों के कारण ही देश के 80 करोड़ लोगों को लगातार मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध होने के कारण वे गरीबी के दलदल में फंसने से बच गए. दुनियाभर में यह रेखांकित हो रहा है कि कोरोनाकाल में गरीबों के सशक्तिकरण में करीब 44 करोड़ जनधन खातों, करीब 130 करोड़ आधार कार्ड तथा 118 करोड़ से अधिक मोबाइल उपभोक्ताओं की शक्ति वाले जैम से सुगठित बेमिसाल डिजिटल ढांचे की असाधारण भूमिका रही है. 

इसी शक्ति के बल पर देश के गरीब लोगों के खातों में सीधे आर्थिक राहत हस्तांतरित हो सकी और डिजिटल हुई सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से गरीब लोगों की मुट्ठियों में मुफ्त खाद्यान्न सौंपकर उनके चेहरों पर मुस्कुराहट दी जा सकी है.

नि:संदेह हाल के वर्षों में देश में गेहूं सहित खाद्यान्नों के रिकॉर्ड उत्पादन से खाद्यान्न प्रचुरता का चमकीला ग्राफ उभरकर दिखाई दे रहा है. देश का कृषि उत्पादन आम आदमी और अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा सहारा बन गया है. खाद्य मंत्रालय के द्वारा प्रकाशित खाद्यान्न उत्पादन के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, फसल वर्ष 2021-22 में देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड 31.60 करोड़ टन पर पहुंच जाने का अनुमान है, जो पिछले फसल वर्ष में 31.07 करोड़ टन रहा था. 

इस वर्ष गेहूं का उत्पादन रिकॉर्ड 11.13 करोड़ टन रहने का अनुमान है. गेहूं का उत्पादन पिछले वर्ष 10.95 करोड़ टन रहा था. 2021-22 के दौरान चावल का कुल उत्पादन 12.79 करोड़ टन रिकॉर्ड अनुमानित है. ज्ञातव्य है कि भारत गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और दुनिया में 2020 में गेहूं के कुल उत्पादन में उसकी हिस्सेदारी 14.14 फीसदी थी.

उम्मीद करें कि इस समय रूस-यूक्रेन युद्ध की वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के बीच भी देश में अप्रैल से सितंबर 2022 तक प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त खाद्यान्न की आपूर्ति के साथ-साथ देश में अत्यधिक गरीबी, भूख और कुपोषण खत्म करने के लिए लागू की गई जनकल्याण योजनाओं, सामुदायिक रसोई व्यवस्था तथा पोषण अभियान-2 से गरीबी में और अधिक कमी आने का परिदृश्य दिखाई दे सकेगा.

Web Title: Jayantilal Bhandari blog: Poverty decreased due to the abundance of food grains in country

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