वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: विद्यार्थियों की बात सुनी जाए
By वेद प्रताप वैदिक | Published: November 13, 2019 07:19 AM2019-11-13T07:19:08+5:302019-11-13T07:19:08+5:30
छात्न संघ के चुनाव में जीते हुए ज्यादातर पदाधिकारी वामपंथी और भाजपा-विरोधी हैं तो भी क्या हुआ? यदि वे अपने छात्नावास की अचानक बढ़ी हुई फीस पर अपना विरोध जताना चाहें तो उन्हें क्यों नहीं जताने दिया जाता?
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सैकड़ों छात्नों ने सोमवार को केंद्रीय मंत्नी डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को घंटों घेरे रखा. कुछ दिन पहले कोलकाता में भी यही हुआ था. वहां भी विश्वविद्यालय के छात्नों ने केंद्रीय मंत्नी बाबुल सुप्रियो को कई घंटों घेरे रखा था. राज्यपाल जगदीप धनखड़ के सीधे हस्तक्षेप से वह घेराबंदी खत्म हुई. जेएनयू में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू अगर थोड़ी देर और रुक जाते तो वे भी घंटों घिरे रहते. वे दीक्षांत समारोह में पीएचडी की उपाधियां प्रदान करने गए थे.
दीक्षांत समारोह में मर्यादा का पालन कैसे हुआ है, यह सारे देश ने देखा है. मैं स्वयं जेएनयू के सबसे पहले पीएचडी छात्नों में से हूं. हमारा सबसे पहला दीक्षांत समारोह 1971 में हुआ था. उसकी भव्यता और गरिमा मुङो आज भी मुग्ध करती है. लेकिन यह दीक्षांत समारोह क्या संदेश दे रहा है? मेरी यह समझ में नहीं आया कि उपकुलपति जगदीश कुमार ने छात्न प्रतिनिधि मंडल से मिलने से मना क्यों किया?
मान लें कि छात्न संघ के चुनाव में जीते हुए ज्यादातर पदाधिकारी वामपंथी और भाजपा-विरोधी हैं तो भी क्या हुआ? यदि वे अपने छात्नावास की अचानक बढ़ी हुई फीस पर अपना विरोध जताना चाहें तो उन्हें क्यों नहीं जताने दिया जाता? विश्वविद्यालय के लगभग आधे छात्न गांव, गरीब और पिछड़ी जातियों के हैं. उनके लिए हजार-दो हजार रु. महीने का बढ़ा हुआ खर्च भी भारी बोझ है. उनकी बात सुनकर उन्हें समझाया-बुझाया जा सकता था. कोई बीच का रास्ता निकाला जा सकता था.
छात्नों को भी सोचना चाहिए कि छात्नावास के एक कमरे का किराया सिर्फ दस या बीस रु. माहवार हो तो इसे कौन मजाक नहीं कहेगा? आज से 50-55 साल पहले सप्रू हाउस (बाद में जेएनयू) छात्नावास के कमरे का किराया मैं 40 रु. माहवार देता था और भोजन का 80 रु. माहवार! किराए और भोजन का भुगतान तो निश्चित ही बढ़ाया जाना चाहिए लेकिन उसे एकदम कई गुना कर देना भी ठीक नहीं है. यह विश्वविद्यालय शिक्षा और अनुसंधान का श्रेष्ठ केंद्र है. वहां से आजकल इसी तरह की खबरें आती रहती हैं. यह चिंता का विषय है.