ब्लॉग: स्वाधीनता की गरिमा का बने रहना बेहद जरूरी

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: August 15, 2024 13:14 IST2024-08-15T13:14:05+5:302024-08-15T13:14:08+5:30

सांसद गण से अपेक्षा है कि जाति, धर्म और क्षेत्र से ऊपर उठ कर देश के लिए जिम्मेदारी उठाएं।

It is very important to maintain the dignity of independence | ब्लॉग: स्वाधीनता की गरिमा का बने रहना बेहद जरूरी

ब्लॉग: स्वाधीनता की गरिमा का बने रहना बेहद जरूरी

यह संयोग मात्र नहीं है कि भारत में लोकतंत्र न केवल सुरक्षित है बल्कि प्रगति पथ पर अग्रसर हो रहा है। यह तथ्य आज की तारीख में विशेष रूप से उल्लेखनीय है क्योंकि पड़ोसी देश एक-एक कर लोकतंत्र से विमुख हो रहे हैं। वहां अराजकता के चलते घोर राजनीतिक अस्थिरता का माहौल व्याप्त हो रहा है।अफगानिस्तान, म्यांमार, मालदीव, पाकिस्तान आदि में लोकतंत्र मुल्तवी है।

बांग्लादेश की ताजा घटनाएं बता रही हैं कि वहां किस तरह चुनी हुई सरकार और प्रधानमंत्री को बर्खास्त कर दिया गया। इन सभी देशों में लोकतंत्र को बड़ा आघात लग रहा है। आज अंतरराष्ट्रीय परिवेश में हर तरफ उथल-पुथल मची है। समुद्र पार इंग्लैंड, अमेरिका और फ्रांस में भी असंतोष की भावनाएं उबाल खा रही हैं। चारों ओर परिवर्तन की लहर चल रही है।

रूस-यूक्रेन का युद्ध और इजराइल–फिलिस्तीन युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस दृष्टि से यह गौरव की बात है कि सारी विविधताओं और अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों के बीच भारत न केवल लोकतंत्र को संभालने में सफल रहा है बल्कि सुदृढ़ हुआ है और एक समर्थ अर्थव्यवस्था के साथ विकसित देश बनने की तैयारी कर रहा है।

आज देश एक ओर अंतरिक्ष विज्ञान जैसे ज्ञान-विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में आगे बढ़ रहा है और स्वावलंबन की ओर अग्रसर हो रहा है, साथ ही लोकतंत्र की प्रक्रियाओं में आम आदमी की भागीदारी सुनिश्चित करने के साथ अनेक जनहितकारी कार्यों को अंजाम दिया गया है। समाज के हाशिए पर स्थित लोगों तक सुविधाओं को पहुंचाने का कार्य सफलतापूर्वक पूरा किया गया।

इस सबके बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि सब कुछ ठीक है। आज मौजूद अधिकांश नेताओं की संपदा जिस तरह तीव्र गति से बढ़ी है वह अकल्पनीय है। इन नेताओं का अभिजात या संभ्रांत किस्म का एक अपना वर्ग बनता गया। रहन-सहन, खानपान, साजसज्जा और वेशभूषा- सभी में वे जनता से परे एक अलग ‘क्लास’ को व्यक्त करने लगे।

आम चुनावों में सैकड़ों करोड़ की जब्ती होती है और जो पकड़ में नहीं आता उसकी तो बात ही नहीं। एक किस्म के दायित्वहीन नेताओं की भीड़ जमा होती जा रही है जिन्हें देश, समाज और संस्कृति- किसी की भी चिंता नहीं है। वे सिर्फ अपने, अपने परिवार, अपने परिजन और अपनी पार्टी का ही भला देखते हैं।

राजनीति की जमीनी हकीकत इतनी दलदली होती जा रही है कि कोई भी कभी भी उसमें धंस सकता है। भ्रष्टाचार अब एक स्वाभाविक आचरण होता जा रहा है और हर आदमी उसे जीने के लिए बाध्य हो रहा है। रुपए-पैसे की भूख सबको है वह चाहे जैसे मिले और इस भूख से तृप्ति नहीं होती। सांसद गण से अपेक्षा है कि जाति, धर्म और क्षेत्र से ऊपर उठ कर देश के लिए जिम्मेदारी उठाएं।

Web Title: It is very important to maintain the dignity of independence

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