यूनुस खान का ब्लॉग: जिंदगी से हार मान लेना ठीक नहीं
By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Published: October 16, 2018 09:54 AM2018-10-16T09:54:48+5:302018-10-16T09:54:48+5:30
अगर आप गौर करें तो पाएंगे कि बीते कुछ महीनों में वैज्ञानिकों, छात्नों, आईएएस, आईपीएस और शिक्षाविदों ने अपनी जिंदगी को अपने हाथों खत्म करने का फैसला किया।
बड़े अफसोस की बात है कि संसार में आत्महत्याएं बढ़ रही हैं। हमारे देश में भी बढ़ रही हैं। अगर आप गौर करें तो पाएंगे कि बीते कुछ महीनों में वैज्ञानिकों, छात्नों, आईएएस, आईपीएस और शिक्षाविदों ने अपनी जिंदगी को अपने हाथों खत्म करने का फैसला किया। सवाल ये उठता है कि इसकी वजह क्या है? ऐसा क्या हो जाता है कि लोग अपनी जिंदगी से आजिज आ जाते हैं और संसार को छोड़ देने का फैसला करते हैं?
बीते सप्ताह एक खबर ने बहुत झटका दिया। कानपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति, शिक्षाविद, वैज्ञानिक, डॉक्टर सर्वज्ञ सिंह कटियार ने आत्महत्या कर ली। अपने कार्यकाल और सक्रिय जीवन में वे बहुत कामयाब रहे थे। उन्हें पद्मश्री और पद्म-भूषण से भी विभूषित किया गया था।
उन्होंने बड़ी तादाद में शोध-पत्न प्रकाशित किए। कानपुर विश्वविद्यालय और आईआईटी कानपुर के लिए उन्होंने बेहद महत्वपूर्ण काम किया। उनका जो अंतिम पत्न है—वो कई महत्वपूर्ण जानकारियां देता है। उन्होंने लिखा कि वह गहन अवसाद और अकेलेपन के शिकार हैं और जिंदगी से तंग आकर आत्महत्या कर रहे हैं, इसके लिए किसी को दोषी न माना जाए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक पूरी दुनिया में करीब तीस करोड़ लोग डिप्रेशन का शिकार हैं। मतलब ये कि हर बीस में से एक व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार है। भारत में 5।7 करोड़ लोग अवसाद का शिकार हैं। यानी दुनिया में डिप्रेशन के कुल मरीजों में से 18 प्रतिशत भारत में हैं। ‘लैन्सेट’ मैगजीन के मुताबिक भारत में आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह डिप्रेशन ही है।
अफसोस की बात ये है कि हम भारतीय इस मामले में सजग भी नहीं हुए हैं। डिप्रेशन एक छिपा दुश्मन होता है। आधुनिक जीवन की भागदौड़ में परिवार अपने सदस्यों के डिप्रेशन को पहचान नहीं पाते। उम्र के साथ धीरे-धीरे ये बहुत ही गंभीर रूप ले लेता है। चालीस से अधिक की उम्र के लोग इसके ज्यादा शिकार होते हैं। जाहिर है कि परिवारों में अब इसे लेकर सजगता जरूरी है। अगर हमारे किसी आत्मीय की नींद और खाने के पैटर्न में अचानक बदलाव आ रहा है, वो चिड़चिड़ेपन या उदासीनता से घिरा नजर आ रहा है, अगर अचानक उसकी जीवन में रुचि खत्म होती नजर आ रही है तो इसे थोड़े दिनों का ‘मूड स्विंग’ मानकर नजरंदाज करना सही नहीं है।
यह समझ लेना जरूरी है कि ये बाकायदा एक मानसिक रोग है और डिप्रेशन के मरीज को पेशेवर मदद की जरूरत पड़ती है। परिवार अपने सुख-दु:ख एक साथ बांटे, साथ भोजन करे, एक दूसरे का हाल-चाल जानता रहे और एक-दूसरे को सहारा देते हुए आगे बढ़े। ऐसा न हो कि परिवार एक ही छत के नीचे रहने वाले अजनबियों का समूह बन जाए।