जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉग: गरीबों तक कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व की पहुंच बढ़ाना जरूरी
By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Updated: November 3, 2019 06:08 IST2019-11-03T06:07:46+5:302019-11-03T06:08:15+5:30
यकीनन हाल ही में प्रकाशित वैश्विक स्वास्थ्य, कुपोषण और भूख से संबंधित रिपोर्टो में भारत का चिंताजनक परिदृश्य उभरकर सामने आया है. ऐसे में इन क्षेत्नों की ओर कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) व्यय का प्रवाह बढ़ाकर बड़ी संख्या में लोगों को स्वास्थ्य, कुपोषण और भूख की पीड़ाओं से राहत दी जा सकती है.

जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉग: गरीबों तक कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व की पहुंच बढ़ाना जरूरी
हाल ही में 29 अक्तूबर को केंद्रीय वित्त मंत्नी निर्मला सीतारमण ने देश के पहले राष्ट्रीय कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) पुरस्कार वितरण समारोह में कहा कि भारतीय कंपनियों को अपनी पहुंच गरीबों तक बढ़ानी होगी ताकि गरीबों को भूख और कुपोषण की पीड़ाओं से राहत मिल सके. सीतारमण ने यह भी कहा कि देश में सीएसआर के तहत किया जाने वाला खर्च तेजी से बढ़ना एक सुकूनभरा संकेत है. पिछले वर्ष 2018-19 में सीएसआर के तहत 13 हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं.
यकीनन हाल ही में प्रकाशित वैश्विक स्वास्थ्य, कुपोषण और भूख से संबंधित रिपोर्टो में भारत का चिंताजनक परिदृश्य उभरकर सामने आया है. ऐसे में इन क्षेत्नों की ओर कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) व्यय का प्रवाह बढ़ाकर बड़ी संख्या में लोगों को स्वास्थ्य, कुपोषण और भूख की पीड़ाओं से राहत दी जा सकती है.
गौरतलब है कि 25 अक्टूबर को घोषित वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक में 195 देशों में भारत को 57वां स्थान दिया गया है. 16 अक्टूबर, 2019 को यूनिसेफ के द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड चिल्ड्रन 2019 में भी कहा गया है कि भारत में 5 साल से कम उम्र के 69 फीसदी बच्चों की मौतों का कारण कुपोषण है. यूनिसेफ ने कहा है कि महज 42 फीसदी बच्चों को ही समय पर खाना मिलता है. इसी तरह भारत में भूख की समस्या से संबंधित रिपोर्ट वैश्विक भूख सूचकांक के रूप में 15 अक्तूबर 2019 को प्रकाशित हुई है.
वैश्विक भूख सूचकांक 2019 में 117 देशों की सूची में भारत की रैंकिंग सात स्थान फिसलकर 102वें स्थान पर रही है जबकि वर्ष 2010 में भारत 95वें स्थान पर था. भारत की रैंकिंग में गिरावट का एक बड़ा कारण यह बताया गया है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों में ऊंचाई के अनुपात में कम वजन वाले बच्चों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है. साथ ही भारत के 6 से 23 महीने तक के सभी बच्चों में से मात्न 9.6 फीसदी बच्चों को ही न्यूनतम स्वीकार्य आहार मिल पाता है.
नोबल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन का भी कहना है कि भारत में भूख से पीड़ित लोगों तथा कुपोषित बच्चों की बढ़ती तादाद चिंताजनक है. बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा, गुजरात, प. बंगाल, झारखंड और असम जैसे राज्यों में यह समस्या लंबे समय से चिंताएं बढ़ाने वाली दिखाई देती रही है. जन्म के बाद बच्चों को जिन पोषक तत्वों और स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत होती है, वे बच्चों को मिल नहीं पाते हैं. न तो बच्चों का ढंग से टीकाकरण हो पाता है, न बीमारियों का समुचित इलाज.
स्थिति यह है कि देश में विकास के साथ-साथ आर्थिक असमानता का परिदृश्य भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है. अभी जो भूख और कुपोषण की चुनौती सामने खड़ी है उससे निपटने के लिए तात्कालिक रूप से सीएसआर व्यय राहतकारी भूमिका निभा सकता है. ऐसे में इस समय कॉर्पाेरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के परिपालन के तहत स्वास्थ्य, कुपोषण और भूख की चिंताएं कम करने के लिए सीआरआर व्यय बढ़ाने के लिए प्राथमिकता देना जरूरी है.
उल्लेखनीय है कि 500 करोड़ रुपए या इससे ज्यादा नेटवर्थ या पांच करोड़ रुपए या इससे ज्यादा मुनाफे वाली कंपनियों को पिछले तीन साल के अपने औसत मुनाफे का दो प्रतिशत हिस्सा हर साल सीएसआर के तहत उन निर्धारित गतिविधियों में खर्च करना होता है, जो समाज के पिछड़े या वंचित लोगों के कल्याण के लिए जरूरी हों. इनमें भूख, गरीबी और कुपोषण पर नियंत्नण, कौशल प्रशिक्षण, शिक्षा को बढ़ावा, पर्यावरण संरक्षण, खेलकूद प्रोत्साहन, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, तंग बस्तियों के विकास आदि पर खर्च करना होता है. लेकिन अध्ययन रिपोर्टो में पाया गया कि बड़ी संख्या में कंपनियां सीएसआर के उद्देश्य के अनुरूप खर्च नहीं करती हैं.